सुखासन या पालथी के लाभ Sukhasan ya palthi ke laabh
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सुखासन या पालथी मारकर बैठने की परंपरा भारत में प्राचीनकाल से रही है, लेकिन वर्तमान समय में जीवनशैली में आए बदलाव के कारण लोग पालथी मारकर बैठने का समय ही नहीं निकाल पाते हैं।
सुखासन या पालथी मारकर बैठने की परंपरा भारत में प्राचीनकाल से रही है, लेकिन वर्तमान समय में जीवनशैली में आए बदलाव के कारण लोग पालथी मारकर बैठने का समय ही नहीं निकाल पाते हैं।
चाहे भोजन करना हो या टॉयलेट हर जगह की बैठक कुर्सी की तरह बना दी गई है, जो कि शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदायक है। यदि आप भी दिन भर में कुछ देर भी सुखासन यानी पालथी मारकर नहीं बैठ पाते तो इसके ये फायदे सुनकर आप भी इस तरह से दिन भर में कुछ देर तो जरूर बैठना चाहेंगे।
क्या है सुखासन या पालथी: सुखासन में दोनों पैरों को एक
दूसरे के नीचे क्रॉस की शक्ल में दबाकर बैठने से
कमल की तरह मुद्रा बन जाती है। ध्यान के लिए यही उपयुक्त आसन है, लेकिन जिन्हें पद्मासन में दिक्कत
हो। वे जिस तरह सुविधा हो पालथी लगा कर बैठ सकते हैं। आइए जानते हैं इसके फायदे:
- कुछ देर इस आसन में बैठने से मन की एकाग्रता बढ़ती है।
- सुखासन से पूरे शरीर में रक्त-संचार समान रूप से होने लगता है। जिससे शरीर अधिक ऊर्जावान हो जाता है।
- इस आसन से मानसिक तनाव कम होता है और मन में सकारात्मक विचारों का प्रभाव बढ़ता है।
- इससे हमारी छाती और पैर मजबूत बनते हैं।
- सुखासन वीर्य रक्षा में भी मदद करता है।
- इस आसन में बैठकर खाना खाने से मोटापा, अपच, कब्ज, एसिडीटी आदि पेट संबंधी बीमारियों में भी राहत मिलती है।
- इस तरह बैठने से शरीर ऊर्जावान और स्फूर्तिवान रहता है।
- सुखासन में बैठकर मंत्र जप करने से या विधिवत अजपा करने से (मन में लगातार जप)। उसके कामयाब होने के लक्षण दिखार्ई देने लगते हैं। वे लक्षण यह है कि मंत्र जिस देवता की आराधना में है, उसकी विशेषताएं साधक में दिखाई देने लगती हैं।
दार्शनिक पाल ब्रंटन ने अपनी पुस्तक इन द सर्च ऑफ सीक्रेट इंडिया में उन
साधु संतों के बारे में और उनकी साधना विधियों के बारे में लिखा है। पाल
ब्रंटन ने लिखा है कि सिद्धों और चमत्कारी साधुओं की शक्ति सामर्थ्य का
रहस्य बहुत कुछ उनके स्थिरता पूर्वक बैठने में था। ऐसे संत देखने में आए
हैं, जो आठ दस घंटे तक एक ही आसन में बैठते थे। इस आसन में बैठकर चालीस मिनट प्रतिदिन गुरुमंत्र का जप किया जाए तो सात
दिन में ही अपनी प्रकृति में बदलाव आता महसूस होने लगता है। छह सप्ताह में
तो पचास प्रतिशत तक बदलाव आ जाता है। ये लोग उन दो प्रतिशत लोगों में शुमार
हो जाते हैं , जो संकल्प कर लें तो अपने से पचास गुना ज्यादा लोगों की सोच
और व्यवहार में बदलाव ला सकते हैं।
एक अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि व्यक्ति के इस स्तर तक पहुंचने में मंत्र
जप और स्थिरता पूर्वक बैठने के दोनों ही कारण बराबर उपयोगी हैं। दोनों में
से एक भी गड़बड़ हुआ तो कठिनाई हो सकती है। हमारे यहां तो पालथी लगाकर सब
लोग बहुत आसानी से बैठ जाते हैं, जबकि बाहर के देशों में भी ध्यान की कक्षा
में प्रवेश करने वाले व्यक्ति दीक्षा लेने के बाद जप और ध्यान सीखते समय
ही बैठने की इस तकनीक का अभ्यास शुरू कर देते हैं।
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