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बच्चा अस्वाभाविक शरारत तो नहीं करता Bachcha asvabhavik shararat to nahin karta
बच्चा अस्वाभाविक शरारत तो नहीं करता Bachcha asvabhavik shararat to nahin karta. आपका बच्चा ज्यादा शरारत तो नहीं करता है? अधिक शरारत करना भी क्या कोई बीमारी है? कैसे पहचाने कि बच्चे को हाइपरकिनेसिस है? शरारती बच्चों का इलाज, शरारती बच्चों को कैसे सुधारें, जिद्दी बच्चों के लिए उपाय इन हिंदी. कैसे पहचाने की बच्चें द्वारा की गई शरारत नोर्मल है या बीमारी का लक्षण है? शरारती बच्चे की परवरिश करते समय ध्यान में रखें ये बातें. Kaise Karein Bachchon ka Vikas. बच्चे की शरारत से परेशान माँ बाप. बच्चों को डराना होता है सबसे खतरनाक. बच्चे की शरारत से तंग. बच्चो को जिद्दी बनने से बचने के उपाय. बाल विकास और शुरुआती सीख.
जी हां! कहीं आपका बच्चा अत्यधिक शरारत तो नहीं करता है? बच्चों में अत्यधिक शरारत एक तरह की बीमारी का लक्षण है, इस बीमारी को हाइपरकिनेसिस कहते हैं। बहुत संभव है कि यदि एक बच्चा जो बेहद अधीर दिखे, बार बार उठे बैठे, चीजों को तोड़कर फेंके, अधूरा काम करे, चिड़चिड़ा और अकेले रहने वाला हो, तो ऐसे बच्चे को हाइपरकिनेसिस हो सकता है, कहना न होगा कि ऐसे बच्चे मां को तो रूला ही देते हैं।

जी हां! कहीं आपका बच्चा अत्यधिक शरारत तो नहीं करता है? बच्चों में अत्यधिक शरारत एक तरह की बीमारी का लक्षण है, इस बीमारी को हाइपरकिनेसिस कहते हैं। बहुत संभव है कि यदि एक बच्चा जो बेहद अधीर दिखे, बार बार उठे बैठे, चीजों को तोड़कर फेंके, अधूरा काम करे, चिड़चिड़ा और अकेले रहने वाला हो, तो ऐसे बच्चे को हाइपरकिनेसिस हो सकता है, कहना न होगा कि ऐसे बच्चे मां को तो रूला ही देते हैं।
अपने संगी साथियों, टीचर और स्कूल के अधिकारियों से भी लगातार डांटे जाते हैं, पर दोष इसमें बच्चे का नहीं बीमारी का है। एक सामान्य रूप से शरारती बच्चे और हाइपरकिनेसिस के रोगी में सबसे बड़ा फर्क यह है कि जहां शरारती बच्चे जानबूझकर दूसरों को खिझाने के लिये शरारत करता है और अपनी शरारत के दंड से बचना चाहता है वहीं हाइपरकिनेसिस का शिकार बच्चा इसलिये चंचल होता है कि उसका शरीर उसके काबू में रह नहीं पाता। इसी कारण उसकी शरारत नटखट चुहलबजी या छेड़खानी भरी नहीं बल्कि परेशान करने वाली और उत्तेजक होती है और हमेशा पकड़ी जाती है।
वह इनसे बचने की कोशिश नहीं करता। कुछ वर्ष पहले तक डाक्टर इसे बच्चे की मस्तिष्क की किसी स्थायी विकृति से जुड़ा समझते थे पर ‘इलेक्ट्रो इनसेफेलाग्राम’ (मस्तिस्क का महीन एक्सरे उतारने वाला यंत्र) जैसे यंत्रों की मदद से यह धारणा अब निर्मल साबित हो गई है। परीक्षणों से पता चलता है कि सामान्य बच्चे के मस्तिष्क स्नायुओं को गतिशील बनाने वाली कुदरती विद्युत तरंगे उसके शरीर मे बनती हैं, वे हाइपरकिनेटिक बच्चों के मस्तिष्क में बहुत धीमी गति और अल्पसंख्या में ही बन पाती है।
ये तरंगे दिमाग के ऊपरी और निचले हिस्से बीच फैले हुये ‘‘रेडीक्यूलर एक्टिवेfटंग सिस्टम (आर.ए.एस.) नामक स्नायुजाल में बनती है और यही तरंगे शरीर का गतिविधियों को काबू में रखने के लिये उचित आदेश दिमाग के निचले भाग से ऊपरी आदेश दिमाग के निचले भाग में पहुंचाती है। हाइपरकिनेटिक बच्चों के मस्तिष्क में यह नियंत्रक आदेश बहुत धीमी गति से पहुंचते हैं जिसके कारण से उनकी हरकते बेकाबू होती है।
इस रोग के उपचार के लिये माता-पिता को किसी अच्छे न्यूरो सर्जन की सहायता लेनी चाहिये। इसके लिये पहले बच्चे का दिमागी परीक्षण (ई.ई.जी.) लिया जाता है, फिर यदि बीमारी की पुष्टि हो जाती है तो उन्हें कुछ विशेष तरह की उत्तेजक दवाइयों के क्रमवार प्रयोग की सलाह दी जाती है। इससे गड़बड़ी को धीमे धीमे हटाने में मदद मिलती है।
एक बार यदि मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में सही संतुलन बैठ गया तो धीरे-धीरे ऐसे बच्चे के शरीर की चंचलता (शरारत) पर काबू पाया जा सकता है। फिर बच्चे का मन दूसरे कार्यो में भी रमने लगता है। यदि ध्यान व धैर्य के साथ पूरी प्रक्रिया अपनायी जाये तो ऐसे बच्चों की बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।
रचनाकार :- अश्विनी केशरवानी
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