क्रोध में अंधा कैसे हो जाता है इंसान? - Insan krodh me pagal kyo ho jata hai?
क्रोध में अंधा कैसे हो जाता है इंसान? - Insan krodh me pagal kyo ho jata hai? क्रोध से हानि, क्रोध से होती है मानसिक व शारीरिक हानि, क्रोध पर नियंत्रण, क्रोध पर निबंध, इंसान को क्रोध क्यों नहीं करना चाहिए? क्रोध पर नियंत्रण के उपाय, how to control anger in hindi, क्रोध प्रबंधन पर निबंध, गुस्सा शांत करने का मंत्र, गुस्सा शांत करने का टोटका घरेलू उपाय.
धार्मिक पुस्तकों में क्रोध को मनुष्य की चुनिंदा पशुप्रवृत्तियों में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। क्रोध को अधिकांश प्रसंगों निंदनीय ही बताया गया है। यदि थोड़ा गहराई से सोचें तो पाएंगे कि क्रोध को निंदनीय बताना उचित ही है। क्योंकि सो में से निन्यानवे घटनाओं में क्रोध का कोई जायज कारण होता ही नहीं है।
किसी की बूंद भर गलती या भूल पर क्रोधित होना तथा अपनी भरी बाल्टी से भी ज्यादा गलतियों को आदत, परिस्थिती अथवा मजबूरी का नाम देकर नज़रअंदाज करना इंसान की फितरत में शामिल है।
कहावत है कि क्रोध में आदमी अंधा हो जाता है। रही बात कारण की तो वह कुछ भी हो सकता है। मन माफिक काम न होना, आशा के विपरीत परिणाम आना , किसी का अपेक्षाओं पर खरा न उतरना, किसी के कारण अपमान, शर्मिंदगी या नुकसान होना ये कुछ प्रमुख कारण हैं जिनसे कोई इंसान क्रोध यानि कि गुस्से से भर जाता है।
जब इंसान क्रोध से भरा होता है तो वह एक प्रकार के नशे में होता है। ऐसी हालत में इंसान असामान्य अथवा कहें कि असहज हो जाता है। उसके व्यक्तित्व के अन्य हिस्से ऐसी हालत में ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाते हैं। क्रोधी इंसान का मानसिक संतुलन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है जिससे वह,सही-गलत अथवा उचित-अनुचित में फर्क करने की अपनी सहज क्षमता खो बैठता है।
जो विवेक-ज्ञान इंसान को सही-गलत की समझ देता है, वही क्रोध में सबसे पहले नष्ट हो जाता है। विवेक को ही इंसान की तीसरी और असली आंख कहा गया है, जब वही नष्ट हो जाए तो उसका अंधा होना तो स्वाभाविक ही है। उसके अंधे होने की दुखद घटना का सबूत वह स्वयं ही बनता है जबकि उसे पछतावा होता है।
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धार्मिक पुस्तकों में क्रोध को मनुष्य की चुनिंदा पशुप्रवृत्तियों में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है। क्रोध को अधिकांश प्रसंगों निंदनीय ही बताया गया है। यदि थोड़ा गहराई से सोचें तो पाएंगे कि क्रोध को निंदनीय बताना उचित ही है। क्योंकि सो में से निन्यानवे घटनाओं में क्रोध का कोई जायज कारण होता ही नहीं है।
किसी की बूंद भर गलती या भूल पर क्रोधित होना तथा अपनी भरी बाल्टी से भी ज्यादा गलतियों को आदत, परिस्थिती अथवा मजबूरी का नाम देकर नज़रअंदाज करना इंसान की फितरत में शामिल है।
कहावत है कि क्रोध में आदमी अंधा हो जाता है। रही बात कारण की तो वह कुछ भी हो सकता है। मन माफिक काम न होना, आशा के विपरीत परिणाम आना , किसी का अपेक्षाओं पर खरा न उतरना, किसी के कारण अपमान, शर्मिंदगी या नुकसान होना ये कुछ प्रमुख कारण हैं जिनसे कोई इंसान क्रोध यानि कि गुस्से से भर जाता है।
जब इंसान क्रोध से भरा होता है तो वह एक प्रकार के नशे में होता है। ऐसी हालत में इंसान असामान्य अथवा कहें कि असहज हो जाता है। उसके व्यक्तित्व के अन्य हिस्से ऐसी हालत में ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाते हैं। क्रोधी इंसान का मानसिक संतुलन सबसे ज्यादा प्रभावित होता है जिससे वह,सही-गलत अथवा उचित-अनुचित में फर्क करने की अपनी सहज क्षमता खो बैठता है।
जो विवेक-ज्ञान इंसान को सही-गलत की समझ देता है, वही क्रोध में सबसे पहले नष्ट हो जाता है। विवेक को ही इंसान की तीसरी और असली आंख कहा गया है, जब वही नष्ट हो जाए तो उसका अंधा होना तो स्वाभाविक ही है। उसके अंधे होने की दुखद घटना का सबूत वह स्वयं ही बनता है जबकि उसे पछतावा होता है।
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