उड़द की आधुनिक खेती करने की जानकारी Urad ki aadhunik kheti karne ki jankari
उड़द की आधुनिक खेती करने की जानकारी Urad ki aadhunik kheti karne ki jankari. उड़द की खेती कैसे करें. उड़द की खेती की जानकारी. उड़द की खेती करके बने करोड़पति. उड़द से लें भरपूर पैदावार. इस प्रकार करें उड़द की खेती. पाएं उड़द की खेती पर जानकारी. उड़द की खेती को लाभ का धंधा बना रहे. उड़द का पौधा. उड़द की खेती इन हिंदी. Urad ki Kheti Kaise Kare उड़द की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Urad ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. उड़द की उन्नत खेती एवं फसल सुरक्षा उपाय. उड़द की बुवाई के लिए मौसम अनुकूल. इसी महीने कर सकते है बिजाई. उड़द की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार. उड़द की खेती में दोहरा मुनाफा. उड़द उत्पादन की उन्नत तकनीक. इस महिने ही करे उड़द दाल की खेती, अच्छी फसल के लिए.
उड़द देश की एक मुख्य दलहनी फसल है, इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ में की जाती है, लेकिन जायद में समय से बुवाई सघन पद्धतियों को अपनाकर करने से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है, उड़द की खेती पूरे उत्तर प्रदेश के सभी जिलो में की जाती है। उड़द की खेती के लिए फसल पकाते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है, जहाँ तक भूमि का सवाल है, समुचित जल निकास वाली बलुई दोमट तथा दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में उड़द की खेती में सिचाईयो की अति अवश्यकता पड़ती है।
उड़द देश की एक मुख्य दलहनी फसल है, इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ में की जाती है, लेकिन जायद में समय से बुवाई सघन पद्धतियों को अपनाकर करने से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है, उड़द की खेती पूरे उत्तर प्रदेश के सभी जिलो में की जाती है। उड़द की खेती के लिए फसल पकाते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती है, जहाँ तक भूमि का सवाल है, समुचित जल निकास वाली बलुई दोमट तथा दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन जायद में उड़द की खेती में सिचाईयो की अति अवश्यकता पड़ती है।
प्रजातियाँ - मुख्य रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है, पहला खरीफ में उत्पादन हेतु जैसे कि - शेखर-3, आजाद उड़द-3, पन्त उड़द-31, डव्लू.वी.-108, पन्त यू.-30, आई.पी.यू.-94 एवं पी.डी.यू.-1 मुख्य रूप से है, जायद में उत्पादन हेतु पन्त यू.-19, पन्त यू.-35, टाईप-9, नरेन्द्र उड़द-1, आजाद उड़द-1, उत्तरा, आजाद उड़द-2 एवं शेखर-2 प्रजातियाँ है। कुछ ऐसे भी प्रजातियाँ है, जो खरीफ एवं जायद दोनों में उत्पादन देती है, जैसे कि टाईप-9, नरेन्द्र उड़द-1, आजाद उड़द-2, शेखर उड़द-2ये प्रजातियाँ दोनों ही फसलो में उगाई जा सकती है।
खेत की तैयारी - खेत की पहली जुताई हैरो से करने के पश्चात, दो- तीन जुताइयां कल्टीवेटर से करनी चाहिए, आख़िरी जुताई में पाटा लगाना अति अवश्यक है, जिससे नमी सुरक्षित बनी रहे, ख़ासकर जायद की फसल में निश्चित ही पाटा लगाना चाहिए।
बीज बुवाई - बुवाई खरीफ व जायद दोनों फसलो में अलग-अलग समय पर की जाती है, खरीफ में जुलाई के प्रथम पक्ष में बुवाई की जाती है, जायद में 15 फरवरी से 15 मार्च तक बुवाई की जाती है, जहाँ तक रहा सवाल बुवाई के तरीके का, उड़द की बुवाई हल के पीछे कुडों में करना चाहिए, खरीफ में कूंड से कूंड की दूरी 30 से 45 सेमी. रखना अति उत्तम है, जायद में कूंड से कूंड की दूरी 25 से 30 सेमी. रखना चाहिए, बुवाई के तुरंत बाद हल्का पाटा लगा देना चाहिए, जिससे की हमारी नमी सुरक्षित बनी रह सके, यह करना जायद में अति आवश्यक है।
बीज की मात्रा - बीज की मात्रा समयनुसार डाली जाती है, खरीफ में 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रयोग करनी चाहिए, इसकी जायद में 15-18 किलोग्राम प्रति हेक्टर प्रयोग करते है, क्योकि जायद में पौधा कम बढ़ता है। बीज का शोधन करना अतिआवश्यक है, बीज को 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम अथवा 2 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर शोधित करने के बाद, उड़द के राईजोबियम कल्चर के एक पैकेट से 10 किलोग्राम बीज का उपचार करना चाहिए।
जल प्रबंधन - खरीफ की फसल में वर्षा कम होने पर फलियाँ बनते समय एक सिंचाई करने की अति आवश्यकता पडती है, तथा जायद की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन बाद करनी चाहिए, इसके बाद आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
पोषण प्रबंधन - सामान्यत: उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियो के अनुसार करना चाहिये, लेकिन 15-20 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टर प्रयोग तत्त्व के रूप में करना चाहिए, उर्वरको की पूरी मात्रा, बुवाई के समय कूड़ों में 2-3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन - बुवाई के बाद लगभग 30 दिन बाद निराई-गुडाई करनी चाहिए, दूसरी निराई-गुडाई 45 से 50 दिन बाद करनी चाहिए, इससे खरपतवार नियंत्रण भी होता है, लेकिन रासायनिक खरपतवार नियंत्रण हेतु पेंडीमेथिलीन 30 ई. सी. की 3.3 लीटर अथवा एलाक्लोर 50 ई. सी की 3 लीटर को 600-700 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के बाद 2 से 3 दिन के अन्दर जमाव से पहले छिडकाव कर देना चाहिए, इससे खरपतवार उगते ही नहीं है।
रोग प्रबंधन - उड़द में प्रायः पीले चित्रवर्ण या मोजैक रोग लगता है, इसमे रोग के विषाणु सफ़ेद मक्खी के द्वारा फैलता है, इसकी रोकथाम के लिए, समय से बुवाई करना अति आवश्यक है, दूसरा मोजैक अवरोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए, इसके साथ ही साथ मोजैक से ग्रषित पौधे फसल में दिखते ही सावधानी पूर्वक उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए और रसायनों का प्रयोग भी करते है, जैसे कि - डाईमिथोएट 30 ई. सी. 1 लीटर प्रति हेक्टर या मिथाईल-ऒ-डिमेटान 25 ई. सी. 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए।
कीट प्रबंधन - उड़द की फसल में थ्रिप्स, हरे फुदके, कमला कीट एवम फली भेदक कीट आदि लगते है, इसके नियंत्रण के लिए क्युनाल्फोस 25 ई. सी. 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर की दर से 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए, जिससे की फसल में लगे कीटों का नियंत्रण हो सके।
फसल कटाई - जब फसल में फलियाँ पूरी तरह पककर सूख जाये, तभी कटाई करनी चाहिए, कटाई के बाद भी खलिहान में फसल को अच्छी तरह सुखाकर ही मड़ाई करके तथा बीज ऒसाईं करके अलग कर लेना चाहिए।
पैदावार - भंडारण के लिए बीज को भंडारण करने से पहले अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए, क्योकि बीज में 10 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं रहनी चाहिए, उड़द के भंडारण में स्टोरेज बीनस का प्रयोग करना चाहिए, सुखी नीम की पत्ती को बीज में मिलाकर भंडारण करने पर कीड़ो से सुरक्षा की जा सकती है।
पैदावार - जायद में उपज 10-12 कुंतल प्रति हेक्टर प्राप्त होती है तथा खरीफ में 12-15 कुंतल प्रति हेक्टर प्राप्त होती है।
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