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लाखामंडल का शिव मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर - Lakhamandal ka shiv mandir prachin dharohar
लाखामंडल का शिव मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर - Lakhamandal ka shiv mandir prachin dharohar. लाखामंडल का शिव मंदिर ऐसी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर है जो हमें सौभाग्य से मिली है..
इस अनोखे शिवलिंग के प्रकट होने की भी दिलचस्प कहानी है कहा जाता है कि लाखामंडल के किसी व्यक्ति को स्वप्न में साधू बाबा यह गुजारिश करते नजर आये की मे दलदल मे फंसा हुआ हूँ कृपया मुझे बाहर निकाल दो।
गांव के उस व्यक्ति को न सिर्फ ये सपना याद रहा, बल्कि वह जगह भी अच्छी तरह से याद रह पाई जहाँ सपने में वह बाबा उन्हें दिखाई दिए थे, सुबह उन्होंने गांव के सभी लोगों को मंदिर के पास इक्कठा बुलाकर अपने स्वप्न की दस्तान सुनाई, और लोगों ने उनकी बात को गंभीरता से लेते हुए गैंती, बेलचा, फावड़ा इत्यादि सामान लेकर उस जगह पहुँच गए।
जब उस जगह को खोदना शुरू किया तो बहुत जल्दी उन्हें यह शिवलिंग नजर आने लगा, फिर वहां आस पास, साफ़ सफाई करके पंडितों को बुलाकर पूजा पाठ मंत्रोचार के साथ इस शिवलिंग की आराधना की गई और आज यह शिवलिंग न सिर्फ आकर्षण का केंद्र बना हुआ है बल्कि दूर दूर से लोग इसके दर्शन के लिए यहाँ आते हैं।
इसी प्रकार यहाँ दो गुफाओं मे रखी हुयी शिला पर लिखी एक भाषा का अनसुलझा रहस्य आज तक बरकरार है जिसे जानने और समझने के लिए दुनियां के कई देशों के पर्यटक यहाँ आ चुके हैं लेकिन न तो उन गुफाओं के आखिरी छोर तक कोई पहुँच पाया है और न ही उस भाषा का अर्थ कोई समझ पाया है।
ऐसा माना जाता है गुप्तोत्तर काल में सातवीं शताब्दी में सिंहपुर के यदुवंशीय शासक श्री भास्कर वर्मन की पुत्री ईश्वरा ने अपने पति श्री चन्द्र गुप्त (जालंधर का शासक) की पुण्य स्मृति में लाखा मंडल में शिव मंदिर का निर्माण कराया था। उक्त ऐतिहासिक मंदिर के परिसर से दो शिला लेख प्राप्त हुए हैं।
Thanks for reading...
Tags: लाखामंडल का शिव मंदिर प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर - Lakhamandal ka shiv mandir prachin dharohar. लाखामंडल का शिव मंदिर ऐसी प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर है जो हमें सौभाग्य से मिली है..
इस अनोखे शिवलिंग के प्रकट होने की भी दिलचस्प कहानी है कहा जाता है कि लाखामंडल के किसी व्यक्ति को स्वप्न में साधू बाबा यह गुजारिश करते नजर आये की मे दलदल मे फंसा हुआ हूँ कृपया मुझे बाहर निकाल दो।
गांव के उस व्यक्ति को न सिर्फ ये सपना याद रहा, बल्कि वह जगह भी अच्छी तरह से याद रह पाई जहाँ सपने में वह बाबा उन्हें दिखाई दिए थे, सुबह उन्होंने गांव के सभी लोगों को मंदिर के पास इक्कठा बुलाकर अपने स्वप्न की दस्तान सुनाई, और लोगों ने उनकी बात को गंभीरता से लेते हुए गैंती, बेलचा, फावड़ा इत्यादि सामान लेकर उस जगह पहुँच गए।
जब उस जगह को खोदना शुरू किया तो बहुत जल्दी उन्हें यह शिवलिंग नजर आने लगा, फिर वहां आस पास, साफ़ सफाई करके पंडितों को बुलाकर पूजा पाठ मंत्रोचार के साथ इस शिवलिंग की आराधना की गई और आज यह शिवलिंग न सिर्फ आकर्षण का केंद्र बना हुआ है बल्कि दूर दूर से लोग इसके दर्शन के लिए यहाँ आते हैं।
इसी प्रकार यहाँ दो गुफाओं मे रखी हुयी शिला पर लिखी एक भाषा का अनसुलझा रहस्य आज तक बरकरार है जिसे जानने और समझने के लिए दुनियां के कई देशों के पर्यटक यहाँ आ चुके हैं लेकिन न तो उन गुफाओं के आखिरी छोर तक कोई पहुँच पाया है और न ही उस भाषा का अर्थ कोई समझ पाया है।
ऐसा माना जाता है गुप्तोत्तर काल में सातवीं शताब्दी में सिंहपुर के यदुवंशीय शासक श्री भास्कर वर्मन की पुत्री ईश्वरा ने अपने पति श्री चन्द्र गुप्त (जालंधर का शासक) की पुण्य स्मृति में लाखा मंडल में शिव मंदिर का निर्माण कराया था। उक्त ऐतिहासिक मंदिर के परिसर से दो शिला लेख प्राप्त हुए हैं।
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