प्रेम ना जाने कोई उमर जाति और धर्म - Prem naa jaane koi umar jati aur dharm
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प्रिय दोस्त अक्सर सुना है की "प्यार हो जाता है किया नहीं जाता" और इसके साथ - साथ ये भी कहा जाता है कि प्यार किसी जाति, धर्म या उम्र को नहीं मानता है। प्यार किसी भी उम्र में किसी भी जाति या किसी भी धर्म के इन्सान को किसी अन्य जाति या किसी भी अन्य धर्म के इन्सान से हो सकता है।
आगे जाने से पहले हमें यह जान लेना चाहिए की जाति क्या है? और धर्म क्या है?
जो हिन्दू के घर में पैदा हो गया वह हिन्दू कहलाएगा और जिसने मुस्लिम के घर में जन्म वह मुस्लिम कहलाएगा। बिलकुल यहीं बात जाति के अंतर में देखी जाती है जो पंडित के घर में पैदा होगा वह पंडित और जो भंगी के घर में पैदा होगा वह भंगी कहलाएगा। लेकिन आप उन दोनों बच्चो को ध्यान से देखो क्या आपको कोई ऐसा निशान या कोई फर्क दिखाई देता है जो उनकी जाति या धर्म तय करता हो। क्या भगवान उनमे कोई अंतर करता है? जी नहीं।
प्रिय दोस्त यदि समाज की नजरो से छिपाकर एक हिन्दू नवजातक को मुसलमान के यहाँ रख दिया जाए और मुसलमान बच्चे को हिन्दू
के यहाँ रख दिया जाए। फिर यह समाज हिन्दू को मुसलमान और मुसलमान को हिन्दू कहेगा। जन्म से धर्म का नाता
होता तो हिन्दू हिन्दू रहता और मुसलमान मुसलमान रहता चाहे उसे जिस घर में
पालिये।
प्रिय दोस्त आइये अब प्यार पर चर्चा करते है। मेरी नजर में प्यार दो प्रकार का होता है. प्रेम के प्रकार - प्राकृतिक और सामाजिक। जाति और धर्म इन्सान द्वारा बनाए गए है सिर्फ समाज इनको मानता है। इसलिए मैं यही कहूँगा की जाति और धर्म प्राकृतिक चीज नहीं सामाजिक है। इसलिए केवल सामाजिक प्रेम जाति और धर्म को मानेगा जबकि प्राकृतिक प्रेम स्वभाववश इनकी बंदिशों का उल्लंघन करेगा।
प्राकृतिक प्रेम एक ऐसा बीज है जिसकी ठीक से देख रेख और लालन पालन हो तो वह
ऐसा विशाल वृक्ष बनेगा जिसकी फुनगियाँ आकाश से बातें करेंगी। जिसके फूलों
की खुशबू हवा में चारों तरफ फैलेगी। जैसे हवा न हिन्दू होती है न मुसलमान।
वैसे ही प्राकृतिक प्रेम किसी धर्म या जाति का नहीं होता। लेकिन सामाजिक
प्रेम इन बंधनों में जकड़े होने के कारण प्रेम कहलाने के लायक भी नहीं रह
जाता। प्राकृतिक प्रेम का अपना एक समाज हो सकता है। वह समाज एक ऐसे विशाल
परिवार की तरह होगा जिसमें सभी प्रेम से आनंदपूर्वक रहेंगे लेकिन कोई किसी
पर अपना अधिकार नहीं जमायेगा।
प्राकृतिक प्रेम की भी अपनी जाति होती है और अपना धर्म होता है जो प्यार द्वारा जन्म के आधार पर नहीं स्वभाव के मेल के आधार पर तय किए जाते है। जन्म के आधार पर जो जाति और धर्म समाज में प्रचलित है वह भ्रामक है वास्तविक जाति और धर्म नहीं है। इस जाति और इस धर्म का उपयोग समाज के धूर्त लोग अपने स्वार्थ के लिए और राजनेता वोट के लिए करते हैं। जाति और धर्म शोषण का एक महत्वपूर्ण औजार है। इसलिए शोषक वर्ग इसे हर हालत में बचाकर रखना चाहता है। प्राकृतिक प्रेम ही इस जाति धर्म के अंतर को मिटा सकता है।
सेक्स का संबंध शरीर से है। लेकिन प्रेम का संबंध शरीर से ज्यादा मन से
है। भाव से है। इसलिए भावपूर्ण प्रेम उम्र का अतिक्रमण कर जाता है। वह उम्र
को नहीं मानता। जो प्रेम उम्र को न माने समझिये भाव का है। प्रेम की
यात्रा भाव से भी आगे बढ़ती है। कहते हैं यह आत्मा तक पहुँचती है और जन्म
जन्मांतर तक चल सकती है। वहाँ तक यात्रा करना बहुत रोमांचक हो सकता है।
जो
लोग सेक्स को ही प्रेम समझते हैं उनका कहना ठीक है कि बुढ़ापे में प्रेम
दुखदायी हो जाता है। इसलिए सामाजिक प्रेम करने वालों को उम्र का बंधन
स्वीकार लेना चाहिए। लेकिन जो प्रेम को इससे अलग भी कुछ समझते हैं उनके लिए
प्रेम सदा सुखदायी है। इसलिए प्राकृतिक प्रेम में उम्र का कोई बंधन नहीं
होता। वहाँ हर उम्र प्यार की उम्र होती है। हर मौसम प्यार का मौसम होता है।
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