दूसरों की जरूरत का भी ध्यान रखें Dusro ki jarurat ka bhi dhyan rakhen
दूसरों की जरूरत का भी ध्यान रखें Dusro ki jarurat ka bhi dhyan rakhen, Aware of the needs of others. आप जो करते है कहीं उससे दूसरों को हानि तो नहीं हो रही है इसका भी ध्यान रखें. जरा सोचिये आप किसी अन्य का क्या हित कर रहे है? क्या इन्सान का जन्म केवल अपने काम धंधे निपटाने के लिए ही हुआ है?
कृष्ण ऐसे देवता हैं जो काल कोठरी में पैदा हुए थे। बहुत विपरीत परिस्थितियों में उनका जन्म हुआ था। पैदा हुए नहीं और उन्हें मारने की योजनाएं पहले बनाकर रख ली गईं।
लेकिन जब वे पैदा हुए तो सारी योजनाएं धरी रह गईं। वे तो भगवान थे। चाहते तो परिस्थितियां अनुकूल कर लेते। खूब ऐशो-आराम में मजे से पैदा होते। कंस उनका क्या बिगाड़ लेता? लेकिन ऐशो-आराम की पैदाइश से कोई बड़ी बात नहीं बनती। श्रेष्ठ कर्म के लिए विपरीत परिस्थितियों का होना जरूरी है। राम जी आराम के माहौल में पले-बढ़े, लेकिन उन्हें श्रेष्ठ कर्म करना था इसलिए 14 वर्ष का वनवास उन्होंने स्वीकार कर लिया।
आज भी एक संकट काल चल रहा है। मानवता पर इतना बड़ा संकट पहले शायद ही किसी युग में आया हो। आज नफे-नुकसान का हिसाब कुछ ज्यादा हो गया है। हम सब अपने ही बारे में सोच रहे हैं और जरूरतें ऐसी कि पूरी ही नहीं हो पातीं। दरअसल, आज का इंसान भी एक वस्तु की माफिक हो गया है। हममें अपनी चिंता करने की प्रवृत्ति चरम पर है। दूसरों की चिंता हमें होती नहीं। दूसरों के बारे में सोचना हमने छोड़ दिया है।
कभी-कभी हम अपने आप में इतने खो जाते हैं कि रिश्तों की मर्यादा तक भूल जाते हैं। हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो जाते हैं कि ये भी नहीं सोचते कि हमारे किए इन कामों का किसी और के जीवन पर क्या विपरीत प्रभाव हो सकता है। कभी-कभी हम इतने आगे निकल जाते हैं कि दूसरों का जीवन संकट में पड़ जाता है। निजी इच्छा को किसी भी तरीके से पूरा करना ही कंसत्व है। दूसरों के लिए जीना, दूसरों की चिंता करना कृष्णत्व है।
हर रिश्ते की अपनी एक अलग मर्यादा, एक अलग जगह है और इनका अपना एक अलग ही दायरा होता है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी ने कहीं न कहीं इन्हें धूमिल करने का काम किया है। रिश्तों की वास्तविकता से, इनकी पवित्रता से, समय-समय पर कुछ न कुछ छेड़छाड़ होती रहती है।
इन रिश्तों की अखंडता से होते खिलवाड़ के जिम्मेदार कोई और नहीं, हम स्वयं हैं| क्योंकि हम लोगों में से ही कोई ना कोई किसी स्वार्थवश, किसी लालच के कारण या अपनी किसी आकांक्षा या महत्वाकांक्षा के वशीभूत होकर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसका बोझ उठाना हमारे सामर्थ्य से परे हो जाता है।
अपनी इस जीवन शैली से हमें बाहर आना होगा। हमें विचार करना होगा कि ये रिश्ते ही हमारे समाज की अखंडता के आधार हैं। हमें ये मानना होगा और अपने अंतर्मन में इस बात को बिठाना होगा कि रिश्तों को संवारना इनको निखारना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। अपनी जरूरत पूरी करने के साथ-साथ थोड़ी दूसरों की जरूरत का भी ध्यान रखें। यही आज के युग का कृष्णत्व है।
Thanks for reading...
Tags: दूसरों की जरूरत का भी ध्यान रखें Dusro ki jarurat ka bhi dhyan rakhen, Aware of the needs of others. आप जो करते है कहीं उससे दूसरों को हानि तो नहीं हो रही है इसका भी ध्यान रखें. जरा सोचिये आप किसी अन्य का क्या हित कर रहे है? क्या इन्सान का जन्म केवल अपने काम धंधे निपटाने के लिए ही हुआ है?
कृष्ण ऐसे देवता हैं जो काल कोठरी में पैदा हुए थे। बहुत विपरीत परिस्थितियों में उनका जन्म हुआ था। पैदा हुए नहीं और उन्हें मारने की योजनाएं पहले बनाकर रख ली गईं।
लेकिन जब वे पैदा हुए तो सारी योजनाएं धरी रह गईं। वे तो भगवान थे। चाहते तो परिस्थितियां अनुकूल कर लेते। खूब ऐशो-आराम में मजे से पैदा होते। कंस उनका क्या बिगाड़ लेता? लेकिन ऐशो-आराम की पैदाइश से कोई बड़ी बात नहीं बनती। श्रेष्ठ कर्म के लिए विपरीत परिस्थितियों का होना जरूरी है। राम जी आराम के माहौल में पले-बढ़े, लेकिन उन्हें श्रेष्ठ कर्म करना था इसलिए 14 वर्ष का वनवास उन्होंने स्वीकार कर लिया।
आज भी एक संकट काल चल रहा है। मानवता पर इतना बड़ा संकट पहले शायद ही किसी युग में आया हो। आज नफे-नुकसान का हिसाब कुछ ज्यादा हो गया है। हम सब अपने ही बारे में सोच रहे हैं और जरूरतें ऐसी कि पूरी ही नहीं हो पातीं। दरअसल, आज का इंसान भी एक वस्तु की माफिक हो गया है। हममें अपनी चिंता करने की प्रवृत्ति चरम पर है। दूसरों की चिंता हमें होती नहीं। दूसरों के बारे में सोचना हमने छोड़ दिया है।
कभी-कभी हम अपने आप में इतने खो जाते हैं कि रिश्तों की मर्यादा तक भूल जाते हैं। हम अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो जाते हैं कि ये भी नहीं सोचते कि हमारे किए इन कामों का किसी और के जीवन पर क्या विपरीत प्रभाव हो सकता है। कभी-कभी हम इतने आगे निकल जाते हैं कि दूसरों का जीवन संकट में पड़ जाता है। निजी इच्छा को किसी भी तरीके से पूरा करना ही कंसत्व है। दूसरों के लिए जीना, दूसरों की चिंता करना कृष्णत्व है।
हर रिश्ते की अपनी एक अलग मर्यादा, एक अलग जगह है और इनका अपना एक अलग ही दायरा होता है। आज की तेज रफ्तार जिंदगी ने कहीं न कहीं इन्हें धूमिल करने का काम किया है। रिश्तों की वास्तविकता से, इनकी पवित्रता से, समय-समय पर कुछ न कुछ छेड़छाड़ होती रहती है।
इन रिश्तों की अखंडता से होते खिलवाड़ के जिम्मेदार कोई और नहीं, हम स्वयं हैं| क्योंकि हम लोगों में से ही कोई ना कोई किसी स्वार्थवश, किसी लालच के कारण या अपनी किसी आकांक्षा या महत्वाकांक्षा के वशीभूत होकर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसका बोझ उठाना हमारे सामर्थ्य से परे हो जाता है।
अपनी इस जीवन शैली से हमें बाहर आना होगा। हमें विचार करना होगा कि ये रिश्ते ही हमारे समाज की अखंडता के आधार हैं। हमें ये मानना होगा और अपने अंतर्मन में इस बात को बिठाना होगा कि रिश्तों को संवारना इनको निखारना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। अपनी जरूरत पूरी करने के साथ-साथ थोड़ी दूसरों की जरूरत का भी ध्यान रखें। यही आज के युग का कृष्णत्व है।
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