लौकी की खेती करने का आधुनिक तरीका Lauki Ki Unnat Kheti karne ka safal tarika
लौकी घीया की खेती करने का आधुनिक तरीका Lauki Ghiya Ki Unnat Kheti karne ka safal tarika लौकी की खेती कैसे करें Lauki Ki Unnat Kheti Kaise Kare लौकी की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Lauki ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. खेती मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा. अधिकतम उपज के लिए ध्यान रखने योग्य बातें. बेहतर फसल के लिए टिप्स सुझाव और उपाय. कम खर्च में ज्यादा पैदावार कैसे ले. अच्छी फसल तैयार करने के लिए अपनाए ये तरीके.
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लौकी को घीया नाम से भी जाना जाता है | इसका बाहरी आवरण संगीत यंत्र बनाने के काम भी आता है | लौकी के हरे फलों से सब्जी, रायता, खीर, कोफ्ते, अचार एवं मिठाई बनाई जाती है| लौकी की प्रकृति ठंडी होती है| इसके सुपाच्य होने के कारण चिकित्सक रोगियों को लौकी की सब्जी अधिक से अधिक खाने की सलाह देते हैं|
लौकी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु - लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त होती है | जबकि अधिक वर्षा एवं बादलों भरे दिन इसकी फसल को हानि पहुंचाते हैं | पाला रहित जलवायु में लौकी की उपज अच्छी प्राप्त होती है | अतः लौकी की खेती के लिए उत्तर एवं मध्य भारत में फरवरी से जून तक का समय सबसे अधिक अनुकूल होता है |
लौकी के खेत की तैयारी कैसे करें - वैसे तो लौकी की फसल हर प्रकार की भूमि में हो सकती है लेकिन उचित जल निकास युक्त प्रचुर जीवांश से युक्त दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम है | इसके लिए भूमि का Ph उदासीन होना चाहिए, उदासीन का मतलब ना अम्लीय और ना ही छारीय होना चाहिए अर्थात 6.5 से 7.5 बीच में होना चाहिए |
लौकी के खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले उसमें हरी खाद डालना चाहिए | इसके लिए एक एकड़ भूमि के लिए 2 किलोग्राम सनई, 4 किलोग्राम मूग या दलहन, एक किलोग्राम तिलहन एवं 2 किलोग्राम ढेंचा बीज लेकर बुआई कर देनी चाहिए| जैसे ही यह फसल 45 दिनों की हो हैरो से जुताई कर 1000 लीटर बायोगैस स्लरी अथवा संजीवक खाद डाल दे और इस सप्ताह के बाद मिट्टी पलट हल से जुताई कर इसे खुला छोड़ दें | इसके 1 सप्ताह के पस्चात तीन से चार बार देसी हल से जुताई कर खेत में पाता लगा कर इसे समतल कर लें | उसके बाद 10-10 फीट पर 1 फीट गहरी तथा 2 फीट चौड़ी नालियां बनाकर 3-3 फिट के अंतराल में थावले बना कर प्रत्येक थावले में 1 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट खाद अथवा गोबर की सड़ी खाद तथा 200 ग्राम राख मिलाकर थावला को ढक देते हैं, उसके बाद नालियों में सिंचाई करें | सिंचाई के पांच-छह दिन बाद लौकी के बीजों की बुवाई करें | बुवाई करते समय प्रत्येक थावले में 4 से 6 बीज की बुवाई करें |
लौकी की अच्छी किस्में:-
1. पूसा समर लोंग - यह किस्म गर्मियों एवं वर्षा दोनों ऋतुओं में अच्छी उपज देती है | इस किस्म की बेल में फल अधिक संख्या में लगते हैं तथा फल 40 से 50 सेंटीमीटर लंबे होते हैं | इसकी उपज 70065 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है
2. पंजाब लॉन्ग - यह किस्म बहुत उपयोगी एवं अच्छी उपज देने वाली है | फल लंबे हरे कोमल होते हैं | वर्षा ऋतु में यह किस्म लगाना ज्यादा अच्छा होता है | इसकी उपज 80 से 85 क्विंटल प्रति एकड़ होती है
3. पंजाब कोमल - यह लौकी की अगेती मध्यम आकार की लंबे फल वाली अंगूरी रंग की किस्म है इसके फल लंबे समय तक ताजे रहते हैं और इस की उपज 150 क्विंटल प्रति एकड़ तक की जा सकती है
4. पूसा नवीन - यह वसंत ऋतु के लिए सबसे उत्तम किस्मों में से एक है | इस किस्म के फल अन्य किस्मों की तुलना में जल्दी तैयार हो जाते हैं| फल छोटे लंबे बेलनाकार मध्यम मोटाई के साथ हरे रंग के होते हैं | फल का औसत भार 800 ग्राम के आसपास होता है | छोटे परिवारों के लिए इस किस्म के फल बहुत ही आदर्श आकार व वजन के माने जाते हैं |
5. कोयंबटूर - यह दक्षिण भारत के लिए सबसे बढ़िया किस्म का है| यह वहां की लकड़ी एवं छारीय मिट्टी में अच्छी उपज देती है जिसकी आवश्यक उपज 70 कुंतल प्रति एकड़ होती है
6. आजाद नूतन - इस किस्म को काफी प्रसिद्धि प्राप्त है क्योंकि यह बीज की बुवाई के 60 दिन पश्चात ही फल देना प्रारंभ कर देती है | फल 1 किलो से डेढ़ किलो तक होते हैं और औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ तक आती है|
लौकी के खेत की सिंचाई निराई व गुड़ाई कैसे करें - लौकी की फसल में सिंचाई काफी महत्वपूर्ण है | इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पानी पूरे खेत में न देकर सिर्फ आंवले में ही दें जिससे फंगस रोगों का कम-से-कम आक्रमण हो सके | वैसे तो ग्रीष्म ऋतु में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए | सिंचाई के एक दिन पश्चात 200 ग्राम राख में 5 ग्राम हींग खेत में मिलाकर देने से पौधे की बेलें स्वस्थ रहती है तथा फल परिपक्व होने से पूर्व बेल से टूटते नहीं है|
चूकि लौकी की फसल ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु की फसल है अतः इसमें खरपतवार अधिक संख्या में उगते हैं| इनको समय-समय पर खेत से निकालना जरूरी होता है तथा नियमित अंतराल पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए|
फसल में कुदरती खाद का प्रयोग कैसे करें - लौकी की फसल में बीज बुवाई के 3 सप्ताह पश्चात जब पौधे में तीन से चार पत्ते निकलने प्रारंभ हो तो उस समय 2000 लीटर बायोगैस स्लरी अथवा संजीवक खाद अथवा 10 किलो गोबर से निर्मित जीवामृत खाद प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिए | दूसरी बार जब पौधों पर फूल आने लगे तब उस समय पुनः 1000 लिटर बायोगैस स्लरी अथवा 1000 लिटर संजीवक खाद अथवा 20 किलो गोबर से निर्मित जीवामृत खाद का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से करें | तीसरी बार उपरोक्त खाद प्रथम बार लौकी तुड़ाई के पश्चात देने से उपज अच्छी प्राप्त होती है|
लौकी के फसल की सुरक्षा कैसे करें - लौकी की फसल में कुदरती कीट रक्षक के नियमित अंतराल पर छिड़काव से फसल पूरी तरह रोगमुक्त रहती है तथा उपज काफी अच्छी प्राप्त होती है | लौकी की फसल पर कुछ प्रमुख लगने वाले रोगों का कुदरती निदान कैसे करें यह हम नीचे आपको बता रहे हैं | इसे अपना कर आप अपने खेत में रोगों से मुक्ति पा सकते हैं|
1. रेड बीटल - यह हानिकारक कीट है जो लौकी के पौधे की प्रारंभिक वृद्धि के समय होता है और पत्तियों को खाता है जिससे प्रकाशसंश्लेषण क्रिया धीमी पड़ जाती है | जिसके कारण पौधे में अच्छी तरीके से वृद्धि नहीं हो पाती है | रेड बीटल की यह सूडी बहुत खतरनाक होती है | यह भूमि के अंदर पौधों की जड़ों को काट कर उन्हें नष्ट कर देती है | रेड बीटल से लौकी की फसल को सुरक्षा देने के लिए पतंजलि निम्बादि कीट रक्षक अत्यंत प्रभावी है |5 लीटर कीट रक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर सप्ताह में दो बार छिड़काव करना चाहिए| छिड़काव के बाद नीम की लकड़ी की राख छिड़कने से परिणाम और अधिक अच्छा मिलता है|
2. फ्रूट फ्लाई - यह मक्खी लौकी के फलों में प्रवेश कर अंडे देती है | अंडों से सूंडी निकलती है जो फलों की गुणवत्ता को हानि पहुंचाती है| जिससे किसान भाइयों को बाजार से अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है| इस फ्रूट फ्लाई मक्खी से फसल की सुरक्षा के लिए जब लौकी फसल पर फूल निकलने शुरू हो रहे हो उस समय पतंजलि बायो रिसर्च इंस्टिट्यूट के “अभिमन्यु” 100मिली को 3 लीटर खट्टी लस्सी में 150 ग्राम कापर सल्फेट पाउडर के साथ 40 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए | यह छिड़काव प्रति सप्ताह करना आवश्यक है|
3. पाउडरी मिल्ड्यू रोग - यह रोग एरीसाइफी सिकोरेसिएरम नामक कवक के कारण होता है| इस फंगस की वजह से लोकी की बेल वा पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल जैसा फैल जाता है जो बाद में कत्थई रंग में बदल जाता है | इसमें पत्तियां पीली होकर सूख जाती है| इस रोग से लौकी की फसल के बचाव के लिए 5 लिटर खट्टे छाछ में 2 लीटर गोमूत्र, 30 लीटर पानी में मिलाकर प्रतिदिन 4 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहे | 2 सप्ताह पश्चात फसल पाउडरी मिल्ड्यू रोग से होने वाली हानी से बच जाती है|
4. लौकी का एन्थ्रेक्नोज रोग - लौकी की फसल में एन्थ्रेक्नोज रोग क्लेटोटाईकम नामक फंगस के कवक के कारण होता है| इस रोग के कारण पत्तियों एवं फलों पर लाल-काले धब्बे बन जाते हैं| जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है| इसके फलस्वरूप पौधा स्वस्थ नहीं रह पाता है| इस रोग की रोकथाम के लिए 5 लीटर गोमूत्र में 2 किलोग्राम अमरूद अथवा आडू के पत्ते उबालकर ठंडा कर, छाने, उसमे 30 लीटर पानी मिलाकर तीन-तीन दिन के अंतराल पर लगातार छिड़काव करे|
लौकी की तोड़ाई कैसे करे - लौकी के फलों की तोड़ाई कोमल अवस्था में ही कर लेना चाहिए | कठोर फलों से अच्छी सब्जी भी नहीं बनती और बाजार में इसका मूल्य भी कम मिलता है
सोर्स : योग सन्देश
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लौकी को घीया नाम से भी जाना जाता है | इसका बाहरी आवरण संगीत यंत्र बनाने के काम भी आता है | लौकी के हरे फलों से सब्जी, रायता, खीर, कोफ्ते, अचार एवं मिठाई बनाई जाती है| लौकी की प्रकृति ठंडी होती है| इसके सुपाच्य होने के कारण चिकित्सक रोगियों को लौकी की सब्जी अधिक से अधिक खाने की सलाह देते हैं|
लौकी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु - लौकी की खेती के लिए गर्म एवं आद्र जलवायु सबसे अधिक उपयुक्त होती है | जबकि अधिक वर्षा एवं बादलों भरे दिन इसकी फसल को हानि पहुंचाते हैं | पाला रहित जलवायु में लौकी की उपज अच्छी प्राप्त होती है | अतः लौकी की खेती के लिए उत्तर एवं मध्य भारत में फरवरी से जून तक का समय सबसे अधिक अनुकूल होता है |
लौकी के खेत की तैयारी कैसे करें - वैसे तो लौकी की फसल हर प्रकार की भूमि में हो सकती है लेकिन उचित जल निकास युक्त प्रचुर जीवांश से युक्त दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम है | इसके लिए भूमि का Ph उदासीन होना चाहिए, उदासीन का मतलब ना अम्लीय और ना ही छारीय होना चाहिए अर्थात 6.5 से 7.5 बीच में होना चाहिए |
लौकी के खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले उसमें हरी खाद डालना चाहिए | इसके लिए एक एकड़ भूमि के लिए 2 किलोग्राम सनई, 4 किलोग्राम मूग या दलहन, एक किलोग्राम तिलहन एवं 2 किलोग्राम ढेंचा बीज लेकर बुआई कर देनी चाहिए| जैसे ही यह फसल 45 दिनों की हो हैरो से जुताई कर 1000 लीटर बायोगैस स्लरी अथवा संजीवक खाद डाल दे और इस सप्ताह के बाद मिट्टी पलट हल से जुताई कर इसे खुला छोड़ दें | इसके 1 सप्ताह के पस्चात तीन से चार बार देसी हल से जुताई कर खेत में पाता लगा कर इसे समतल कर लें | उसके बाद 10-10 फीट पर 1 फीट गहरी तथा 2 फीट चौड़ी नालियां बनाकर 3-3 फिट के अंतराल में थावले बना कर प्रत्येक थावले में 1 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट खाद अथवा गोबर की सड़ी खाद तथा 200 ग्राम राख मिलाकर थावला को ढक देते हैं, उसके बाद नालियों में सिंचाई करें | सिंचाई के पांच-छह दिन बाद लौकी के बीजों की बुवाई करें | बुवाई करते समय प्रत्येक थावले में 4 से 6 बीज की बुवाई करें |
लौकी की अच्छी किस्में:-
1. पूसा समर लोंग - यह किस्म गर्मियों एवं वर्षा दोनों ऋतुओं में अच्छी उपज देती है | इस किस्म की बेल में फल अधिक संख्या में लगते हैं तथा फल 40 से 50 सेंटीमीटर लंबे होते हैं | इसकी उपज 70065 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो जाती है
2. पंजाब लॉन्ग - यह किस्म बहुत उपयोगी एवं अच्छी उपज देने वाली है | फल लंबे हरे कोमल होते हैं | वर्षा ऋतु में यह किस्म लगाना ज्यादा अच्छा होता है | इसकी उपज 80 से 85 क्विंटल प्रति एकड़ होती है
3. पंजाब कोमल - यह लौकी की अगेती मध्यम आकार की लंबे फल वाली अंगूरी रंग की किस्म है इसके फल लंबे समय तक ताजे रहते हैं और इस की उपज 150 क्विंटल प्रति एकड़ तक की जा सकती है
4. पूसा नवीन - यह वसंत ऋतु के लिए सबसे उत्तम किस्मों में से एक है | इस किस्म के फल अन्य किस्मों की तुलना में जल्दी तैयार हो जाते हैं| फल छोटे लंबे बेलनाकार मध्यम मोटाई के साथ हरे रंग के होते हैं | फल का औसत भार 800 ग्राम के आसपास होता है | छोटे परिवारों के लिए इस किस्म के फल बहुत ही आदर्श आकार व वजन के माने जाते हैं |
5. कोयंबटूर - यह दक्षिण भारत के लिए सबसे बढ़िया किस्म का है| यह वहां की लकड़ी एवं छारीय मिट्टी में अच्छी उपज देती है जिसकी आवश्यक उपज 70 कुंतल प्रति एकड़ होती है
6. आजाद नूतन - इस किस्म को काफी प्रसिद्धि प्राप्त है क्योंकि यह बीज की बुवाई के 60 दिन पश्चात ही फल देना प्रारंभ कर देती है | फल 1 किलो से डेढ़ किलो तक होते हैं और औसत उपज 80 से 90 क्विंटल प्रति एकड़ तक आती है|
लौकी के खेत की सिंचाई निराई व गुड़ाई कैसे करें - लौकी की फसल में सिंचाई काफी महत्वपूर्ण है | इसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पानी पूरे खेत में न देकर सिर्फ आंवले में ही दें जिससे फंगस रोगों का कम-से-कम आक्रमण हो सके | वैसे तो ग्रीष्म ऋतु में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए | सिंचाई के एक दिन पश्चात 200 ग्राम राख में 5 ग्राम हींग खेत में मिलाकर देने से पौधे की बेलें स्वस्थ रहती है तथा फल परिपक्व होने से पूर्व बेल से टूटते नहीं है|
चूकि लौकी की फसल ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु की फसल है अतः इसमें खरपतवार अधिक संख्या में उगते हैं| इनको समय-समय पर खेत से निकालना जरूरी होता है तथा नियमित अंतराल पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए|
फसल में कुदरती खाद का प्रयोग कैसे करें - लौकी की फसल में बीज बुवाई के 3 सप्ताह पश्चात जब पौधे में तीन से चार पत्ते निकलने प्रारंभ हो तो उस समय 2000 लीटर बायोगैस स्लरी अथवा संजीवक खाद अथवा 10 किलो गोबर से निर्मित जीवामृत खाद प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिए | दूसरी बार जब पौधों पर फूल आने लगे तब उस समय पुनः 1000 लिटर बायोगैस स्लरी अथवा 1000 लिटर संजीवक खाद अथवा 20 किलो गोबर से निर्मित जीवामृत खाद का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से करें | तीसरी बार उपरोक्त खाद प्रथम बार लौकी तुड़ाई के पश्चात देने से उपज अच्छी प्राप्त होती है|
लौकी के फसल की सुरक्षा कैसे करें - लौकी की फसल में कुदरती कीट रक्षक के नियमित अंतराल पर छिड़काव से फसल पूरी तरह रोगमुक्त रहती है तथा उपज काफी अच्छी प्राप्त होती है | लौकी की फसल पर कुछ प्रमुख लगने वाले रोगों का कुदरती निदान कैसे करें यह हम नीचे आपको बता रहे हैं | इसे अपना कर आप अपने खेत में रोगों से मुक्ति पा सकते हैं|
1. रेड बीटल - यह हानिकारक कीट है जो लौकी के पौधे की प्रारंभिक वृद्धि के समय होता है और पत्तियों को खाता है जिससे प्रकाशसंश्लेषण क्रिया धीमी पड़ जाती है | जिसके कारण पौधे में अच्छी तरीके से वृद्धि नहीं हो पाती है | रेड बीटल की यह सूडी बहुत खतरनाक होती है | यह भूमि के अंदर पौधों की जड़ों को काट कर उन्हें नष्ट कर देती है | रेड बीटल से लौकी की फसल को सुरक्षा देने के लिए पतंजलि निम्बादि कीट रक्षक अत्यंत प्रभावी है |5 लीटर कीट रक्षक को 40 लीटर पानी में मिलाकर सप्ताह में दो बार छिड़काव करना चाहिए| छिड़काव के बाद नीम की लकड़ी की राख छिड़कने से परिणाम और अधिक अच्छा मिलता है|
2. फ्रूट फ्लाई - यह मक्खी लौकी के फलों में प्रवेश कर अंडे देती है | अंडों से सूंडी निकलती है जो फलों की गुणवत्ता को हानि पहुंचाती है| जिससे किसान भाइयों को बाजार से अच्छा मूल्य नहीं मिल पाता है| इस फ्रूट फ्लाई मक्खी से फसल की सुरक्षा के लिए जब लौकी फसल पर फूल निकलने शुरू हो रहे हो उस समय पतंजलि बायो रिसर्च इंस्टिट्यूट के “अभिमन्यु” 100मिली को 3 लीटर खट्टी लस्सी में 150 ग्राम कापर सल्फेट पाउडर के साथ 40 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर देना चाहिए | यह छिड़काव प्रति सप्ताह करना आवश्यक है|
3. पाउडरी मिल्ड्यू रोग - यह रोग एरीसाइफी सिकोरेसिएरम नामक कवक के कारण होता है| इस फंगस की वजह से लोकी की बेल वा पत्तियों पर सफेद गोलाकार जाल जैसा फैल जाता है जो बाद में कत्थई रंग में बदल जाता है | इसमें पत्तियां पीली होकर सूख जाती है| इस रोग से लौकी की फसल के बचाव के लिए 5 लिटर खट्टे छाछ में 2 लीटर गोमूत्र, 30 लीटर पानी में मिलाकर प्रतिदिन 4 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहे | 2 सप्ताह पश्चात फसल पाउडरी मिल्ड्यू रोग से होने वाली हानी से बच जाती है|
4. लौकी का एन्थ्रेक्नोज रोग - लौकी की फसल में एन्थ्रेक्नोज रोग क्लेटोटाईकम नामक फंगस के कवक के कारण होता है| इस रोग के कारण पत्तियों एवं फलों पर लाल-काले धब्बे बन जाते हैं| जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है| इसके फलस्वरूप पौधा स्वस्थ नहीं रह पाता है| इस रोग की रोकथाम के लिए 5 लीटर गोमूत्र में 2 किलोग्राम अमरूद अथवा आडू के पत्ते उबालकर ठंडा कर, छाने, उसमे 30 लीटर पानी मिलाकर तीन-तीन दिन के अंतराल पर लगातार छिड़काव करे|
लौकी की तोड़ाई कैसे करे - लौकी के फलों की तोड़ाई कोमल अवस्था में ही कर लेना चाहिए | कठोर फलों से अच्छी सब्जी भी नहीं बनती और बाजार में इसका मूल्य भी कम मिलता है
सोर्स : योग सन्देश
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