भैरव भगवान शंकर के अवतार Bhairav bhagwan shankar ke avtar
भैरव भी भगवान शंकर के अवतार हैं. Bhairav bhagwan shankar ke avtar hai. Bhairav is also the incarnation of Lord Shiva. क्या आप जानते है कि भैरव भी भगवान शंकर के अवतार हैं. आइये इस बारे में जानकारी लेते है.
धर्म ग्रंथों के अनुसार भैरव भी भगवान शंकर के ही अवतार हैं। भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा का सेवन करने वाले हैं। इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। भैरव अवतार से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर करना ही ठीक रहता है। बिना विचारे काम करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।
काशी के अधिपति हैं भैरव
शिव महापुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप बताया है। इनके अवतार की कथा इस प्रकार है- एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। इस विषय में जब वेदों से पूछा गया तब उन्होंने शिव को सर्वश्रेष्ठ एवं परमतत्व कहा। किंतु ब्रह्मा व विष्णु ने उनकी बात का खंडन कर दिया। तभी वहां भगवान शंकर प्रकट हुए। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उनके क्रोध से वहां एक तेज-पुंज प्रकट हुआ और उसमें एक पुरुष दिखलाई पड़ा।
भगवान शिव ने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण तुम साक्षात कालराज हो। तुम से काल भी भयभीत रहेगा, अत: तुम कालभैरव भी हो। मुक्तिपुरी काशी का आधिपत्य तुमको सर्वदा प्राप्त रहेगा। उस नगरी के पापियों के शासक भी तुम ही होंगे। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा का एक सिर काट दिया।
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काशी के अधिपति हैं भैरव
शिव महापुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप बताया है। इनके अवतार की कथा इस प्रकार है- एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। इस विषय में जब वेदों से पूछा गया तब उन्होंने शिव को सर्वश्रेष्ठ एवं परमतत्व कहा। किंतु ब्रह्मा व विष्णु ने उनकी बात का खंडन कर दिया। तभी वहां भगवान शंकर प्रकट हुए। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उनके क्रोध से वहां एक तेज-पुंज प्रकट हुआ और उसमें एक पुरुष दिखलाई पड़ा।
भगवान शिव ने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण तुम साक्षात कालराज हो। तुम से काल भी भयभीत रहेगा, अत: तुम कालभैरव भी हो। मुक्तिपुरी काशी का आधिपत्य तुमको सर्वदा प्राप्त रहेगा। उस नगरी के पापियों के शासक भी तुम ही होंगे। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा का एक सिर काट दिया।
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