चुकन्दर की खेती करने का आधुनिक तरीका Chukandar ki kheti karne ka aadhunik tarika
चुकन्दर की खेती करने का आधुनिक तरीका Chukandar ki kheti karne ka aadhunik tarika चुकन्दर की खेती कैसे करें Chukandar (Beetroot) ki kheti Kaise Kare चुकन्दर की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Chukandar ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. खेती मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा. अधिकतम उपज के लिए ध्यान रखने योग्य बातें. बेहतर फसल के लिए टिप्स सुझाव और उपाय. कम खर्च में ज्यादा पैदावार कैसे ले. अच्छी फसल तैयार करने के लिए अपनाए ये तरीके.

चुकन्दर भी जड़ वाली सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी जड़ों को सब्जी व सलाद के रूप में अधिक प्रयोग करते हैं। एक परिवार के लिए भी गार्डन में उगाना विशेष महत्त्व रखता है। जड़ों का आकार शलजम जैसा होता है। लेंकिन रंग अलग ही स्पेशल होता है। रंग को गहरा लाल कह सकते हैं।

चुकन्दर भी जड़ वाली सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी जड़ों को सब्जी व सलाद के रूप में अधिक प्रयोग करते हैं। एक परिवार के लिए भी गार्डन में उगाना विशेष महत्त्व रखता है। जड़ों का आकार शलजम जैसा होता है। लेंकिन रंग अलग ही स्पेशल होता है। रंग को गहरा लाल कह सकते हैं।
चुकन्दर का सेवन कच्चा सलाद व जूस में विशेष स्थान रखते हैं। इसके अतिरिक्त चीनी-उद्योग में भी प्रयोग करते हैं। चुकन्दर के प्रयोग से कुछ महत्त्वपूर्ण पोषक तत्व भी प्राप्त होते हैं, जैसे- प्रोटीन, कैल्शियम, आजीलिक एसिड, फास्फोरस तथा कार्बोहाइड्रेटस आदि।
चुकन्दर की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु - चुकन्दर की फसल को लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में पैदा किया जा सकता है। लेकिन सर्वोत्तम भूमि बलुई दोमट या दोमट मानी जाती है। कंकरीली व पथरीली मिट्टी में वृद्धि ठीक नहीं होती। भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच का होना चाहिए। सर्दी की फसल होने के कारण जलवायु ठन्डी उपयुक्त रहती है। लेकिन कुछ गर्म मौसम में भी उगाया जा सकता है। जाड़ों की फसल में ‘सुगर’ की मात्रा अधिक बनती है। तापमान 8-10 डी० से० ग्रेड हो या नीचे हो तो जड़ों का आकार बढ़ता है तथा जड़ बाजार के लिए उचित होती है।
चुकन्दर की खेती के लिए खेत की तैयारी - इस फसल की तैयारी उचित ढंग से करनी चाहिए यदि भूमि रेतीली है तो 2-3 जुताई करें तथा कुछ भारी हो तो पहली जुताई मिट्टी पलटने वालें हल से करें तथा अन्य 3-4 जुताई करके पाटा चलायें और मिट्टी को बिकुल भुरभुरी कर लें जिससे जड़ों की वृद्धि ठीक हो सके। तत्पश्चात् छोटी-छोटी क्यारियां बनायें।
बगीचों में 3-4 गहरी जुताई-खुदाई करें। घास-घूस को बाहर निकालें तथा छोटी-छोटी क्यारियां बनायें। मिटटी को बारीक कर लें।
चुकन्दर की उन्नतशील किस्में - चुकन्दर की दो मुख्य किस्में है जिन्हें उगाने की सिफारिश की जाती है-
1. डेटरोडिट डार्क रेड (Detrpdot Dark Red)- यह किस्म 80-90 दिन में तैयार हो जाती हैं तथा पत्तियां कुछ गहरालाल रंग (Dark Red) लिये हरी होती हैं। जड़ें चिकनी, गोलाकार व गहरी लाल रंग की होती हैं तथा गूदे में हल्के लाल रंग की धारियां व गूदा रवेदार मीठा होता है |
2. क्रिमसोन ग्लोब (Krimson Glob)- यह किस्म भी अधिकतर बोते हैं। जड़ें चपटे आकार की छोटी होती है। पत्तियां गहरी लाली लिये हुए हरे रंग वाली होती हैं। जड़ें ग्लूबलर होती है। गूदा गहरे लाल रंग का होता है तथा धारियों वाला होता है।
बीज की मात्रा एवं बुवाई का समय व ढंग - चुकन्दर के उत्तम सफल उत्पादन के लिए बीज का चुनाव मुख्य है। बीज का उत्तम होना आवश्यक है। साधारणत: बीज की मात्रा 6-8 किलो प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। बीज की मात्रा, बुवाई का ढंग, समय व किस्म पर भी निर्भर करता है। खेत तैयारी के बाद सारे खेत में एक साथ न बोकर 10-15 दिन के अन्तर से बोयें जिससे जड़ें लम्बे समय तक मिलती रहें। जाड़े की फसल होने के कारण बोने का समय अक्टूबर से नवम्बर तक होता है। बीज की छोटी क्यारियां बनायें तथा कतारों में लगायें। इन कतारों की दूरी 30 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-12 सेमी. रखें जिससे बड़ी जड़ें आपस में मिल न सकें। बीज की गहराई अधिक न लेकर 1-5-2 सेमी. रखें जिससे अंकुरण में परेशानी न आये। गहरा बीज गल, सड़ जाता है।
बगीचों के लिये बीज 20-25 ग्राम 8-10 मी. क्षेत्र के लिए काफी होता है। यदि गमलों में लगाना हो तो 2-3 बीज बोयें तथा उपरोक्त समय पर बोयें। कतारों की दूरी 25-30 सेमी. व पौधों की दूरी 8-10 सेमी. रखें।
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग - जड़ों की फसल होने से देशी खाद या कम्पोस्ट खाद की मात्रा भूमि की किस्म के ऊपर निर्भर करती है। बलुई दोमट भूमि के लिये 15-20 ट्रौली खाद (एक ट्रौली में एक टन खाद) प्रति हैक्टर खेत तैयार करते समय दें। यदि भूमि रेतीली है तो हरी खाद के रूप में भी दें जिससे खेत में ह्यूमस व पोषक तत्वों की प्राप्ति हो जाये। रासायनिक खाद या उर्वरकों की मात्रा, जैसे-नत्रजन 60-70 किलो, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाश 80 किलो प्रति हैक्टर के लिये पर्याप्त होता है। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई से 15-20 दिन पूर्व मिट्टी में मिलायें तथा शेष नत्रजन को बोने के बाद 20-25 दिन व 40-45 दिन के बाद दो बार में छिड़कने की सिफारिश की जाती है। इस प्रकार से जड़ों का विकास ठीक होता है।
बगीचों के लिये तीनों उर्वरकों की मात्रा 350 ग्राम (प्रत्येक-यूरिया, डी.ए.पी. व म्यूरेट ऑफ पोटाश) को 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र में डालें। यूरिया की मात्रा को देना पौधे बड़े होने के बाद 2-3 बार में छिड़कें। गमलों में तीनों उर्वरकों की 3-4 चम्मच मिट्टी के मिश्रण में मिलायें तथा यूरिया को पौधे कमजोर होने पर 1-2 चम्मच दें तथा 5-6 चम्मच प्रति गमला सड़ी गोबर की खाद बोने से पहले ही मिट्टी में मिला लें।
सिंचाई - बुवाई के बाद फसल की सिंचाई 10-15 दिन के बाद पहली सिंचाई करें। यदि पलेवा करके बुवाई की है तो नमी के अनुसार पानी लगायें। ध्यान रहे कि पहली सिंचाई हल्की करें। शरद-ऋतु की फसल होने से 12-15 दिन के अन्तराल से सिंचाई करते रहें अर्थात् खेत में नमी बनी रहे। यदि गर्मी हो तो 8-10 दिन के अन्तर से पानी देते रहें।
बगीचों व गमलों के लिये सिंचाई का विशेष ध्यान रखें। पहला पानी हल्का हो तथा अन्य पानी नमी के अनुसार 8-10 दिन के बाद देते रहे। गमलों में पानी 2-3 दिन के अन्तर से दें। कोशिश करें कि पानी शाम के समय दें जिससे मिट्टी कम सूखेगी और पौधों की अधिक वृद्धि होगी।
खरपतवारों का नियन्त्रण - चुकन्दर की फसल में रबी-फसल वाले खरपतवार अधिक पैदा होते हैं। नियन्त्रण के लिये सबसे उत्तम है कि सिंचाई के 3-4 दिन बाद निकाई-गुड़ाई कर दें जिससे घास, वथूआ आदि निकल जायेंगे तथा फसल की जड़ें अधिक वृद्धि कर सकेंगी अर्थात् उपज अधिक मिलेगी।
बगीचों व गमलों की 1-2 गुड़ाई आरम्भ में ही करें जिससे पौधों को क्षति न पहुंचे और घास को बाहर निकाल सकें। पौधों की गुड़ाई करने से जड़ें बड़ी मिलती हैं।
रोगों से चुकन्दर के पौधों की सुरक्षा कैसे करें - पौधों पर कुछ कीटों का आक्रमण होता है। जैसे- पत्ती काटने वाला कीड़ा, वीटिल। नियन्त्रण के लिये अगेती फसल बोयें तथा मेटास्सिटाक्स या मैलाथियान का .2% (दो ग्राम दवा एक लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करें।
बीमारी भी दो हैं-
1. पत्तियों का धब्बा- इस रोग में पत्तियों पर धब्बे जैसे हो जाते हैं। बाद में गोल छेद बनकर पत्ती गल जाती है। नियन्त्रण के लिये फंजीसाइड, जैसे- डाइथेन एम-45 या बेवस्टिन के .1% घोल का छिड़काव 15-20 दिन के अन्तर पर करने से आक्रमण रुक जाता है।
2. रुट-रोग का रोग- यह रोग जड़ों को लगता है जिससे जड़ें खराब होती हैं। नियन्त्रण के लिए फसल-चक्र अपनायें। प्याज, मटर बोयें तथा बीजों को मकर्यूरिक क्लोराइड के 1% के घोल से 15 मिनट तक उपचारित करें। अन्य रोग अवरोधी फसलों को साथ बोयें।
खुदाई - खुदाई बड़ी व मीठी जड़ों की करें तथा बाजार की मांग के हिसाब से करते रहे। खुदाई खुरपी या पावड़े से करें तथा जड़ें कट न पायें। खोदने से पहले हल्की सिंचाई करें जिससे आसानी से खुद सकें तथा ग्रेडिंग करके बाजार भेजें जिससे मूल्य अधिक मिल सके।
उपज - चुकन्दर की औसतन 30-40 क्विंटल प्रति हैक्टर जड़ों की प्राप्ति हो जाती है।
बगीचों में 20-25 किलो जड़ें 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र प्राप्त हो जाती हैं जिनका कि समय-समय पर जूस, सलाद व सब्जी में प्रयोग करते रहते हैं।
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