ढोला और मारु की एक अधूरी प्रेमकथा Dhola aur maaru ki ek adhuri premkatha
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राजपूत प्रेम की गाथा है ढोला-मारु। मारू हीरापुर गांव में रहने वाली एक सुंदर लड़की थी। एक दिन ढोला नाम का एक बहुत ही खुबसूरत परदेसी हीरापुर गांव में आया। ढोला बांसुरी बहुत अच्छी बजाता था उसने आते ही बांसुरी की मीठी धुन से गांव वालों का दिल जीत लिया।
राजपूत प्रेम की गाथा है ढोला-मारु। मारू हीरापुर गांव में रहने वाली एक सुंदर लड़की थी। एक दिन ढोला नाम का एक बहुत ही खुबसूरत परदेसी हीरापुर गांव में आया। ढोला बांसुरी बहुत अच्छी बजाता था उसने आते ही बांसुरी की मीठी धुन से गांव वालों का दिल जीत लिया।
उसकी बांसुरी की मनमोहक धुन में मारू भी खोती चली गई। धीरे - धीरे ढोला और मारू आपस में प्रेम करने लगे और साथ - साथ जीने - मरने की कसमें खाने लगे। ढोला अपनी मारू के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार था। वह मारू को दुनिया के सारे सुख देने की कसमें खाने लगा। मारू भी उन कसमों पर भरोसा करने लगी।
लेकिन एक दिन मारू पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा जब उसके सामने सिहलगढ़ की रहने वाली मारवाणी आ खड़ी हुई। मारवाणी ढोला की महारानी थी। वह ढोला को अपने साथ ले जाने के लिए आई थी पर ढोला उस समय लौटने के लिए तैयार नहीं हुआ। मारवाणी वापस सिहलगढ़ लौट गई, पर मारवाणी के लौटने के बाद ढोला का मन इस गांव से उखड़ने लगा था। मारू और ढोला के सम्बन्ध यहीं से बिखरने लगे थे।
समय गुजरने के साथ ही ढोला के
सपनों में भी तब्दीली आने लगी थी। अब ढोला केवल धन कमाने का ख्वाब देखता।
उसे बहुत सारा धन कमाना था। उसे दुनिया को बहुत कुछ करके दिखाना था। समय के
साथ ढोला भी बदल गया था या ढोला ऐसा ही था, मारू समझ नहीं पाती। अब ढोला को
मारू के चेहरे की उदासी बेचैन नहीं करती थी। वह मारू को दर किनार करने
लगा। ढोला को अब मारू की कोई भी बात गाली जैसी लगती थी।
वह अब मारवाणी के साथ पहाड़पुर में बसने का सपना देखने लगा। एक दिन ढोला का सपना पूरा हो गया। पंखों वाला घोड़ा एक दिन जमीं पर उतर आया। वह उस घोड़े पर बैठकर अपनी मारवाणी को लेकर पहाड़पुर चला गया। वह वहां जाकर व्यापार करने लगा। अब उसके पास बहुत सारा धन जमा हो गया था।
बहुत वर्ष बीत गए थे। एक दिन उसे उसे हीरापुर गांव की बहुत
याद आई और साथ ही मारू की भी याद आई जिसे वह कभी प्यार करता था और उसे
बिना बताए ही पहाड़पुर आ बसा था पर अब पहाड़पुर से गांव लौटना संभव नहीं था। पहाड़पुर की माया ही ऐसी थी। इधर
मारू उसकी प्रतीक्षा में एक पत्थर के रूप में बदल चुकी थी। आज भी
हीरापुर गांव में उस पत्थर के दर्शन किये जा सकते हैं।
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