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तीर्थ यात्रा पर पति-पत्नी को एक साथ ही क्यों जाना चाहिए? Tirth yatra par Pati-Patni ko ek saath hi kyo jana chahiye?
तीर्थ यात्रा पर पति-पत्नी को एक साथ ही क्यों जाना चाहिए? Tirth yatra par Pati-Patni ko ek saath hi kyo jana chahiye? जान लीजिये कि मियां और बीवी को एक साथ ही तीर्थ यात्रा पर जाना लाभदायक क्यों रहता है?
क्या आप जानते है कि तीर्थ यात्रा पर पति-पत्नी का एक साथ जाना ही ज्यादा उत्तम रहता है, आइये जानकारी लेते है कि ऐसा करने से क्या लाभ होगा...
पति-पत्नी के मुख्य कर्तव्य में से एक है कि सभी पूजन कार्य दोनों एक साथ ही करेंगे। पति या पत्नी अकेले पूजा-अर्चना करते हैं तो उसका अधिक महत्व नहीं माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी एक साथ पूजादि कर्म करते हैं तो उसका पुण्य कई जन्मों तक साथ रहता है और पुराने पापों का नाश होता है।
इसलिए हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि पति-पत्नी को तीर्थ दर्शन या मंदिर एक साथ ही जाना चाहिए क्योंकि विवाह के बाद पति-पत्नी को एक-दूसरे का पूरक माना गया है।
सभी धार्मिक कार्यों में दोनों का एक साथ होना अनिवार्य है। पत्नी के बिना पति को अधूरा ही माना जाता है। दोनों को एक साथ ही भगवान के निमित्त सभी कार्य करने चाहिए।
पत्नी को पति अद्र्धांगिनी कहा जाता है, इसका मतलब यही है कि पत्नी के बिना पति अधूरा है। पति के हर कार्य में पत्नी हिस्सेदार होती है। शास्त्रों में इसी वजह सभी पूजा कर्म दोनों के लिए एक साथ करने का नियम बनाया गया है।
दोनों एक साथ तीर्थ यात्रा करते हैं तो इससे पति-पत्नी को पुण्य तो मिलता है साथ ही परस्पर प्रेम भी बढ़ता है। स्त्री को पुरुष की शक्ति माना जाता है इसी वजह से सभी देवी-देवताओं के नाम के पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है जैसे सीताराम, राधाकृष्ण।
इसी वजह से पत्नी के बिना पति का कोई भी धार्मिक कर्म अधूरा ही माना जाता है। इसीलिए पति-पत्नी को तीर्थ यात्रा साथ ही करना चाहिए।
Thanks for reading...
Tags: तीर्थ यात्रा पर पति-पत्नी को एक साथ ही क्यों जाना चाहिए? Tirth yatra par Pati-Patni ko ek saath hi kyo jana chahiye? जान लीजिये कि मियां और बीवी को एक साथ ही तीर्थ यात्रा पर जाना लाभदायक क्यों रहता है?
क्या आप जानते है कि तीर्थ यात्रा पर पति-पत्नी का एक साथ जाना ही ज्यादा उत्तम रहता है, आइये जानकारी लेते है कि ऐसा करने से क्या लाभ होगा...
पति-पत्नी के मुख्य कर्तव्य में से एक है कि सभी पूजन कार्य दोनों एक साथ ही करेंगे। पति या पत्नी अकेले पूजा-अर्चना करते हैं तो उसका अधिक महत्व नहीं माना गया है।
शास्त्रों के अनुसार पति-पत्नी एक साथ पूजादि कर्म करते हैं तो उसका पुण्य कई जन्मों तक साथ रहता है और पुराने पापों का नाश होता है।
इसलिए हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि पति-पत्नी को तीर्थ दर्शन या मंदिर एक साथ ही जाना चाहिए क्योंकि विवाह के बाद पति-पत्नी को एक-दूसरे का पूरक माना गया है।
सभी धार्मिक कार्यों में दोनों का एक साथ होना अनिवार्य है। पत्नी के बिना पति को अधूरा ही माना जाता है। दोनों को एक साथ ही भगवान के निमित्त सभी कार्य करने चाहिए।
पत्नी को पति अद्र्धांगिनी कहा जाता है, इसका मतलब यही है कि पत्नी के बिना पति अधूरा है। पति के हर कार्य में पत्नी हिस्सेदार होती है। शास्त्रों में इसी वजह सभी पूजा कर्म दोनों के लिए एक साथ करने का नियम बनाया गया है।
दोनों एक साथ तीर्थ यात्रा करते हैं तो इससे पति-पत्नी को पुण्य तो मिलता है साथ ही परस्पर प्रेम भी बढ़ता है। स्त्री को पुरुष की शक्ति माना जाता है इसी वजह से सभी देवी-देवताओं के नाम के पहले उनकी शक्ति का नाम लिया जाता है जैसे सीताराम, राधाकृष्ण।
इसी वजह से पत्नी के बिना पति का कोई भी धार्मिक कर्म अधूरा ही माना जाता है। इसीलिए पति-पत्नी को तीर्थ यात्रा साथ ही करना चाहिए।
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