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जो दुःख वर्त्तमान में मिल रहा है उसे तो सहकर ही समाप्त किया जा सकता है - Sad life
दुखी का मतलब क्या होता है? सुख और दुख क्या होता है? दुख कैसे आता है? दुख कैसे दूर होते हैं? दुख से कैसे बचें? जीवन में सुखी रहने के उपाय, जीवन में सुख दुख का संगम, इंसान दुखी कब होता है? दुख में क्या करना चाहिए?
जो दुःख आया नहीं है उसे टाला जाना चाहिए | कोशिश करनी चाहिए उसे टालने की| जो दुःख वर्त्तमान में मिल रहा है उसे तो सहकर ही समाप्त किया जा सकता है| कर्म सिद्धांत के अनुसार भी जो कर्म परिपक्व हों दुःख देते हैं| उनसे किसी भी प्रकार से बच पाना संभव नहीं होता|
उनसे छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता उन्हें भोग कर ही समाप्त करना होता है| परन्तु जो अभी आया नहीं है हम उसके आगमन को अवश्य रोक सकते हैं| जब तक शरीर विद्यमान है, दुःख तो लगे ही रहेंगे, परन्तु भविष्य को बदलना हमारे हाथ में होता है|
उदाहरण के लिये आपने खेत में जो कुछ बोया है उसकी फसल तो काटना आनिवार्य है क्योंकि अब उसे बदल पाना आपके हाथ में नहीं होता| परन्तु जहां तक भविष्य की फसलों का सवाल है, आप पूरी तरह स्वतंत्र है कि किन परिस्थितियों में कैसी फसल हों| बन्दूक से एक बार छूटी गोली पुनः उसमें वापिस नहीं लाइ जा सकती| परन्तु अभी उसमें जो गोली बची है उसे न दागना आपके हाथ में होता है| इसके लिये अपने वर्त्तमान कर्मों को सही ढंग से इच्छित फल के अनुरूप करना आवश्यक होता है|
मनुष्य जीवन में कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो अपना फल देना प्रारम्भ करने के निकट होते हैं| उनके फल को प्रारब्ध कहते हैं जिसे सुख अथवा दुःख के रूप में प्रत्येक को भोगना आनिवार्य होता है| तपस्या, विवेक और साधना द्वारा उनका सामना करना चाहिए| परन्तु ऐसे कर्म जो भविष्य में फल देंगे, आप उनसे बच सकते हैं| इसके लिये आपको वर्त्तमान में, जो आपके हाथ में है, सुकर्म करना होगा|
कर्म के सिद्धांत के अनुसार कर्मों का एक समूह ऐसा है जिससे आप लाख उपाय करने पर भी बच नहीं सकते| परन्तु दुसरा समूह ऐसा है जिसे आप इच्छानुसार बदल अथवा स्थगित कर सकते हैं| इस प्रकार यह सूत्र घोषणापूर्वक बताता है कि आने वाले दुःख (कर्मफल) को रोकना व्यक्ति के अपने हाथ में होता हैं|
Thanks for reading...
Tags: दुखी का मतलब क्या होता है? सुख और दुख क्या होता है? दुख कैसे आता है? दुख कैसे दूर होते हैं? दुख से कैसे बचें? जीवन में सुखी रहने के उपाय, जीवन में सुख दुख का संगम, इंसान दुखी कब होता है? दुख में क्या करना चाहिए?
जो दुःख आया नहीं है उसे टाला जाना चाहिए | कोशिश करनी चाहिए उसे टालने की| जो दुःख वर्त्तमान में मिल रहा है उसे तो सहकर ही समाप्त किया जा सकता है| कर्म सिद्धांत के अनुसार भी जो कर्म परिपक्व हों दुःख देते हैं| उनसे किसी भी प्रकार से बच पाना संभव नहीं होता|
उनसे छुटकारा पाने का एकमात्र रास्ता उन्हें भोग कर ही समाप्त करना होता है| परन्तु जो अभी आया नहीं है हम उसके आगमन को अवश्य रोक सकते हैं| जब तक शरीर विद्यमान है, दुःख तो लगे ही रहेंगे, परन्तु भविष्य को बदलना हमारे हाथ में होता है|
उदाहरण के लिये आपने खेत में जो कुछ बोया है उसकी फसल तो काटना आनिवार्य है क्योंकि अब उसे बदल पाना आपके हाथ में नहीं होता| परन्तु जहां तक भविष्य की फसलों का सवाल है, आप पूरी तरह स्वतंत्र है कि किन परिस्थितियों में कैसी फसल हों| बन्दूक से एक बार छूटी गोली पुनः उसमें वापिस नहीं लाइ जा सकती| परन्तु अभी उसमें जो गोली बची है उसे न दागना आपके हाथ में होता है| इसके लिये अपने वर्त्तमान कर्मों को सही ढंग से इच्छित फल के अनुरूप करना आवश्यक होता है|
मनुष्य जीवन में कुछ कर्म ऐसे होते हैं जो अपना फल देना प्रारम्भ करने के निकट होते हैं| उनके फल को प्रारब्ध कहते हैं जिसे सुख अथवा दुःख के रूप में प्रत्येक को भोगना आनिवार्य होता है| तपस्या, विवेक और साधना द्वारा उनका सामना करना चाहिए| परन्तु ऐसे कर्म जो भविष्य में फल देंगे, आप उनसे बच सकते हैं| इसके लिये आपको वर्त्तमान में, जो आपके हाथ में है, सुकर्म करना होगा|
कर्म के सिद्धांत के अनुसार कर्मों का एक समूह ऐसा है जिससे आप लाख उपाय करने पर भी बच नहीं सकते| परन्तु दुसरा समूह ऐसा है जिसे आप इच्छानुसार बदल अथवा स्थगित कर सकते हैं| इस प्रकार यह सूत्र घोषणापूर्वक बताता है कि आने वाले दुःख (कर्मफल) को रोकना व्यक्ति के अपने हाथ में होता हैं|
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