जैसे को तैसा – बीरबल की चतुराई की कहानी - Birbal ki chaturayi
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रामदास का एक व्यापारी मित्र मोतीचंद था. उन दोनों में काफी गहरी मित्रता थी. एक दिन मोतीचंद को सपरिवार यात्रा पर किसी दूसरे शहर जाना पडा, उसने अपना सारा सामान रामदास के हवाले कर दिया और बेफिक्र होकर चला गया.
घर में आकर उसने देखा की किवाड खुले पडे हैं और उसके घर का सारा सामान गायब है. यह देखकर उसने समझा कि उसके घर का सारा सामान रामदास अपने घर ले गया होगा.
मोतीचंद रामदास के घर गया और उसका हाल पूछा, रामदास ने उसको कोई खास सम्मान नहीं दिया फिर मोतीचंद ने उससे अपना माल असबाब मांगा इस पर रामदास ने कहा – तुम मेरे यहां कौन-सा माल असबाब रख गये थे जिसे अब मांगने आये हो ? जिसके यहां रखा हो उससे जाकर मांगो.
बिना किसी प्रमाण के अदालत में मुकदमा दायर करने से भी कुछ नहीं मिल सकता था इस प्रकार वह चिंता करता हुआ अपने घर पहूंचा. उसकी बीरबल से बहुत मित्रता थी इस विषय में उसने बीरबल से सलाह लेने का विचार किया.
दूसरे दिन उसने बीरबल के पास पहूंच कर सारा हाल कह सुनाया और उससे इस विषय में सहायता मांगी. तीन दिन बाद आना मैं युक्ति बताउंगा. बीरबल ने उसे सांत्वना दीं.
तीन दिन बाद बीरबल ने रामदास को बुलाया रामदास बहुत घबराया हुआ था, उसने समझा शायद मोतीचंद के कहने से बुलाया गया है वह हिम्मत बांधकर यह सोचकर दरबार की ओर चल पडा कि मोतीचंद के पास रसीद तो हैं नहीं इसलिए वह कर ही क्या सकता है.
बीरबल ने रामदास से कहा की एक नया न्यायालय खोलने की अकबर बादशाह ने आज्ञा दी है उस न्यायालय के लिए तुम्हें न्यायधीश बनाने का विचार है तुम्हारी इच्छा जानने के लिए इस समय मैंने तुम्हें पहले बुलाया है.
यह सुनकर रामदास ख़ुशी से आनंदित होता हुआ घर पहूंचा.
इधर बीरबल ने उसके जाने के बाद मोतीचंद को बुलाकर कहा कि वह रामदास के यहां जाकर एक बार फिर अपनी धन-संपत्ति वापस देने को कहे.
बीरबल के कहने पर मोतीचंद सुबह रामदास के पास गया और अपनी धन-सपंत्ति वापस करने की फिर प्रार्थना की रामदास ने पहले की तरह तुम्हारा मेरे हैं क्या जो तुम बार-बार मांगते हों यह सहुनकर मोतीचंद बोला – भाई रामदास जब तुम किसी प्रकार नहीं समझ रहे हो तो मुझे हारकर दिवान जी से शिकायत करनी पडेगी.
बीरबल से शिकायत करने की बात सुनते ही रामदास के होश उड गये उसने सोचा बीरबल मुझको न्यायधीश के पद पर नियुक्त करने वाला हैं यदि ऐसे समय में यह जाकर शिकायत करेगा तो मेरी बहुत हानि होगी इसलिए इसकी संपत्ति दे देनी चाहिए. जिससे बीरबल को कुछ खबर ही न हो. न्यायधीश का पद पाने पर ऐसी जाने कितनी दौलत मेरे पास अपने आप आ जायेगी.
यह सोचकर रामदास ने कहा – भाई मोतीचंद मैं तो अब तक तुमसे हंसी कर रहा था मैं यह देख रहा था कि तुझमें कितनी हिम्मत हैं लो अपनी अमानत ले जाओ. अगर तुम आज न आते तो मैं कल तुम्हारे घर आता ऐसा कहकर उसने मोतीचंद का सब माल असबाब लौटा दिया मोतींचद ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर गया
सांयकाल जब बीरबल दरबार से अपने घर आये तो मोतीचंद ने उनको धन्यवाद दिया. इधर रामदास बीरबल की ओर से बुलावा आने की राह देखता रहा पर दस-बारह दिन तक कुछ खबर नहीं मिली तो वह स्वयं बीरबल के पास गया और स्वयं घुमाफिराकर बात छेड दी.
बीरबल ने कहा – न्यायधीश का पद ईमानदार व्यक्ति को मिलता हैं किसी की अमानत में खयानत करने वाले को नहीं. जाओं अब मेरे पास कभी मत आना. यह सुनते रामदास अपना सा मुंह लेकर चला गया. उसको अपनी दुष्टता का फल मिल गया था जब यह खबर बादशाह अकबर के पास पहूंची तो बीरबल के न्याय से वह बहुत खुश हुए.
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मोतीचंद रामदास के घर गया और उसका हाल पूछा, रामदास ने उसको कोई खास सम्मान नहीं दिया फिर मोतीचंद ने उससे अपना माल असबाब मांगा इस पर रामदास ने कहा – तुम मेरे यहां कौन-सा माल असबाब रख गये थे जिसे अब मांगने आये हो ? जिसके यहां रखा हो उससे जाकर मांगो.
बिना किसी प्रमाण के अदालत में मुकदमा दायर करने से भी कुछ नहीं मिल सकता था इस प्रकार वह चिंता करता हुआ अपने घर पहूंचा. उसकी बीरबल से बहुत मित्रता थी इस विषय में उसने बीरबल से सलाह लेने का विचार किया.
दूसरे दिन उसने बीरबल के पास पहूंच कर सारा हाल कह सुनाया और उससे इस विषय में सहायता मांगी. तीन दिन बाद आना मैं युक्ति बताउंगा. बीरबल ने उसे सांत्वना दीं.
तीन दिन बाद बीरबल ने रामदास को बुलाया रामदास बहुत घबराया हुआ था, उसने समझा शायद मोतीचंद के कहने से बुलाया गया है वह हिम्मत बांधकर यह सोचकर दरबार की ओर चल पडा कि मोतीचंद के पास रसीद तो हैं नहीं इसलिए वह कर ही क्या सकता है.
बीरबल ने रामदास से कहा की एक नया न्यायालय खोलने की अकबर बादशाह ने आज्ञा दी है उस न्यायालय के लिए तुम्हें न्यायधीश बनाने का विचार है तुम्हारी इच्छा जानने के लिए इस समय मैंने तुम्हें पहले बुलाया है.
यह सुनकर रामदास ख़ुशी से आनंदित होता हुआ घर पहूंचा.
इधर बीरबल ने उसके जाने के बाद मोतीचंद को बुलाकर कहा कि वह रामदास के यहां जाकर एक बार फिर अपनी धन-संपत्ति वापस देने को कहे.
बीरबल के कहने पर मोतीचंद सुबह रामदास के पास गया और अपनी धन-सपंत्ति वापस करने की फिर प्रार्थना की रामदास ने पहले की तरह तुम्हारा मेरे हैं क्या जो तुम बार-बार मांगते हों यह सहुनकर मोतीचंद बोला – भाई रामदास जब तुम किसी प्रकार नहीं समझ रहे हो तो मुझे हारकर दिवान जी से शिकायत करनी पडेगी.
बीरबल से शिकायत करने की बात सुनते ही रामदास के होश उड गये उसने सोचा बीरबल मुझको न्यायधीश के पद पर नियुक्त करने वाला हैं यदि ऐसे समय में यह जाकर शिकायत करेगा तो मेरी बहुत हानि होगी इसलिए इसकी संपत्ति दे देनी चाहिए. जिससे बीरबल को कुछ खबर ही न हो. न्यायधीश का पद पाने पर ऐसी जाने कितनी दौलत मेरे पास अपने आप आ जायेगी.
यह सोचकर रामदास ने कहा – भाई मोतीचंद मैं तो अब तक तुमसे हंसी कर रहा था मैं यह देख रहा था कि तुझमें कितनी हिम्मत हैं लो अपनी अमानत ले जाओ. अगर तुम आज न आते तो मैं कल तुम्हारे घर आता ऐसा कहकर उसने मोतीचंद का सब माल असबाब लौटा दिया मोतींचद ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर गया
सांयकाल जब बीरबल दरबार से अपने घर आये तो मोतीचंद ने उनको धन्यवाद दिया. इधर रामदास बीरबल की ओर से बुलावा आने की राह देखता रहा पर दस-बारह दिन तक कुछ खबर नहीं मिली तो वह स्वयं बीरबल के पास गया और स्वयं घुमाफिराकर बात छेड दी.
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