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आइये पढ़ें कम्प्यूटर की पीढियां Aaiye padhe computer ki pidhiyan
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आज से लगभग 60 वर्ष पूर्व कम्प्यूटर ने वाणिज्यिक क्षेत्र में प्रवेश किया। इससे पूर्व इसका उपयोग विज्ञान, इंजीनियरिंग और सेना तक ही सीमित था। वाणिज्यिक कम्प्यूटर के विकास क्रम को कम्प्यूटर में प्रयुक्त नवीन तकनीकों के आधार पर पीढ़ियों में वर्गीकृत किया गया है।
आज से लगभग 60 वर्ष पूर्व कम्प्यूटर ने वाणिज्यिक क्षेत्र में प्रवेश किया। इससे पूर्व इसका उपयोग विज्ञान, इंजीनियरिंग और सेना तक ही सीमित था। वाणिज्यिक कम्प्यूटर के विकास क्रम को कम्प्यूटर में प्रयुक्त नवीन तकनीकों के आधार पर पीढ़ियों में वर्गीकृत किया गया है।
इस विकास क्रम में
कम्प्यूटर की कार्य करने की गति, संग्रहण क्षमता और नये अनुप्रयोग
प्रोग्रामों में वृद्धि हुई है जब कि इसके आकार और कीमत में कमी आई है।
इसके उत्पादन में भी तेजी आई है और अब यह आसानी से उपलब्ध है। कम्प्यूटर के
अब तक के विकास क्रम को पांच पीढ़ियों में विभक्त किया गया है। यद्यपि इन
पीढ़ियों में थोड़ा बहुत अतिव्यापन है, किन्तु नीचे पीढ़ियों के सामने
वर्णित काल अधिकांशतः स्वीकार किया गया है।
प्रथम पीढ़ी 1942.1955: - इस
पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूब का उपयोग होता था। वैक्यूम ट्यूब
आकार में बड़ी थी अतः इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का आकार बहुत बड़ा था। इनकी
कार्य करने की गति धीमी थी। इनमें इनपुट तथा आउटपुट के लिए पंच कार्डों का
उपयोग होता था। आन्तरिक मैमोरी के लिए चुम्बकीय ड्रम प्रयुक्त होते थे।
इनमें मशीनी भाषा तथा असेम्बली भाषा प्रचलित थी। इनका प्रयोग वैज्ञानिक
अनुसंधान तथा वाणिज्यिक कार्यों जैसे वेतन बिल बनाना, बिल तैयार करना,
लेखांकन करना आदि तक सीमित था। इस पीढ़ी के कुछ प्रमुख कम्प्यूटर ये थे -
इनिएक 1943.1946 (Electronic Numerical Integrator and Calculator) यह प्रथम सामान्य उपयोग वाला इलेक्ट्रानिक था जिसे अमेरिका की पेन्नसिलवानिया विश्वविद्यालय के जे. प्रेस्पर एकर्ट तथा जॉन मचली ने बनाया। यह 50 फुट लम्बा तथा 30 फुट चौड़ा था। इसका वजन 30 टन था और इसमें 18,000 वैक्यूम ट्यूबों का उपयोग हुआ था। इसे संचालित करने के लिए 1,50,000 वाट बिजली की आवश्यकता होती थी।
एडवेक 1946.1952 Electronic Discrete Variable Automatic Computer (EDVAC) इनिएक
के सलाहकार हंगरी के जॉन वॉन न्यूमेन की संग्रहित अनुदेश संकल्पना के आधार
पर बनाया गया। इससे पूर्व कम्प्यूटरों में प्रोग्राम एवं डाटा संग्रह करना
बहुत मुश्किल कार्य था।
प्रथम पीढ़ी के अन्य महत्वपूर्ण कम्प्यूटर EDSAC (1947-49), MANCHESTER MARK-I (1948), UNIVAC (1951) आदि थे।
प्रथम
पीढ़ी के कम्प्यूटरों में कई कमियां थी। ये आकार में बहुत बड़े थे। अधिक
ताप से प्रायः इनकी ट्यूब जल जाया करती थीं। इनके खराब होने की सम्भावना
अधिक रहती थी। इनका रख-रखाव बहुत मंहगा पड़ता था। विद्युत खर्च बहुत अधिक
था। इनकी कार्य करने की गति धीमी थी। इनके लिए वातानुकुलन आवश्यक था। पंच
कार्ड/टेप के उपयोग के कारण इनमें इनपुट-आउटपुट काफी धीमा होता था। इनकी
मुख्य स्मृति (Main Memory) बहुत कम थी। प्रोग्रामिंग क्षमता भी बहुत कम
थी। इनका बहुत ही सीमित उपयोग था।
द्वितीय पीढ़ी (Second Generation) 1955-1964
द्वितीय
पीढ़ी के कम्प्यूटर ट्रांजिस्टरों पर आधारित थे। ट्रांजिस्टर का आविष्कार
1947 में बेल लेबोरेट्रीज द्वारा किया गया था। ट्रांजिस्टर एक सॉलिड स्टेट
युक्ति है जो अर्द्ध चालक धातु से बना होता है। ट्रांजिस्टर का वही कार्य
था जो प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटरों में ‘‘वैक्यूम ट्यूब‘‘ का था। किन्तु
इनका आकार वैक्यूम ट्यूब की तुलना में बहुत छोटा था और ये अधिक विश्वसनीय
तथा अपेक्षाकृत अधिक तीव्र गति से कार्य करने में सक्षम थे। इनमें विद्युत
की खपत भी बहुत कम होती थी।
इस समय स्मृति (Memory) की तकनीक में भी सुधार हुए। 1960 के दशक में पूर्णतया ट्रांजिस्टर तकनीक पर आधारित प्राथमिक मैमोरी ;च्तपउंतल डमउवतलद्ध उपलब्ध हो गई। द्वितीयक मैमोरी (Primary Memory) के लिए चुम्बकीय टेप और डिस्कों का प्रयोग प्रारम्भ हुआ जो आज भी प्रचलित है।
ट्रांजिस्टर
के उपयोग से कम्प्यूटरों का आकार बहुत छोटा हो गया, साथ ही अधिक तापमान की
समस्या भी बहुत हद तक कम हो गई। इसी कारण इनकी विश्वसनीयता भी बढ़ी । छोटे
आकार के कारण आन्तरिक मैमोरी को भी बढ़ाया जा सका। इनकी कार्य गति भी बढ़ी
तथा पहले से कहीं अधिक अच्छी इनपुट-आउटपुट युक्तियों का उपयोग किया जाने
लगा। कम्प्यूटरों की लागत मूल्यों में भी कमी आई।
इस
पीढ़ी में उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओं का विकास हुआ, जैसे- BASIC,
COBOL, FORTRAN आदि। इन उच्च स्तरीय भाषाओं के प्रादुर्भाव से प्रोग्रामिंग
का कार्य आसान हो गया। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों के अनुप्रयोग क्षेत्रों का
भी विस्तार हुआ, जैसे वायुयान के यात्रियों के लिए आरक्षण, प्रबंधन सूचना
प्रणाली, इंजिनियरिंग, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि में भी इनका उपयोग होने लगा।
IBM-70 सीरीज, IBM-1400 सीरीज, IBM-1600 सीरीज, HONEYWELL-400 से 800
सीरीज, CDC-3600 आदि इस पीढ़ी के कुछ प्रमुख कम्प्यूटर थे।
तृतीय पीढ़ी (Third Generation) 1964-1975
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में ट्रांजिस्टरों का स्थान एकीकृत परिपथ ने ले लिया। इन्हें आई.सी. कहा जाता है। यह पीढ़ी SSI पर आधारित है। (SSI - Small Scale Integrator) आई.सी. एक छोटा सा, आयताकार चपटा टुकड़ा होता है जिसमें हजारों ट्रांजिस्टर तथा अन्य इलेक्ट्रानिक तत्व निहित होते हैं। अपने छोटे चपटे आकार के कारण ये चिप के नाम से अधिक लोकप्रिय हैं। आई.सी. के उपयोग से कम्प्यूटरों का आकार और छोटा हुआ, गति तीव्र हुई, मैमोरी बढ़ी तथा लागत में कमी आई। साथ ही इनकी विश्वसनीयता भी और अधिक बढ़ी। इस समय कम्प्यूटरों के मानकीकरण की आवश्यकता अनुभव हुई। इससे पूर्व सभी कम्प्यूटर निर्माता अपने हिसाब से सॉफ्टवेयर का निर्माण कर रहे थे और उनमें आपस में कोई तालमेल नहीं था। फलस्वरूप तैयार किए जाने वाले प्रोग्रामों की लागत ज्यादा पड़ती थी। अतः सॉफ्टवेयर निर्माण के लिए मानक आधार तय किए गए।
इस काल में विकसित महत्वपूर्ण कम्प्यूटर IBM-360, ICL-1900, IBM-370, VAX-750 आदि थे.
चतुर्थ पीढ़ी (Fourth Generation) 1975 से अब तक
इस
पीढ़ी के कम्प्यूटरों में बड़े पैमाने के एकीकृत परिपथ (Very Large
Scale Integrated Circuits - VLSI) प्रयुक्त हुए। इन परिपथों में एक इंच के
चौथाई भाग में लाखों ट्रांजिस्टर और अन्य इलेक्ट्रानिक घटक समाए होते हैं।
अतः इन परिपथों को माइक्रोचिप कहा जाने लगा। पहला माइक्रोचिप 1970 में
इन्टेल कॉरपोरेशन ने Intel 4004 तैयार किया। इस छोटे से चिप को माइक्रो
प्रोसेसर कहा जाने लगा। माइक्रो प्रोसेसर युक्त कम्प्यूटर को ही माइक्रो
कम्प्यूटर कहा जाता है। माइक्रो प्रोसेसर के
उपयोग से इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का आकार अत्यधिक छोटा हो गया। फलस्वरूप
अब तक जिन कम्प्यूटरों के लिए बड़े-बड़े कक्षों की आवश्यकता होती थी वो अब
टेबिल पर रखे जाने लगे (Desktop Computer) . आप अपने विद्यालय में जिन
कम्प्यूटरों का उपयोग करते हैं वो चौथी पीढ़ी के ही कम्प्यूटर हैं। और अब
तो गोद में रख कर संचालित करने वाले लैप टॉप एवं हथेली में रखने वाले पाम
टॉप कम्प्यूटर भी आ गए हैं।
माइक्रोप्रोसेसर
आधारित इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों की कार्य करने की गति अकल्पनीय ढंग से
बढ़ी है। इनकी क्षमता, मैमोरी और विश्वसनीयता में भी आश्चर्यजनक वृद्धि हुई
है। बहु आयामी होने के कारण उपयुक्त प्रोग्रामिंग के द्वारा इनका कार्य
क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत हो गया है। ये सही अर्थों में पूर्ण जनरल परपज
कम्प्यूटर (Totally General Purpose Computer) हैं। जीवन का शायद ही ऐसा
कोई क्षेत्र बचा है जहां कि इनका उपयोग नहीं हो रहा हो। आज इनकी कीमत भी
इतनी कम हो गई है कि एक साधाहारण व्यक्ति भी एक घरेलू कम्प्यूटर का खर्च
वहन कर सकता है।
आकार के आधार पर इस पीढ़ी के
कम्प्यूटर माइक्रो कम्प्यूटर (डेस्कटॉप, लैप टॉप, पाम टॉप), मिनी
कम्प्यूटर, मेन फ्रेम कम्प्यूटर तथा सुपर कम्प्यूटर में वर्गीकृत किये जाते
हैं।
माइक्रोप्रोसेसर पर आधारित पहला PC 1970
में MITC नामक कम्पनी ने बनाया। इसका नाम ALTAIR था जो INTEL-8008 माइक्रो
प्रोसेसर पर आधारित था। 1978 से IBM कम्प्यूटरों की श्रृंखला प्रारम्भ हुई
जो सबसे सफल रही। इस श्रृंखला का पहला लोकप्रिय कम्प्यूटर माइक्रो
प्रोसेसर 80186 पर आधारित था। बाद में 80286(1983), 80386(1986),
80486(1989), पेन्टियम. I (1993), पेन्टियम. II (1997), पेन्टियम. -III
(1999) पेन्टियम. IV (2000) उपलब्ध हुए। इनके अतिरिक्त एप्पल, कॉम्पैक एवं
हैलवेट पैकार्ड कम्पनी के कम्प्यूटर भी लोकप्रिय हुए हैं।
पांचवी पीढ़ी (Fifth Generation)
ये
कम्प्यूटर अभी विकास की अवस्था में हैं। इनमें तर्क करने, सोचने-समझने,
निर्णय लेने आदि बौद्धिक क्षमताओं का विकास करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
ये कम्प्यूटर वर्तमान के कम्प्यूटरों से अधिक तीव्र गति वाले, अधिक
विश्वसनीय और जटिल तथा विषम परिस्थितियों में भी कार्य कर सकने में सक्षम
होंगे। पांचवी पीढ़ी के कम्प्यूटरों में प्रोग्रामिंग की विधियां भी सरल हो
जाएंगी। ये मानवीय भाषा तथा व्यवहार को भी समझने लगेंगे अतः इनपुट और
कमाण्ड दोंनों ही के लिए और अधिक आसानी हो जाएगी। आने वाले समय में मोबाइल
कम्प्यूटरों का प्रचलन बढ़ेगा क्योकि इनका आकार दिन-प्रतिदिन छोटा होता जा
रहा है। यह पीढ़ी USLSI (Ultra Voilet Lager Scale Integration) पर आधारित
है।
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