टिन्डा की खेती करने का आधुनिक तरीका Tinda Ki Kheti Karne ka aadhunik tarika
टिन्डा की खेती करने का आधुनिक तरीका Tinda Ki Kheti Karne ka aadhunik tarika टिन्डा की उन्नत खेती कैसे करें Tinda (Round Gourd) Ki Kheti Kaise Kare टिन्डा की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Tinda ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. खेती मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा. अधिकतम उपज के लिए ध्यान रखने योग्य बातें. बेहतर फसल के लिए टिप्स सुझाव और उपाय. कम खर्च में ज्यादा पैदावार कैसे ले. अच्छी फसल तैयार करने के लिए अपनाए ये तरीके.

टिन्डा भी कुकरविटेसी परिवार की मुख्य फसलों में से है जो कि गर्मियों की सब्जियों में से प्रसिद्ध है। इसको पश्चिमी भारतवर्ष में बहुत पैदा किया जाता है। टिन्डा भारत के कुछ भागों में अधिक पैदा किया जाता है। जैसे-पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है।

टिन्डा भी कुकरविटेसी परिवार की मुख्य फसलों में से है जो कि गर्मियों की सब्जियों में से प्रसिद्ध है। इसको पश्चिमी भारतवर्ष में बहुत पैदा किया जाता है। टिन्डा भारत के कुछ भागों में अधिक पैदा किया जाता है। जैसे-पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है।
टिन्डे के फलों को अधिकतर सब्जी बनाने के रूप में प्रयोग किया जाता है। सब्जी अन्य सब्जियों के साथ मिलाकर भी बनायी जाती है। कच्चे फलों को दाल आदि में मिलाकर हरी सब्जी के रूप में खाया जाता है। इस प्रकार से इस फसल के फलों के प्रयोग से स्वास्थ्य के लिये अधिक पोषक-तत्व-युक्त सब्जी मिलती है।
अन्य कुकरविटस को अपेक्षा यह अधिक उच्च पोषक-तत्वों की मात्रा प्रदान करता है जो कि शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होती है। इसके सेवन से लगभग सभी पोषक-तत्वों की पूर्ति हो जाती है। विटामिन ‘ए’ ‘सी’ दोनों का अच्छा स्रोत है तथा यह दवा के स्थान पर भी प्रयोग किया जाता है। फलों का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी सिद्ध होता हैं।
टिन्डा की खेती के लिए आवश्यक भूमि व जलवायु - इसकी फसल के लिये गर्मतर जलवायु अच्छी होती है। अधिक गर्म व ठन्डी जलवायु उपयुक्त नहीं होती है। बीज के अंकुरण के लिये फरवरी-मार्च का मौसम अच्छा होता है तथा भूमि सबसे अच्छी हल्की बलुई दोमट उपयुक्त पायी जाती है। भूमि में जल-निकास का भी उचित प्रबन्ध होना चाहिए। भूमि का पी. एच. मान 6.0 से 6.5 के बीच का उचित होता है।
टिन्डा की खेती के लिए खेत की तैयारी - टिन्डे की फसल के लिये मिट्टी ढेले रहित व भुरभुरी होनी चाहिए। इस प्रकार से 4-5 जुताई करनी चाहिए। अन्त में भूमि में खाद आदि मिलाकर बोने के योग्य बनाना चाहिए तथा खेत में मेड़-बन्दी करके क्यारियां बना लेनी चाहिए। क्यारियाँ अधिक बड़ी नहीं बनाना चाहिए।
खाद एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग - अन्य फसलों की तरह गोबर की खाद खेत में 20-25 ट्रौली डालनी चाहिए तथा रासायनिक खाद 50-60 कि.ग्रा. यूरिया तथा 70 कि.ग्रा. अमोनियम फास्फेट खेत में तैयारी के समय डालकर मिला देना चाहिए। यूरिया की आधी मात्रा को पौधे जब 20-25 दिन के हो जायें तो खेत में छिड़क देना चाहिए।
बगीचों के लिये भी 500 ग्राम यूरिया 600 ग्रा. DAP खेत में डालकर मिला देना चाहिए। यूरिया को 200 ग्राम लेकर पौधों में 2-3 चम्मच पौधों से दूर डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। यह मात्रा 8-10 वर्ग क्षेत्र के लिये है तथा देशी खाद की आवश्यकता हो तो 5-6 टोकरी पर्याप्त होती है।
टिन्डे की प्रमुख जातियां - टिन्डे की मुख्य तीन जातियां हैं जो निम्न हैं-
1. अरका टिन्डा (Arka Tinda)- यह किस्म अधिक उपज देने वाली है तथ 45-50 दिनों में बुवाई के बाद तैयार हो जाती है। फल हल्के हरे रंग के एवं मध्यम आकार के होते हैं।
2. बीकानेरी ग्रीन (Bikanari Green)- इस किस्म के फलों का आकार बड़ा होता है जो कि गहरे हरे रंग के होते हैं तथा 60 दिनों में बुवाई के बाद तैयार हो जाते हैं।
3. लुधियाना एस-48 (Ludhiyana-48)- ये किस्म भी अधिक उपज देने वाली है। फलों का आकार मध्यम व हरे रंग के होते हैं।
बुवाई का समय एवं दूरी - बुवाई का समय फरवरी-मार्च जायद के लिये तथा खरीफ की फसल के लिये जून के अन्त से जुलाई के अन्त तक बुवाई की जाती है तथा बीजों की गहराई 5-6 सेमी. रखनी चाहिए। यदि नमी की मात्रा कम है तो 8-10 सेमी. रखनी उचित होती है। कतार से कतार की आपस की दूरी 90 सेमी. तथा थामरे से थामरे की दूरी 25-30 सेमी. रखनी चाहिए तथा एक थामरे में 4-5 बीज बोने चाहिए एवं बीजों की गहराई 8-10 सेमी. रखना उचित होगा क्योंकि छिलका कड़ा होने से नमी की अधिक मात्रा चाहिए जो कि गहराई में ही मिलेगी।
बीज की मात्रा - टिन्डे का बीज अन्य कुकरविटस की अपेक्षा लगता है। औसतन बीज 8-10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से आवश्यकता पड़ती है। जायद के लिये खरीफ की अपेक्षा अधिक मात्रा लगती है।
बगीचे में भी टिन्डे को आसानी से उगाया जा सकता है। इसलिये प्रत्येक थामरे में 4-5 बीज लगाने चाहिए। 8-10 वर्ग मी. क्षेत्र के लिये 20-25 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। बीजों को नमी के अनुसार सावधानी से लगाना चाहिए।
सिंचाई व निकाई-गुड़ाई - टिन्डे की फसल की पहली सिंचाई बुवाई से 15-20 दिन के बाद करनी आवश्यक है। जायद की फसल की सिंचाई 6-7 दिन के अन्तर से करनी चाहिए तथा खरीफ की फसल की वर्षा न होने पर करनी चाहिए। आरम्भ की दो सिंचाई के बाद खरपतवार हो जाते हैं। इसलिए 1.2 निराई अवश्य करनी चाहिए जिससे पैदावार कम न हो सके।
सहारा देना - पौधों को पतली लकड़ी का सहारा देना चाहिए या बेल को चढ़ा देना चाहिए। तार को बांध कर पौधों को ऊपर चढ़ा देने से फल अधिक लगते हैं क्योंकि चढ़ी हुई बेल को खुली हवा मिलती है। जिससे वृद्धि ठीक होती है।
फलों की तुड़ाई - टिन्डो की तुड़ाई अन्य फसलों की तरह तोड़ना चाहिए और ग्रेडिंग करके बाजार भेजना चाहिए। कच्चे फलों का बाजार मूल्य अधिक मिलता है। ध्यान रहे कि फलों को पकने न दें अन्यथा फल सब्जी के लिए ठीक नहीं रहते।
रोगों से टिन्डे के पौधों की सुरक्षा कैसे करें - कीट व रोग लौकी, तोरई की तरह ही लगते हैं तथा नियन्त्रण भी अन्य फसलों की तरह करना चाहिए।
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