धरती हमारी माता है Dharti hamari MATA hai
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एक माँ वो है जिसने हमें जन्म दिया। हमारा पालन-पोषण करती है। दूसरी ‘मां’ वो है जिसे दुनिया धरती माता के नाम से जानती है। यह हमें खाना देती है, रहने के लिए जगह देती है। यूं कहें कि दुनिया में जितनी चीजें दिखती हैं, सब कुछ इसी ‘मां’ की देन है।
एक माँ वो है जिसने हमें जन्म दिया। हमारा पालन-पोषण करती है। दूसरी ‘मां’ वो है जिसे दुनिया धरती माता के नाम से जानती है। यह हमें खाना देती है, रहने के लिए जगह देती है। यूं कहें कि दुनिया में जितनी चीजें दिखती हैं, सब कुछ इसी ‘मां’ की देन है।
हमारी जन्म देने वाली मां यदि बीमार पड़ जाती हैं, तो हमारी नींद उड़ जाती है। हम उसके इलाज के लिए दिन-रात एक कर देते हैं, जबकि इस मां ने दो-चार ही
पुत्र-पुत्रियां जने हैं। लेकिन धरती माता जिसके कई करोड़ ‘बेटे’ हैं। पुकारती है। लेकिन कोई संभालने वाला नहीं है।
आज हम इस ‘मां’ के दुश्मन बन गए हैं। हरे-भरे वृक्ष काट रहे हैं। इसके गर्भ में रोज खतरनाक परीक्षण कर रहे हैं। इतना जल बर्बाद किया कि कई हिस्से जलविहीन हो गए हैं। लाख कोशिशों के बाद भी दुनिया भर के वैज्ञानिक ‘दूसरी पृथ्वी’ को नहीं ढूंढ सकें। धरती माता के बचाव के लिए सबको आगे आना चाहिए। वरना हमारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। 1970 के 22 अप्रैल को पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया। तत्पश्चात यह सिलसिला साल-दर-साल जारी है।
आइए, हम सब शपथ लें कि अपनी धरती माता को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। मसलन-पौधरोपण को खुद के रूटीन में शामिल करेंगे। इसके लिए औरों को भी प्रेरित करेंगे। पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। कागज का इस्तेमाल कम से कम करेंगे। इससे कई बांस के पेड़ कटने से बच जाएंगे। सूख रहे तालाब, कुएं को फिर से जीवित करेंगे। ब्रश करते वक्त बेसिन का नल धीमे खोलेंगे। सड़े-गले सामान सही जगह पर फेंकेंगे। खाना बनाने के लिए बायो गैस या कुकिंग गैस का ही उपयोग करेंगे। वर्षा का जल संचय की बात को गंभीरता से लेंगे। जरा सोचिए, इस पृथ्वी ने हमें क्या नहीं दिया है?
आज हम इस ‘मां’ के दुश्मन बन गए हैं। हरे-भरे वृक्ष काट रहे हैं। इसके गर्भ में रोज खतरनाक परीक्षण कर रहे हैं। इतना जल बर्बाद किया कि कई हिस्से जलविहीन हो गए हैं। लाख कोशिशों के बाद भी दुनिया भर के वैज्ञानिक ‘दूसरी पृथ्वी’ को नहीं ढूंढ सकें। धरती माता के बचाव के लिए सबको आगे आना चाहिए। वरना हमारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। 1970 के 22 अप्रैल को पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया। तत्पश्चात यह सिलसिला साल-दर-साल जारी है।
आइए, हम सब शपथ लें कि अपनी धरती माता को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। मसलन-पौधरोपण को खुद के रूटीन में शामिल करेंगे। इसके लिए औरों को भी प्रेरित करेंगे। पॉलीथिन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। कागज का इस्तेमाल कम से कम करेंगे। इससे कई बांस के पेड़ कटने से बच जाएंगे। सूख रहे तालाब, कुएं को फिर से जीवित करेंगे। ब्रश करते वक्त बेसिन का नल धीमे खोलेंगे। सड़े-गले सामान सही जगह पर फेंकेंगे। खाना बनाने के लिए बायो गैस या कुकिंग गैस का ही उपयोग करेंगे। वर्षा का जल संचय की बात को गंभीरता से लेंगे। जरा सोचिए, इस पृथ्वी ने हमें क्या नहीं दिया है?
धरती माता
धरती हमारी माता है, माता को प्रणाम करो,
बनी रहे इसकी सुंदरता, ऐसा भी कुछ काम करो।
आओ हम सब मिलजुल कर, इस धरती को स्वर्ग बना दें,
देकर सुंदर रूप धरा को, कुरूपता को दूर भगा दें।
नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर, नैतिकता से काम करें,
गंदगी फैला कर भूमि पर, माँ को न बदनाम करें।
माँ तो है हम सब की रक्षक, हम इसके क्यों बन रहे भक्षक,
जन्म भूमि है पावन भूमि, बन जाएँ इसके हम सरक्षक।
कुदरत ने जो दिया धरा को , उसका सब सम्मान करो,
न छेड़ो इन उपहारों को, न कोई बुराई का काम करो।
धरती हमारी माता है, माता को प्रणाम करो,
बनी रहे इसकी सुंदरता, ऐसा भी कुछ काम करो।
अपील:- आओ हम सब धरा को सुन्दर बनाने में सहयोग दें हमारी धरती की सुन्दरता को बनाए रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.......
धरती हमारी माता है, माता को प्रणाम करो,
बनी रहे इसकी सुंदरता, ऐसा भी कुछ काम करो।
आओ हम सब मिलजुल कर, इस धरती को स्वर्ग बना दें,
देकर सुंदर रूप धरा को, कुरूपता को दूर भगा दें।
नैतिक ज़िम्मेदारी समझ कर, नैतिकता से काम करें,
गंदगी फैला कर भूमि पर, माँ को न बदनाम करें।
माँ तो है हम सब की रक्षक, हम इसके क्यों बन रहे भक्षक,
जन्म भूमि है पावन भूमि, बन जाएँ इसके हम सरक्षक।
कुदरत ने जो दिया धरा को , उसका सब सम्मान करो,
न छेड़ो इन उपहारों को, न कोई बुराई का काम करो।
धरती हमारी माता है, माता को प्रणाम करो,
बनी रहे इसकी सुंदरता, ऐसा भी कुछ काम करो।
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