आखिर हो ही गई सच्चे प्यार की जीत - Aakhir ho hi gai sachche pyar ki jeet
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कृष और निशा दोनों ही एक दूसरे को बहुत चाहते थे। दोंनो ने ही जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही एक दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थीं।
लेकिन उस समय आज की तरह का नया जमाना नहीं था। निशा की शादी उसके माता-पिता ने अपनी मर्जी से कर दी और कृष चाह कर भी कुछ ना कर सका।
उधर कृष के घर वालों ने भी कृष की शादी कर दी. लड़की बहुत सुंदर थी लेकिन कृष तो निशा का दीवाना था इसलिए उसकी पत्नी में कृष का कोई मोह नहीं था.
निशा अब अपने परिवार की जिम्मेदारियो में व्यस्त हो गई थी और कृष भी अपनी नापसंद लड़की के साथ जीवन यापन करने लगा था। दोनों के ही परिवार में बच्चे भी हो गये थे परन्तु जीवनसाथी से दोनों के ही विचार नहीं मिलते थे। इसलिए आये दिन छोटी-छोटी बातों पर तकरार हो जाती थी।
कालान्तर में दोनों ने ही अपने बच्चों की शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। अब तो परिवार में अपने-अपने जीवनसाथी से लड़ाई-झगडे के अलावा कोई दूसरा काम रह ही नहीं गया था। इसलिए दोनों ने ही अपने-अपने जीवनसाथी से विधिवत् तलाक ले लिया था।
तब तक नया ज़माना भी आ गया था इंटरनेट का युग था और शायद भगवान को भी यहीं मंजूर था. एक दिन कृष और निशा दोनों ही इंटरनेट के जरिए फिर एक दूसरे से जुड़ गए। एक–दूसरे के बिना दोनों को ही चैन नहीं मिलता था। ऐसा लगता था कि दोनों का पूर्वजन्म का कोई रिश्ता रहा होगा। दोनों की घंटों नेट पर बातें होती थी।
अब एक दिन वो समय भी आया कि दोनों फिर से विवाह के सूत्र में बंध गये। दोनों में अब जवानी जैसा रूप और लावण्य नहीं था मगर दिलों में बेइन्तहाशा प्यार था। दोनों ही बहुत खुश थे। क्योंकि असली प्यार तो दिलों में ही निवास करता है और अन्त में सच्चा प्यार जीत ही जाता है। अब तो दोनों ने भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा कि हे ऊपरवाले तेरे घर देर हैं मगर अंधेर नहीं है।
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