अरबी की आधुनिक खेती करने की जानकारी Arbi ki aadhunik kheti karne ki jankari
अरबी की आधुनिक खेती करने की जानकारी Arbi ki aadhunik kheti karne ki jankari अरबी की खेती कैसे करे Arbi ki Kheti Kaise Kare अरबी की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Arbi ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. अरबी की खेती एक जानकारी. अरबी की उन्नत खेती एवं अधिक उत्पादन. अरबी की खेती करने का तरीका. अरबी की खेती से कमाएं अच्छा मुनाफा. अरबी की खेती का समय. अरबी की उन्नत खेती कैसे करें? अरबी की फसल के बारे में जानकारी.
अरबी दो तरह की होती है जिसमे एक एडिन और दूसरी डेसिन टाइप, एडिन को अरबी तथा डेसिन को बण्डा कहते है इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। एशिया में अफ्रीका का प्रथम स्थान पैदावार एवं क्षेत्रफल में है। घुईया या अरबी में चिड़चिड़ाहट या एक्रीडिटी पाई जाती है और यह पकाने के बाद ख़त्म हो जाती है।
अरबी दो तरह की होती है जिसमे एक एडिन और दूसरी डेसिन टाइप, एडिन को अरबी तथा डेसिन को बण्डा कहते है इसकी खेती पूरे भारत में की जाती है। एशिया में अफ्रीका का प्रथम स्थान पैदावार एवं क्षेत्रफल में है। घुईया या अरबी में चिड़चिड़ाहट या एक्रीडिटी पाई जाती है और यह पकाने के बाद ख़त्म हो जाती है।
जलवायु एवं भूमि - अरबी नम स्थानो पर अधिक उगाई जाती है लेकिन शीतोष्ण एवं सम-शीतोष्ण जलवायु अच्छी मानी जाती है। यह उत्तर में पहाड़ी एवं मैदानी दोनों ही क्षेत्रो में उगाई जा सकती है जहाँ पानी का भराव नहीं होता है। अरबी की खेती उपजाऊ बलुई दोमट भूमि में अच्छी होती है तथा भारी मिट्टी में भी की जा सकती है लेकिन जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। जिस भूमि का पी.एच. 5.5 से 7 के बीच में होता है वहां पर भी इसकी खेती की जाती है।
उन्नतशील प्रजातियां - अरबी की बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है जैसे की सतमुखी, श्रीरश्मी, तथा श्री पल्लवी प्रजातियां उन्नतशील है इसके साथ ही सफ़ेद गौरैया, काका काचू, पंचमुखी, एन.डी.सी.1,एन.डी.सी.2, एन.डी.सी.3, सहर्षमुखी, कदमा, मुक्ताकाशी, नदिया लोकल, अहिना लोकल, तेलिया इसके साथ ही सी.9, सी.135, सी.149 , सी.266 इसके साथ ही एस.3, एस.11, पंजाब, गौरैया बिहार, फैजाबादी, बंसी, लधरा, अच्छी पाई गयी है।
खेत की तैयारी - खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से बाद में तीन चार जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके खेत को भुरभुरा करके समतल बना लेना चाहिए। आख़िरी जुताई में सड़ी गोबर की खाद 100 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिला देना चाहिए।
बीज की मात्रा -माध्यम आकार के कंदो का चुनाव करना चाहिए। माध्यम आकार के कंद 7.5 से 9.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर बीज लगता है।
बुवाई का समय तथा विधि - उत्तर भारत में दो बुवाई की जाती है जायद में मार्च से अप्रैल तक कंदो की बुवाई या रोपाई की जाती है। खरीफ या बरसात में तथा पहाड़ो में जून से जुलाई तक कंदो की बुवाई या रोपाई की जाती है। इसकी बुवाई लाइनो में करनी चाहिए लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर एवं 6 से 7 सेंटीमीटर गहराई पर कंदो की बुवाई या रोपाई करनी चाहिए।
मल्चिंग कब और किससे - बुवाई के बाद सूखी पत्तियों या पुवाल से या दूसरे पौधों की सूखी पत्तियों आदि से क्यारियों को ढक देना चाहिए। मल्चिंग से नमी सुरक्षित रहती है तथा सूखी पत्तियों से ऑर्गेनिक मैटर या न्यूट्रियन्ट भी प्राप्त होते है साथ ही खरपतवार भी कम उगते है।
खाद एवं उर्वरक - खाद एवं उर्वरक में 80 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में तथा साथ में 100 से 150 कुंतल सड़ी गोबर की खाद प्रयोग करते है आधी मात्रा नत्रजन की तथा पूरी मात्रा फास्फोरस की व् आधी मात्रा पोटाश की खेत की तैयारी के समय देना चाहिए तथा आधी मात्रा नत्रजन व् पोटाश की दो बार में खड़ी फसल में देना चाहिए। पहली बार 7 से 10 स्प्राउट निकलने पर तथा दूसरी बार इसके एक माह बाद देना चाहिए। प्रत्येक टॉपड्रेसिंग के बाद मिट्टी चढ़ाना अति आवश्यक है।
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