शहीदी दिवस 19 दिसंबर पर विशेष Shahidi divas 19 December par vishesh
शहीदी दिवस 19 दिसंबर पर विशेष Shahidi divas 19 December par vishesh, Martyrdom Day special on December 19 शहीदी दिवस पर भाषण, शहीदी दिवस पर निबंध, 19 दिसम्बर का शहीदी दिवस क्यों मनाया जाता है? 19 दिसंबर के इतिहास के पन्नों में खास मायने, 19 दिसंबर बलिदान दिवस का इतिहास.
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा".
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूंगा."
ठाकुर रोशन सिंह: इनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के नवादा गाँव में एक ठाकुर परिवार में हुआ। पिता ठाकुर जंगी सिंह और माता कौशल्या देवी के ये जांबाज सपूत बहुत अच्छे पहलवान और निशानेबाज थे। यह लेख आप डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट नरेशजांगड़ा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। इन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल की हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ने के बाद अनुभव किया कि देश को जल्दी आज़ाद करवाने के लिए हथियार चाहियें और हथियारों के लिए पैसा। जबकि समाज का संपन्न वर्ग संगठन की कोई मदद नहीं कर रहा था। इन्होंने बिस्मिल को सलाह दी कि धनाड्य और रईस लोगों से पैसा निकलवाने के लिए ऊँगली टेढ़ी करनी होगी, अर्थात लूट खसोट करके पैसे का प्रबंध करना होगा।
इसी के चलते रोशन सिंह ने अपने कुछ साथियों के साथ 24 दिसंबर, 1924 की रात को बामरोली के एक रईस बलदेव प्रसाद के घर धावा बोलकर 4000 रुपये और बहुत सारे गहने लूट लिए। इसी कड़ी में आगे चलकर काकोरी लूट काण्ड को अंजाम दिया गया और बिस्मिल, अशफाक और लाहिड़ी के साथ रोशन सिंह को भी फांसी का हुक्म सुना दिया गया। रोशन सिंह ने नैनी जेल से अपने चचेरे भाई हुकम सिंह को लिखे आखिरी पत्र में लिखा : "आदमी का जीवन भगवान की सबसे सुंदर रचना है, और मैं बहुत खुश हूँ कि मैं अपने जीवन का बलिदान भगवान की इसी रचना के लिए कर रहा हूं। मैं अपने गाँव नबादा का पहला इंसान हूँ जो अपने भाई बहनों को इस तरह से गौरवान्वित करके जा रहा हूँ।" 27 दिसंबर, 1927 को इन्होंने नैनी जेल में फांसी के तख्ते पर अपनी आखिरी सांस माँ भारती के नाम ली।
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19 दिसंबर को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहम् भूमिका निभाने वाले माँ भारती के वीर सपूत पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान और शहीद रोशन सिंह की 87वीं पुण्य तिथि पर हम उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
हमारे पाठकों को इन तीनों के सज्जीवन के बारे में बताने का प्रयास करते हैं। सबसे पहले आपको बता दें कि ये तीनों देशभक्त 19 दिसंबर के ही दिन 1927 में भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए अंग्रेजों के हाथों शहीद हुए थे। इन पर लखनऊ के निकट काकोरी स्टेशन के पास ट्रेन लूटने का आरोप था और इसी के चलते बिस्मिल, अशफाक उल्ला, और रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गयी थी। तो आइये हम इन तीनों के जीवन पर थोडा प्रकाश डालते हैं।
राम प्रसाद बिस्मिल: 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में श्री मुरलीधर और श्रीमती मूलमति के घर में इनका जन्म हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित "सत्यार्थ प्रकाश" से प्रेरित राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज से जुड़े हुए थे और एक अच्छे देशभक्ति-कवि भी थे। "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है" आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देता है। ये 'राम', 'अज्ञात' और 'बिस्मिल' आदि नामों से हिंदी और उर्दू में कविताएं लिखते थे।
"हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन" की स्थापना का श्रेय बिस्मिल को ही जाता है। इन्होंने शुरू में 'मातृवेदी' नामक एक संगठन बनाया। इसका मानना था कि अंग्रेजों को जल्दी देश से निकालने के लिए हथियारों की मदद जरुरी है। इसी उद्देश्य से इन्होंने अपने एक क्रांतिकारी मित्र पंडित गेंदा लाल दिक्षित के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी इलाके में 1918 में लूट की जिसे "मैनपुरी कान्स्पिरेंसी" का नाम दिया गया। उसके बाद 1923 में इन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन किया और अपनी आज़ादी की लड़ाई में सैंकड़ों क्रांतिकारियों को अपना साथी बना कर अपने मिशन पर चल दिए।
अब इनका संगठन तो मजबूत और बड़ा बन गया लेकिन हथियारों की जरूरत को पूरा करने के लिए संगठन के सदस्य पैसे की मांग करने लगे। इसी के चलते इन्होंने एक बार फिर एक षड्यंत्र रचा और लखनऊ के नजदीक काकोरी स्टेशन के पास इन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर 9 अगस्त, 1925 को 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रुकवा लिया, जिसमें अंग्रेज सरकार का सरकारी खजाना ले जाया जा रहा था और वहां बन्दूक की नोक पर इन लोगों ने एक बार फिर लूट को अंजाम दिया। इसके बाद बिस्मिल के संगठन के करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया और आपराधिक षड्यंत्र का अभियोग चलाया गया।
गिरफ्तार होने वालों में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान मुख्य थे। यह लेख आप डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट नरेशजांगड़ा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। इन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुना दी और 19 दिसंबर, 1927 के दिन राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में, अशफाकउल्ला खान को फैजाबाद जेल में और रोशन सिंह को नैनी जेल इलाहाबाद में फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को निर्धारित तिथि से 2 दिन पहले ही 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में सज़ा-ए-मौत दे दी गयी थी।
अशफाक उल्ला खान: इनका जन्म भी शाहजहांपुर के एक पठान परिवार में 22 अक्टूबर, 1900 को हुआ। इनके पिता शफीक़ उल्ला खान और माता मज़हूर-उन-निसा बेग़म थीं। अशफाक की राम प्रसाद बिस्मिल के साथ बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी। दोनों ही हिंदी और उर्दू में देश भक्ति की कवितायें और शायरी लिखते थे। इन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हमेशा बिस्मिल के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर साथ दिया। 1925 के काकोरी ट्रेन लूट केस में भी वे बिस्मिल के साथ ही थे और उनका नाम भी आरोपियों में शामिल था। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले की रात अशफाक ने कुछ पंक्तियाँ लिखीं और भारत माँ की आज़ादी के लिए अपनी तड़प को कुछ इस तरह से बयान किया:
राम प्रसाद बिस्मिल: 11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में श्री मुरलीधर और श्रीमती मूलमति के घर में इनका जन्म हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित "सत्यार्थ प्रकाश" से प्रेरित राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज से जुड़े हुए थे और एक अच्छे देशभक्ति-कवि भी थे। "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है" आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देता है। ये 'राम', 'अज्ञात' और 'बिस्मिल' आदि नामों से हिंदी और उर्दू में कविताएं लिखते थे।
"हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन" की स्थापना का श्रेय बिस्मिल को ही जाता है। इन्होंने शुरू में 'मातृवेदी' नामक एक संगठन बनाया। इसका मानना था कि अंग्रेजों को जल्दी देश से निकालने के लिए हथियारों की मदद जरुरी है। इसी उद्देश्य से इन्होंने अपने एक क्रांतिकारी मित्र पंडित गेंदा लाल दिक्षित के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी इलाके में 1918 में लूट की जिसे "मैनपुरी कान्स्पिरेंसी" का नाम दिया गया। उसके बाद 1923 में इन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन किया और अपनी आज़ादी की लड़ाई में सैंकड़ों क्रांतिकारियों को अपना साथी बना कर अपने मिशन पर चल दिए।
अब इनका संगठन तो मजबूत और बड़ा बन गया लेकिन हथियारों की जरूरत को पूरा करने के लिए संगठन के सदस्य पैसे की मांग करने लगे। इसी के चलते इन्होंने एक बार फिर एक षड्यंत्र रचा और लखनऊ के नजदीक काकोरी स्टेशन के पास इन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर 9 अगस्त, 1925 को 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रुकवा लिया, जिसमें अंग्रेज सरकार का सरकारी खजाना ले जाया जा रहा था और वहां बन्दूक की नोक पर इन लोगों ने एक बार फिर लूट को अंजाम दिया। इसके बाद बिस्मिल के संगठन के करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया और आपराधिक षड्यंत्र का अभियोग चलाया गया।
गिरफ्तार होने वालों में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान मुख्य थे। यह लेख आप डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट नरेशजांगड़ा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। इन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुना दी और 19 दिसंबर, 1927 के दिन राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में, अशफाकउल्ला खान को फैजाबाद जेल में और रोशन सिंह को नैनी जेल इलाहाबाद में फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को निर्धारित तिथि से 2 दिन पहले ही 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में सज़ा-ए-मौत दे दी गयी थी।
अशफाक उल्ला खान: इनका जन्म भी शाहजहांपुर के एक पठान परिवार में 22 अक्टूबर, 1900 को हुआ। इनके पिता शफीक़ उल्ला खान और माता मज़हूर-उन-निसा बेग़म थीं। अशफाक की राम प्रसाद बिस्मिल के साथ बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी। दोनों ही हिंदी और उर्दू में देश भक्ति की कवितायें और शायरी लिखते थे। इन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हमेशा बिस्मिल के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर साथ दिया। 1925 के काकोरी ट्रेन लूट केस में भी वे बिस्मिल के साथ ही थे और उनका नाम भी आरोपियों में शामिल था। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले की रात अशफाक ने कुछ पंक्तियाँ लिखीं और भारत माँ की आज़ादी के लिए अपनी तड़प को कुछ इस तरह से बयान किया:
"जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं "फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा".
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूंगा."
ठाकुर रोशन सिंह: इनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के नवादा गाँव में एक ठाकुर परिवार में हुआ। पिता ठाकुर जंगी सिंह और माता कौशल्या देवी के ये जांबाज सपूत बहुत अच्छे पहलवान और निशानेबाज थे। यह लेख आप डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट नरेशजांगड़ा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। इन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल की हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन से जुड़ने के बाद अनुभव किया कि देश को जल्दी आज़ाद करवाने के लिए हथियार चाहियें और हथियारों के लिए पैसा। जबकि समाज का संपन्न वर्ग संगठन की कोई मदद नहीं कर रहा था। इन्होंने बिस्मिल को सलाह दी कि धनाड्य और रईस लोगों से पैसा निकलवाने के लिए ऊँगली टेढ़ी करनी होगी, अर्थात लूट खसोट करके पैसे का प्रबंध करना होगा।
इसी के चलते रोशन सिंह ने अपने कुछ साथियों के साथ 24 दिसंबर, 1924 की रात को बामरोली के एक रईस बलदेव प्रसाद के घर धावा बोलकर 4000 रुपये और बहुत सारे गहने लूट लिए। इसी कड़ी में आगे चलकर काकोरी लूट काण्ड को अंजाम दिया गया और बिस्मिल, अशफाक और लाहिड़ी के साथ रोशन सिंह को भी फांसी का हुक्म सुना दिया गया। रोशन सिंह ने नैनी जेल से अपने चचेरे भाई हुकम सिंह को लिखे आखिरी पत्र में लिखा : "आदमी का जीवन भगवान की सबसे सुंदर रचना है, और मैं बहुत खुश हूँ कि मैं अपने जीवन का बलिदान भगवान की इसी रचना के लिए कर रहा हूं। मैं अपने गाँव नबादा का पहला इंसान हूँ जो अपने भाई बहनों को इस तरह से गौरवान्वित करके जा रहा हूँ।" 27 दिसंबर, 1927 को इन्होंने नैनी जेल में फांसी के तख्ते पर अपनी आखिरी सांस माँ भारती के नाम ली।
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Tags: शहीदी दिवस 19 दिसंबर पर विशेष Shahidi divas 19 December par vishesh, Martyrdom Day special on December 19 शहीदी दिवस पर भाषण, शहीदी दिवस पर निबंध, 19 दिसम्बर का शहीदी दिवस क्यों मनाया जाता है? 19 दिसंबर के इतिहास के पन्नों में खास मायने, 19 दिसंबर बलिदान दिवस का इतिहास.
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