अस्थमा के लिए कुछ इलाज Ashthama ke liye kuch ilaz
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बरसात के बाद ठंड के आने यानी मौसम में बदलाव होने से कई लोगों को सांस से जुड़ी समस्याएं काफी परेशान कर देती हैं। हिंदुस्तानी आदिवासियों के अनुसार, हर एक मौसम का आने और जाने पर सेहत का विशेष ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि मौसम परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार उन व्यक्तियों को पड़ती है, जिनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है।
मौसम के बदलते मिजाज के अनुसार आदिवासी हर्बल जानकार अपने नुस्खों को आंशिक रूप से बदलते भी रहते हैं। अब हमारे देश में ठंड दस्तक देने को है, हम अपने पाठकों को इस दौरान बेहतर स्वास्थ के लिए कुछ चुनिंदा हर्बल नुस्खों के बारे में बता रहे हैं। सांस से जुड़ी समस्याओं और उनके उपचार के संदर्भ में रोचक जानकारियों का जिक्र कर रहे हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्य प्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।
आइए जानते हैं अस्थमा के लिए कुछ इलाज:
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बरसात के बाद ठंड के आने यानी मौसम में बदलाव होने से कई लोगों को सांस से जुड़ी समस्याएं काफी परेशान कर देती हैं। हिंदुस्तानी आदिवासियों के अनुसार, हर एक मौसम का आने और जाने पर सेहत का विशेष ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि मौसम परिवर्तन की सबसे ज्यादा मार उन व्यक्तियों को पड़ती है, जिनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है।
मौसम के बदलते मिजाज के अनुसार आदिवासी हर्बल जानकार अपने नुस्खों को आंशिक रूप से बदलते भी रहते हैं। अब हमारे देश में ठंड दस्तक देने को है, हम अपने पाठकों को इस दौरान बेहतर स्वास्थ के लिए कुछ चुनिंदा हर्बल नुस्खों के बारे में बता रहे हैं। सांस से जुड़ी समस्याओं और उनके उपचार के संदर्भ में रोचक जानकारियों का जिक्र कर रहे हैं डॉ. दीपक आचार्य (डायरेक्टर-अभुमका हर्बल प्रा. लि. अहमदाबाद)। डॉ. आचार्य पिछले 15 सालों से अधिक समय से भारत के सुदूर आदिवासी अंचलों जैसे पातालकोट (मध्य प्रदेश), डांग (गुजरात) और अरावली (राजस्थान) से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान को एकत्रित कर उन्हें आधुनिक विज्ञान की मदद से प्रमाणित करने का कार्य कर रहे हैं।
आइए जानते हैं अस्थमा के लिए कुछ इलाज:
- लगभग 2 कप पानी में अदरख के छोटे-छोटे टुकड़े और कुछ इमली की कुछ पत्तियां डालें और तब तक उबालें जब तक कि ये एक कप न रह जाए। इसमें 4 चम्मच शक्कर ड़ालकर धीमी आंच पर कुछ देर और उबालें, फिर ठंडा होने दें। ठंडा होने पर इसमें 10 बूंद नींबू रस की डाल दें। हर तीन घंटे में इस सिरप का एक बार सेवन करने से खांसी छू-मंतर हो जाती है।
- समान मात्रा में शहद और कच्चे प्याज का रस (लगभग एक चम्मच) मिलाकर 3 से 4 घंटे के लिये किसी अंधेरे स्थान पर रख दें। बाद में इसका सेवन करें। यह खांसी की दवाई के रूप में सटीक कार्य करता है।
- पातालकोट के चावलपानी गांव के आदिवासी धनिया, जीरा और बच की बराबर मात्रा लेकर काढ़ा बनाते हैं। सर्दी और खांसी से पीड़ित बच्चों को भोजन के बाद यह काढ़ा (10 मि.ली) दिया जाता है।
- अडूसा के पत्तों के रस (6 मि.ली.) को शहद (4 मि.ली.) में मिलाकर पीने से भी खांसी और गले की खराश से राहत मिलती है। सर्दी-खांसी के इलाज के लिए पातालकोट के करेयाम गांव के आदिवासी बाजरे के आटे से रोटी बनाते हैं। इस रोटी को लहसुन, बैंगन और मेथी दाने की सब्जी के साथ खाते हैं। इनका मानना है कि ऐसा भोजन पेट में गरमी लाता है और इससे सर्दी और खांसी का सफ़ाया हो जाता है।
- अस्थमा का दौरा पड़ने पर गर्म पानी में तुलसी के 5 से 10 पत्ते मिलाएं और सेवन करें। इससे सांस लेने में आसानी होती है। इसी प्रकार तुलसी का रस, अदरक रस और शहद का समान मिश्रण प्रतिदिन एक चम्मच के हिसाब से लेना अस्थमा में आराम मिलता है।
- अस्थमा और ब्रोंकाइटिस को नियंत्रित करने में तुलसी और करेले का रस भी काफी मदद करता है। तुलसी की करीब 15 पत्तियों को लेकर एक सामान्य आकार के करेले के साथ कुचल लें और इसे अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन रात में सोने से पहले दें, शीघ्र ही फायदा होगा।
- पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकारों के अनुसार, मेथी की पत्तियों का ताजा रस, अदरक और शहद को धीमी आंच पर कुछ देर गर्म करके रोगी को पिलाने से अस्थमा रोग में काफी आराम मिलता है।
- एक गिलास पानी में एक चम्मच लहसुन का रस मिलाएं और इसे 3 महीने तक दिन में दो बार प्रत्येक दिन लगातार दें तो अस्थमा और रक्त से जुड़े विकारों में काफी राहत मिलती है।
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