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सूरजमुखी की आधुनिक खेती करने की जानकारी Surajmukhi ki aadhunik kheti karne ki jankari
सूरजमुखी की आधुनिक खेती करने की जानकारी Surajmukhi ki aadhunik kheti karne ki jankari सूरजमुखी की खेती कैसे करे Surajmuki ki Kheti Kaise Kare सूरजमुखी की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका Surajmukhi ki vaigyanik kheti karne ka tarika hindi me jankari. सूरजमुखी की वैज्ञानिक खेती करके मुनाफा बढ़ायें. जाने सूरजमुखी( Sunflower) की उन्नत खेती कैसे करे ? सूरजमुखी की बुवाई का सही समय. सूरजमुखी की खेती करके बने करोड़पति. सूरजमुखी की खेती के लिए मौसम अनुकूल. सूरजमुखी की खेती कब होती है. सूरजमुखी का भाव. सूरजमुखी पर निबंध. सूरजमुखी के गुण. सूरजमुखी के बारे में जानकारी. सूरजमुखी के फूल. सूरजमुखी का तेल. सूरजमुखी का मंडी भाव.
सूरजमुखी की खेती खरीफ रबी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है। सूरजमुखी की खेती अम्लीय एवम क्षारीय भूमि को छोड़कर सिंचित दशा वाली सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है।
सूरजमुखी की खेती खरीफ रबी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है। सूरजमुखी की खेती अम्लीय एवम क्षारीय भूमि को छोड़कर सिंचित दशा वाली सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है।
सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी, एवं जायद तीनो ही मौसम में की जा सकती है, लेकिन खरीफ में इस पर अनेक रोगों एवं कीटो का प्रकोप होने के कारण फूल छोटे होते है, तथा दाना कम पड़ता है। जायद में सूरजमुखी की अच्छी उपज प्राप्त होती है। इस कारण जायद में ही इसकी खेती ज्यादातर की जाती है।
प्रजातियाँ - इसमे मख्य रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है। एक तो सामान्य या संकुल प्रजातियाँ इसमे मार्डन और सूर्य पायी जाती है। दूसरा संकर प्रजातियाँ इसमे के बी एस एच-1 और एस एच 3322 एवं ऍफ़ एस एच-17 पाई जाती है।
खेत की तैयारी - खेत की तयारी में जायद के मौसम में प्राप्त नमी न होने पर खेत को पलेवा करके जुताई करनी चाहिए। एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए मिटटी भुरभुरी कर लेना चाहिए, जिससे की नमी सुरक्षित बनी रह सके।
बीज बुवाई - जायद में सूरजमुखी की बुवाई का सर्वोत्तम समय फरवरी का दूसरा पखवारा है इस समय बुवाई करने पर मई के अंत पर जून के प्रथम सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जाती है, यदि देर से बुवाई की जाती है तो पकाने पर बरसात शुरू हो जाती है और दानो का नुकसान हो जाता है, बुवाई लाइनों में हल के पीछे 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर तथा पौध से पौध की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
बीज की मात्रा - बीज की मात्रा अलग अलग पड़ती है, जैसे की संकुल या सामान्य प्रजातियो में 12 से 15 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है और संकर प्रजातियो में 5 से 6 किलो ग्राम प्रति हैक्टर बीज लगता है। यदि बीज की जमाव गुणवता 70% से कम हो तो बीज की मात्रा बढ़ाकर बुवाई करना चाहिए, बीज को बुवाई से पहले 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलो ग्राम बीज को शोधित करना चाहिए। बीज को बुवाई से पहले रात में 12 घंटा भिगोकर सुबह 3 से 4 घंटा छाया में सुखाकर सायं 3 बजे के बाद बुवाई करनी चाहिए जायद के मौसम में ।
उर्वरक और खाद - सामान्य उर्वरको का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर ही करनी चाहिए फिर भी नत्रजन 80 किलोग्राम, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवम पोटाश 40 किलो ग्राम तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। नत्रजन की आधी मात्रा एवम फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कुडों में प्रयोग करना चाहिए इसका विशेष ध्यान देना चाहिए शेष नत्रजन की मात्रा बुवाई के 25 या 30 दिन बाद ट्राईफ़ोसीड के रूप में देना चाहिए यदि आलू के बाद फसल ली जाती है तो 20 से 25% उर्वरक की मात्र कम की जा सकती है, आखिरी जुताई में खेत तैयार करते समय 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद लाभदायक पाया गया है।
सिचाई - पहली सिचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद हल्की या स्प्रिकलर से करनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिचाई करते रहना चाहिए। कुल 5 या 6 सिचाइयो की आवश्यकता पड़ती है। फूल निकलते समय दाना भरते समय बहुत हल्की सिचाई की आवश्यकता पड़ती है। जिससे पौधे जमीन में गिरने न पाए क्योकि जब दाना पड जाता है तो सूरजमुखी के फूल के द्वारा बहुत ही पौधे पर वजन आ जाता है जिससे की गिर सकता है गहरी सिचाई करने से।
खरपतवार नियत्रण - बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पहली सिचाई के बाद ओट आने के बाद निराई गुड़ाई करना अति आवश्यक है, इससे खरपतवार भी नियंत्रित होते है। रसायनो द्वारा खरपतवार नियत्रण हेतु पेंडामेथालिन 30 ई सी की 3.3 लीटर मात्रा 600 से 800 लीटर पानी घोलकर प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर छिडकाव करने से खरपतवारो का जमाव नहीं होता है।
पौधों पर मिट्टी चढाना - सूरजमुखी का फूल बहुत ही बड़ा होता है इससे पौधा गिराने का भय बना रहता है इसलिए नत्रजन की टापड्रेसिंग करने के बाद एक बार पौधों पर 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँची मिट्टी चढाना अति आवश्यक है जिससे पौधे गिरते नहीं है।
परिषेचन क्रिया - सूरजमुखी एक परिषेचित फसल है इसमे परिषेचन क्रिया अति आवश्यक है यदि परिषेचन क्रिया नहीं हो पाती तो पैदावार बीज न बन्ने के कारण कम हो जाती है इसलिए परिषेचन क्रिया स्वतः भवरो, मधुमक्खियो तथा हवा आदि के द्वारा होती रहती है फिर ही अच्छी पैदावार हेतु अच्छी तरह फूलो, फुल आने के बाद हाथ में दस्ताने पहनकर या रोयेदार कपडा लेकर फसल के मुन्दको अर्थात फूलो पर चारो ऒर धीरे से घुमा देने से परिषेचन की क्रिया हो जाती है यह क्रिया प्रातः 7 से 8 बजे के बीच में कर देनी चाहिए।
कीट प्रबंधन - सूरजमुखी में कई प्रकार के कीट लगते है जैसे की दीमक हरे फुदके डसकी बग आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ई सी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
फसल कटाई - जब सूरजमुखी के बीज कड़े हो जाए तो मुन्डको की कटाई करके या फूलो के कटाई करके एकत्र कर लेना चाहिए तथा इनको छाया में सुख लेना चाहिए इनको ढेर बनाकर नहीं रखना चाहिए इसके बाद डंडे से पिटाई करके बीज निकल लेना चाहिए साथ ही सूरजमुखी थ्रेशर का प्रयोग करना उपयुक्त होता है।
भंडारण - बीज निकलने के बाद अच्छी तरह सुख लेना चाहिए बीज में 8 से 10% नमी से आधिक नहीं रहनी चाहिए। बीजो से 3 महीने के अन्दर तेल निकल लेना चाहिए अन्यथा तेल में कड़वाहट आ जाती है, अर्थात पारिस्थिकी के अंतर्गत भंडारण किया जा सकता है।
पैदावार - दोनों तरह की प्रजातियों की पैदावार अलग- अलग होती है। संकुल या सामान्य प्रजातियों की पैदावार 12 से 15 कुन्तल प्रति हैक्टर होती है तथा संकर प्रजातियों की पैदावार 20 से 25 कुन्तल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है।
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