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पूजा दोपहर के समय क्यों नहीं करनी चाहिए? Puja dopahar ke samay kyo nahi karni chahiye?
पूजा दोपहर के समय क्यों नहीं करनी चाहिए? Puja dopahar ke samay kyo nahi karni chahiye? पूजा करने का सही समय क्या है? पूजा करने का समय, puja karne ka sahi time, दोपहर के वक्त पूजा ना करने के कारण वजह, जानिये क्यों दोपहर होने पर पूजा करने से रोका जाता है.
अब तक आपने देखा होगा कि घर, दुकान या मंदिर में सभी लोग सुबह या श्याम के समय ही पूजा करने के लिए जाते हैं परन्तु दोपहर के समय कोई भी पूजा करता हुआ नहीं मिलता है। (कभी किसी मंदिर में ज्यादा भीड़ के कारण सुबह से शुरू हुई पूजा दोपहर में भी चलती रहे वो एक अलग बात है।) आइये आज जानते है कि दोपहर में पूजा क्यों नहीं करते है।
सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है, ऐसी प्राचीन मान्यता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय। यह दिन की शुरुआत होती है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है।
इस समय नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने में अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते है।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का समय होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं।
साथ ही दोपहर बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।
Thanks for reading...
Tags: पूजा दोपहर के समय क्यों नहीं करनी चाहिए? Puja dopahar ke samay kyo nahi karni chahiye? पूजा करने का सही समय क्या है? पूजा करने का समय, puja karne ka sahi time, दोपहर के वक्त पूजा ना करने के कारण वजह, जानिये क्यों दोपहर होने पर पूजा करने से रोका जाता है.
अब तक आपने देखा होगा कि घर, दुकान या मंदिर में सभी लोग सुबह या श्याम के समय ही पूजा करने के लिए जाते हैं परन्तु दोपहर के समय कोई भी पूजा करता हुआ नहीं मिलता है। (कभी किसी मंदिर में ज्यादा भीड़ के कारण सुबह से शुरू हुई पूजा दोपहर में भी चलती रहे वो एक अलग बात है।) आइये आज जानते है कि दोपहर में पूजा क्यों नहीं करते है।
सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है। जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है। सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है, ऐसी प्राचीन मान्यता है। ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय। यह दिन की शुरुआत होती है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी। सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है।
इस समय नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने में अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते है।
इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का समय होता है। इसलिए उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं।
साथ ही दोपहर बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है। इसलिए सुबह की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है।
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