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शिवजी को अर्द्ध नारीश्वर रूप में क्यों पूजा जाता हैं - Shiv aadhe purush aadhi nari
शिवजी को अर्द्ध नारीश्वर रूप में क्यों पूजा जाता हैं? Shiv aadhe purush aadhi nari, शिव ने इस कारण लिया था अर्धनारीश्वर का रूप, भोलेनाथ के अर्द्ध नारीश्वर के रूप के पीछे वैज्ञानिक कारण वजह.
शिवजी को अर्द्ध नारीश्वर भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा पुरुष का है। शिव के अलावा और कोई देवी-देवता इस रूप में नहीं दर्शाए गए है। शिव ही क्यों भगवान के इस अर्द्ध नारीश्वर के रूप के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।
विज्ञान कहता है कि मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। गर्भाधान के समय पुरुषों के आधे क्रोमोजोम्स (23) तथा स्त्रियों के आधे क्रोमोजोम्स (23) मिलकर संतान की उत्पत्ति करते हैं। इन 23-23 क्रोमोजोम्स के संयोग से संतान उत्पन्न होती है।
जो बात विज्ञान आज कह रहा है। अध्यात्म ने उसे हजारों साल पहले ही ज्ञात करके कह दी थी कि पुरुष में आधा शरीर स्त्री का तथा स्त्री में आधा शरीर पुरुष का होता है। इसी कारण हिंदू धर्म में भगवान शंकर को अद्र्ध नारीश्वर रूप में दिखाया गया है।
सृष्टि रचना में भी पुरुष एवं स्त्री के सहयोग की बात कही गई है। दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं इसलिए हिंदुओं के अधिकांश देवताओं को स्त्रियों के साथ दिखाया जाता है। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य स्त्री के बिना पूर्ण नहीं माना जाता क्योंकि वह उसका आधा अंग है। अकेला पुरुष अकेला है। इसी कारण पत्नी को अद्र्धांगिनी भी कहा जाता है।
Thanks for reading...
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शिवजी को अर्द्ध नारीश्वर भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव का आधा शरीर स्त्री का तथा आधा पुरुष का है। शिव के अलावा और कोई देवी-देवता इस रूप में नहीं दर्शाए गए है। शिव ही क्यों भगवान के इस अर्द्ध नारीश्वर के रूप के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।
विज्ञान कहता है कि मनुष्य में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। गर्भाधान के समय पुरुषों के आधे क्रोमोजोम्स (23) तथा स्त्रियों के आधे क्रोमोजोम्स (23) मिलकर संतान की उत्पत्ति करते हैं। इन 23-23 क्रोमोजोम्स के संयोग से संतान उत्पन्न होती है।
जो बात विज्ञान आज कह रहा है। अध्यात्म ने उसे हजारों साल पहले ही ज्ञात करके कह दी थी कि पुरुष में आधा शरीर स्त्री का तथा स्त्री में आधा शरीर पुरुष का होता है। इसी कारण हिंदू धर्म में भगवान शंकर को अद्र्ध नारीश्वर रूप में दिखाया गया है।
सृष्टि रचना में भी पुरुष एवं स्त्री के सहयोग की बात कही गई है। दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं इसलिए हिंदुओं के अधिकांश देवताओं को स्त्रियों के साथ दिखाया जाता है। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य स्त्री के बिना पूर्ण नहीं माना जाता क्योंकि वह उसका आधा अंग है। अकेला पुरुष अकेला है। इसी कारण पत्नी को अद्र्धांगिनी भी कहा जाता है।
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