धर्म का सबसे उत्तम रूप - Dharam ka sabse uttam rup
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धर्म का सबसे उत्तम रूप है ज्ञान और दुसरो की मदद करना. परमात्मा के लिए समय निकालने वाला, श्रद्धा से भजन करने वाला उत्तम है लेकिन ज्ञानी तो साक्षात ब्रह्म का स्वरूप है।
सत्संग, ज्ञान, कर्मशीलता में रुचि होना, कर्मयोगी होना, ज्ञान योगी होना, धर्मवीर, ज्ञानवीर, शूरवीर, दानवीर होना ये सब धन हैं। इन धनों को उत्पन्न करने वाली शक्ति का नाम ज्ञान है।
भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं, ‘‘संसार में यद्यपि सभी उत्तम हैं परन्तु मेरे लिए सबसे उत्तम मेरा ही रूप है, मेरे स्वरूप के अनुसार जो ज्ञान से युक्त है उसके अंतर में मैं ही उतरा हूं। जो भी श्रद्धा युक्त होकर नाम जपने के लिए समय निकालता है वह उत्तम है परन्तु ज्ञानी मेरा ही स्वरूप है।’’
भगवान कहते हैं, ‘‘ज्ञानी मेरे ही स्वरूप वाला हो जाता है। भगवान को ज्ञान वाला व्यक्ति प्रिय है। ज्ञानी व्यक्तियों का जीवन खुशबू की तरह आज भी महक रहा है, यद्यपि उनका शरीर नहीं है लेकिन दुनिया में वे अद्भुत लोग थे।’’
महान पुरुष किसी एक देश, जाति, वर्ग के नहीं हैं, उनको सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। कैद किया तो उनकी सुगंध सुगंध नहीं। वे सारी दुनिया की सम्पत्ति हैं, दायरे में बांधने के लिए नहीं हैं। दूसरों के दरवाजे को खटखटाने की आदत मत डालो, खुद परिश्रम करना सीखो। तुम्हारा खजाना तुम्हारे भीतर है।
दूसरों को गिरा कर कोई आगे नहीं बढ़ता, खुद उठो व दूसरों को उठाओ। धन-बल से इतने समर्थ बन जाओ कि खुद भी उठो और दूसरों को भी आगे बढ़ाओ। ऐसे लोगों के साथ प्रकृति की शक्तियां भी जुट जाती हैं। लाचार होकर दूसरे की मदद की उम्मीद न करें। कुछ लोग ऐसे हैं जो यहां भी बैठे परमात्मा का आनंद लेते हैं।
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भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं, ‘‘संसार में यद्यपि सभी उत्तम हैं परन्तु मेरे लिए सबसे उत्तम मेरा ही रूप है, मेरे स्वरूप के अनुसार जो ज्ञान से युक्त है उसके अंतर में मैं ही उतरा हूं। जो भी श्रद्धा युक्त होकर नाम जपने के लिए समय निकालता है वह उत्तम है परन्तु ज्ञानी मेरा ही स्वरूप है।’’
भगवान कहते हैं, ‘‘ज्ञानी मेरे ही स्वरूप वाला हो जाता है। भगवान को ज्ञान वाला व्यक्ति प्रिय है। ज्ञानी व्यक्तियों का जीवन खुशबू की तरह आज भी महक रहा है, यद्यपि उनका शरीर नहीं है लेकिन दुनिया में वे अद्भुत लोग थे।’’
महान पुरुष किसी एक देश, जाति, वर्ग के नहीं हैं, उनको सीमाओं में कैद नहीं किया जा सकता। कैद किया तो उनकी सुगंध सुगंध नहीं। वे सारी दुनिया की सम्पत्ति हैं, दायरे में बांधने के लिए नहीं हैं। दूसरों के दरवाजे को खटखटाने की आदत मत डालो, खुद परिश्रम करना सीखो। तुम्हारा खजाना तुम्हारे भीतर है।
दूसरों को गिरा कर कोई आगे नहीं बढ़ता, खुद उठो व दूसरों को उठाओ। धन-बल से इतने समर्थ बन जाओ कि खुद भी उठो और दूसरों को भी आगे बढ़ाओ। ऐसे लोगों के साथ प्रकृति की शक्तियां भी जुट जाती हैं। लाचार होकर दूसरे की मदद की उम्मीद न करें। कुछ लोग ऐसे हैं जो यहां भी बैठे परमात्मा का आनंद लेते हैं।
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