Hindi Story and Kahaniyan - पश्चाताप और सुधरने का मौका
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आजकल मुकेश की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। पिछले छः सात सालों से सेल्समैन बनकर दर-दर की ठोकरें खा रहा था, रात दिन मेहनत करता था। उसी के परिणामस्वरूप उसे एक बड़ी कंपनी में मैनेजर के पद पर नई नौकरी मिल गई थी, तनख्वाह भी अच्छी हो गई थी। नई कम्पनी में दोस्ताना माहौल था, सब हंसते बोलते रहते थे पुरानी कम्पनी की तरह खींचातानी नहीं थी। उसने नौकरी लगते ही ,किष्तो में गाड़ी खरीद ली थी, उसका घर दफ्तर से दूर , शहर की सरहद पर था, जहां से सवारी मिलना बहुत मुश्किल हो जाता था।
उसकी खुशी का एक और कारण मोहिनी थी जो उससे पहले से इस कम्पनी में काम करती थी। बला की खूबसूरत, पहनने ओढ़ने की अपनी अलग अदा ,सदा बनी ठनी हंसती खिलखिलाती रहती। कम्पनी के पुरूष कर्मचारियों के आकर्षण का केंद थी और स्त्रियों के ईर्ष्या का स्रोत। मुकेश ने अगर सिनेमा के पर्दे की बात छोड़ दी जाएं तो इतनी सुन्दर स्त्रि अपने जीवन में कभी नहीं देखी थी।
वह किसी न किसी बहाने अपने कैबिन में उसे बुलाता और वह भी मटकती और बलखाती आती हंस कर जो काम बताता वह करती और चली जाती। वह न जाने कौन सा परफ्यूम लगाती थी, उसकी देह से आती ताज़े फूलों की खुशबू मुकेश को मदहोश कर देती थी। उसकी कसी हुई देह पर चढ़ी पोशाकें अगर शालीनता की सीमा लांघने में संकोच करती थी तो कल्पना के लिए भी कुछ खास नहीं छोड़ती थी। बरसों का अकेलापन या जवानी की आग कहलों वह उसके रुप के आकर्षण में दीवाना होता जा रहा था।
परिवार के नाम पर उसकी एक छोटी बहन थी नम्रता, जिसकी चार पांच साल पहले दुसरे शहर में शादी हो गई थी। शादी के एक साल बाद नम्रता की सास को लकवा मार गया और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। नम्रता का सारा समय अपनी सास की सेवा और तीन साल के पुत्र की देखभाल में ही व्यतीत होता था। मुकेश स्वयं ही साल में दो बार राखी और दिवाली पर जाकर बहन -बहनोई से मिल आता। उसके मां-बाप नम्रता की शादी के एक साल बाद ही कार दुर्घटना में इस संसार से विदा ले चुके थे।
आखिर मुकेश से जब अपने दिल पर और काबू रखना मुश्किल हो गया तो उसने एक शनिवार मोहिनी को रात कहीं बाहर खाने का निमंत्रण दे दिया। उसे लगा था वह मना कर देगी लेकिन वह आराम से मान गई।
मोहिनी को प्रभावित करने के लिए वह एक महंगे रेस्टोरेंट में खाना खाने ले गया। रेस्टोरेंट इतना आलीशान था कि वहां की चकाचौंध देखकर मोहिनी की आंखें चौड़ी हो गई। वह स्वयं एसी जगह पहली बार आया था लेकिन उसका ध्यान मोहिनी के चेहरे और उठते गिरते वक्षस्थल पर था। मोहिनी उसके इतने करीब पहली बार बैठी थी ,वह अपनी नजरें हटा नहीं पा रहा था।
खाना खाकर जब बाहर निकलें तो मुकेश ने स्वयं मोहिनी को गाड़ी में बैठाने के लिए दरवाजा खोला। गाड़ी में बैठते हुए मोहिनी की स्कर्ट थोड़ी ऊपर उठ गई। मुकेश का दिल इतने जोर से धड़का कि उसको लगा उसका दिल सीने से बाहर आ जाएगा। रास्ता काटना मुश्किल हो रहा था, आखिर रहा नहीं गया तो उसने मोहिनी का हाथ अपने हाथ से धीरे से दबा दिया। मोहिनी ने अपनी नजरें मुस्कुराते हुए झुका ली। जब मोहिनी की ओर से कोई विरोध नहीं हुआ तो मुकेश की हिम्मत बढ़ गई।
एक सुनसान स्थान देखकर उसने गाड़ी रोक दी और मोहिनी के गले में बाहें डाल कर उसे अपनी तरफ खींचा। गुलाबी होंठों पर जब उसने अपने होंठ रखे तो उसको लगा उसकी सम्पूर्ण देह में एक लहर सी दौड़ गई। मोहिनी ने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल कर अपना मुंह थोड़ा सा खोल दिया। मुकेश के लिए इतना निमंत्रण ही काफी था, उसे समय का होश भी नहीं रहता अगर दूसरी दिशा से आती गाड़ी की रोशनी उन पर नहीं पड़ती। हड़बड़ा कर दोनों अलग हो गए। मोहिनी को उसके घर उतारते हुए उसका मन बोझिल हो रहा था लेकिन क्या करता। रात भर मुकेश सो नहीं पाया, करवटें बदलता रहा, मोहिनी का खयाल उसे बैचेन करता रहा।
अगले दिन रविवार था उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। अंदर ऐसी आग महसूस हो रही थी कई बार ठंडा पानी अपने ऊपर डालना पड़ा। जब घर में बैठा ही नहीं गया तो बाजार चला गया, वहां भी मोहिनी की शक्ल पीछा करती रही तो उसने मोहिनी के लिए सुन्दर सी घड़ी खरीद ली।
अगले दिन दफ्तर पहुंचा तो सबसे पहले मोहिनी को अपने केबिन में बुलाया। जैसे ही उसने घड़ी दी वह उछल कर उसके गले से लग गई। मुकेश ने भी उसे बाहों में लेकर उसके गालों आंखों और होंठों को चूमना शुरू कर दिया। हफ्ते भर यही क्रम चलता रहा, वह कोई मौका नहीं छोड़ता था उसे बाहों में लेने का और वह भी बराबर टाईट स्कर्ट में नागिन की तरह लहराती हुई उसके आगे पीछे घूमती रहती। अब मुकेश के धैर्य का बांध टूटता जा रहा था उससे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा था। वह मोहिनी को पूर्णतः अपनी बनाने के लिए बैचेन हो रहा था, इस बार शनिवार को उसने पुख्ता इंतजाम किए।
शहर से दूर एक होटल में खाना खिलाने ले गया मोहिनी को। एक कमरा पहले से ही अपने नाम बुक करा लिया था। उस दिन दफ्तर में काम अधिक था इसलिए देर से निकल सकें और खाना खाकर जब होटल से बाहर निकले तो देर सी हो गई थी। तेज़ हवा चल रही थी , मुकेश ने सलाह दी इतनी रात को इस मौसम में गाड़ी चला कर जाना खतरे से ख़ाली नहीं ,रात यहीं रुकते हैं। मोहिनी को भी बात ठीक लगी। कमरे में पहुंच कर पहले तो मुकेश को घबराहट हुई, वह जल्दबाजी तो नहीं कर रहा लेकिन मोहिनी को खिड़की के पास आराम से खड़ा देखा तो वह भी उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। मोहिनी कुछ नहीं बोली बस थोड़ा पीछे को झुक गई , उसकी पीठ मुकेश के सीने पर टिक गई।
अब मुकेश को किसी और संकेत की आवश्यकता नहीं थी उसने मोहिनी को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया। रात भर वह उसकी आगोश में समाया रहा,सुबह आंख खुली तो दस बजे थे उसका मन घर जाने को नहीं हुआ। उसने नाश्ते का आदेश दिया और मोहिनी की तरफ देखा। वह बेसुध सो रही थी और सोते हुए परी सी लग रही थी। मुकेश को लगा प्रतिदिन सुबह उठते ही यह खुबसूरत चेहरा अगर उसे नज़र आएगा तो उसे जीवन में कोई ग़म नहीं रहेगा। नाश्ता करते हुए मुकेश ने मोहिनी से पूछा घर जाने की जल्दी न हो तो रविवार का दिन भी होटल में ही बिता सकते हैं सोमवार की सुबह वापस लौट जाएंगे। मोहिनी ने जब खुश होते हुए हां कर दी तो मुकेश को यकीन हो गया मोहिनी को उससे प्रेम हो गया है।
दिनभर दोनों एक-दूसरे में खोए रहे और दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। अगले दिन मुकेश दफ्तर थोड़ा देर से पहुंचा लेकिन बहुत प्रसन्नचित और तरोताजा महसूस कर रहा था।
केबिन में दाखिल हुआ ही था कि सोहन ने उसे घेर लिया। दोनों एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे इसलिए दोस्तों वाला व्यवहार था। वैसे तो सोहन स्वयं ही आया था बात करने लेकिन अब कुछ संकुचित सा महसूस कर रहा था। आखिर मुकेश ने झल्लाकर कहा :" बोलता क्यों नहीं बे जो कहने आया है , लड़कियों की तरह शरमा क्यों रहा है। "
सोहन : " देख तू मुझे गलत मत समझना ,तू जो मोहिनी में इतनी दिलचस्पी ले रहा है वह सही नहीं है। मोहिनी जहां पहले काम करती थी वहां मैं एक दो लोग को जानता हूं, इसके वहां भी कुछ लोगों से सम्बंध थे। "
सुनते ही मुकेश को गुस्सा आ गया, उसकी आंखें लाल हो गई। उसने सोहन का कोलर पकड़ लिया और लगभग चीखते हुए कहा :" खबरदार साले उसके बारे में कुछ भी उल्टी सीधी बात की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा उसके भूत से मुझे कोई वास्ता नहीं है। अब वह मेरी और सिर्फ मेरी हैं , किसी को उसके आसपास फटकने भी नहीं दूंगा। साले यह क्यो नही कहता तुम सब को मिर्ची लग रही है ,वह अब तुम्हारी तरफ देखती भी नहीं है। "
मुकेश का मूड़ खराब हो गया था,उसका अब काम में मन नहीं लग रहा था। मोहिनी ने कहा था वह लंच के बाद आफिस आएगी। उसके दिमाग में उथल-पुथल चल रही थी कि जैसे उसे मोहिनी के खिलाफ भड़का रहे हैं वैसे ही अगर ये लोग मोहिनी को उसके बारे में कुछ उल्टा सीधा बता सकते है। उसे यह यकीन हो गया था मोहिनी उसे चाहने लगीं है लेकिन कितना यह कहना अभी मुश्किल है। वह स्वयं उसके बिना नहीं रह सकता था , अपने तन और मन को तृप्त करने के लिए उसे मोहिनी की अपने जीवन में बहुत आवश्यकता थी। उसे विश्वास था कि उसका स्वयं का मोहिनी के प्रति इतना अधिक प्रेम है कि उससे ही उन दोनों का जीवन प्रेममय हो जाएगा। मुकेश ने निश्चय कर लिया कि वह तुरंत मोहिनी से अपने दिल की बात बताकर उसे शादी के लिए मना लेगा।
मुकेश को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी मोहिनी को शादी के लिए मनाने में वह एकदम राज़ी हो गई।
मोहिनी को आशा नहीं थी कि मुकेश उससे शादी की बात करेगा। उसने बचपन से ही पुरुष का स्वार्थी रुप ही देखा था। पिता की अच्छी खासी सरकारी नौकरी थी लेकिन आधे से अधिक पीने और अय्याशी में उड़ा देता था। घर में ग़रीबी का यह आलम था कि कईं बार भूखे पेट ही सोना पड़ता था। शराब के नशे में वह इतना वहशी हो जाता था कि पत्नी को तो मारता ही था जब मोहिनी और उसका भाई बीच बचाव करते तो वे भी बुरी तरह पिट जाते।
घर के हालात से दुखी होकर भाई जब पन्द्रह सोलह साल का था घर छोड़कर ऐसा भागा कि फिर कभी वापस नहीं आया। मां भी पति के जुल्मों से तंग आकर किसी और के साथ जाकर रहने लगी। बीच-बीच में जब पति घर में नहीं होता तो मोहिनी से मिलने आती और कुछ रुपए उसको दे जाती। अपने साथ रख नहीं सकती थी क्योंकि जिसके साथ रहती थी उसकी नियत पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। मां की बेवफाई का गुस्सा भी पिता मोहिनी पर उतारता था , उसके साथ गाली-गलौच और मार पिटाई करता। ऐसी विषम परिस्थिति से निपटने के लिए मोहिनी ने अपनी चेतना को सुन्न सा कर लिया था, सोचने समझने की क्षमता सुप्त सी हो गई थी। किसी तरह सरकारी स्कूल से उसने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी की।
मां ने बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे जमा किए थे , उसने मोहिनी का दाखिला एक वर्षीय कम्पूयटर कोर्स में करवा दिया। कम्पूयटर के अलावा मोहिनी ने वहां और भी बहुत कुछ सीखा। वहां कालेज में पढ़ने वाले अमीर घरों के लड़के लड़कियां आते थे कुछ कम्पूयटर सीखने तो कुछ अपना काम करने करवाने। लड़कियों को देख देखकर वह युवाओं में प्रचलित कपड़ों और हाव-भाव सीखने लगी। एक लड़के से उसकी दोस्ती हो गई जिसके साथ वह शामें बिताने लगी।
वह लड़का अंग्रेजी अच्छी बोलता था तो धीरे धीरे मोहिनी की भी इस भाषा पर पकड़ अच्छी हो गई। उसके साथ घूमने का एक फायदा और होता था कि अक्सर उसके रात के खाने की व्यवस्था हो जाती थी। उस लड़के ने शुरू से ही अपनी मंशा बता दी थी कि वह नौ दस महीने के लिए ही भारत में है फिर आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला जाएगा। इसलिए वह केवल समय बिताने के लिए दोस्ती कर रहा था। उसके पास पैसे की कमी नहीं थी रात को कभी कभी होटल में कमरा बुक करा लेता था। अपने स्टेटस की किसी लड़की के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता था कहीं बाद में गले की हड्डी न बन जाए। गुमसुम रहता था बहुत कम बोलता था, लेकिन जब अधिक पीलेता था तब फुटफुट कर रोता था और बहुत देर तक बड़बड़ाता रहता था।
मोहिनी को बस इतना समझ आया था कि उसके घर में परिवारिक कलह इतनी थी कि उसका अपने घर में मन नहीं लगता था। विदेश जाने से पहले उसने अपनी पहचान वालों की एक कंपनी में मोहिनी की नौकरी लगवा दी। नौकरी लगते ही मोहिनी ने पिता का घर छोड़ दिया और वुमन वर्किंग होस्टल में रहने चली गई। वह अपनी तनख्वाह अच्छा खानें और पहनने में खर्च करती , बचपन की दबी इच्छाओं को पूरा करने में लग गईं। उसे लोगों के बीच रहना , हंसना बोलना बहुत अच्छा लगता।
पुरुष सहकर्मी उसके आगे पीछे घूमते, उसके एक इशारे पर उसका कोई भी काम तत्परता से करते। आगे बढ़ने के लिए उसे देह का इस्तेमाल करने से कोई परहेज नहीं होता था उसे लगता था यही दुनिया का दस्तूर है। पिछली नौकरी में बोस जब भी बाहर जाता उसे भी साथ ले जाता, धीरे धीरे उसने मोहिनी की तनख्वाह काफी बढ़ा दी। एक दिन उसकी बीवी को पता चल गया फिर जो बवाल मचा बॉस को लगा उसके बचें खुचे बाल भी उड़ जाएंगे। बीवी को खुश करने के लिए उसने मोहिनी को नौकरी से निकाल दिया और मोहिनी का मुंह बंद रखने के लिए उसे अपने दोस्त की कंपनी में लगवा दिया। इस तरह मोहिनी इस नई कंपनी में काम करने लगीं थीं।
जब मुकेश ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो निसंदेह उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा था मुकेश भी औरों की तरह उसका इस्तेमाल करके छोड़ देगा। वह खुश थी और उसने तुरंत शादी के लिए हां कर दी। दोनों ने मिलकर एक सुंदर सी अंगुठी खरीदी और आर्य समाज मंदिर में जाकर शादी कर ली। नम्रता की सास की तबीयत अधिक खराब होने के कारण वह उन्हें छोड़ कर आ नहीं सकती थी। दो चार दोस्त जो शादी के समय उपस्थित थे , उन्हीं के साथ होटल में खाना खाया और हनीमून पर निकल गए। लौटते समय मुकेश अपनी बहन नम्रता के घर भी उससे मिलने गया। नम्रता को हमेशा अपने भाई की चिंता रहती थी ,कि बेचारा बिल्कुल अकेले रहता है और इतनी मेहनत करता है। जब मोहिनी को देखा तो उसे बड़ी खुशी हुई की भाई का ध्यान रखने वाली उसका अकेलापन दूर करने वाली कोई आ गई है। भाई को इतना प्रसन्न देखकर नम्रता के दिल को बड़ी तसल्ली हुई।
घर पहुंचकर मुकेश ने स्वयं ही आगे बढ़ कर मोहिनी का स्वागत किया और उसका गृह प्रवेश किया। चार-पांच दिन से घर बंद पड़ा था ,धूल ही धूल नज़र आ रही थी सब जगह। घर बहुत पुराना था जगह जगह से मरम्मत की मांग कर रहा था। मुकेश के पास न कभी इतना समय रहा न कभी इतना पैसा की वह घर की तरफ ध्यान देंता।
घर के चारों तरफ इतना खुला स्थान था कि उसकी मां वहां बागबानी करती थी और मौसमी सब्जियां घर में ही उगा लिया करतीं थीं। मां के जाने के बाद अब वहां कंटीली झाड़ियां उग आई थी जिसके कारण घर वीरान और उजड़ा हुआ सा प्रतित होता था। शहर से बाहर की तरफ था , कोई कोलाहल नहीं , आसपास कोई रहता भी हो तो दिखता नहीं था। पास-पड़ोस के नाम पर इसी तरह के कुछ मकान थोड़ी थोड़ी दूर पर बने थे। मोहिनी को घर देखकर बहुत निराशा हुई , मुकेश जितना स्मार्ट दिखता था इतने अच्छे पद पर कार्यरत था उसने सोचा था उसका किसी अच्छी सोसायटी में सुन्दर सा फ्लैट होगा। लेकिन यहां तो वीरान सा टूटा फूटा सा मकान था।
घर को थोड़ा साफ किया फिर मुकेश मोहिनी के साथ बाजार गया , कुछ खाना बनाने की सामग्री और कुछ खाने का सामान लेकर आया। इस तरह उनकी गृहस्थी का शुभारंभ हुआ। अगले दिन मुकेश को दफ्तर जाना था , मोहिनी ने शादी के नाम पर एक महिने की छुट्टी ले रखी थी।
वह घर में घूम घूमकर देख रही थी कहां क्या रखा है ,घर ज्यादा बड़ा नहीं था दो शयनकक्ष का था। उसे घर के रखरखाव का और खाना बनाने का कोई अंदाजा नहीं था। उसके घर में कुछ होता ही नहीं था जो उसे इन सब बातों की जानकारी या समझ होती। फिर भी सफाई वाली के साथ मिलकर वह घर को साफ और ठीक करने की कोशिश में लग गईं। उसे विश्वास नहीं हुआ यह सब इतना इतना थका देने वाला काम होता है।
मुकेश ने माता पिता के देहांत के बाद घर को कभी संवारा भी नहीं था इस कारण बेतरतीब से सामान भरा पड़ा था। रात को मोहिनी ने जो थोड़ा बहुत पकाना आता उस हिसाब से एक सब्ज़ी और रोटियां सेंक कर रख दी। मुकेश आया तो उसे तो बस मोहिनी के करीब आने की बेताबी थी , मोहिनी ने घर में क्या किया और कैसा खाना बनाया उससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
लेकिन एक हफ्ते बाद जब उसका उन्माद कुछ कम हुआ तो उसे समझ आया मोहिनी के हाथ में स्वाद नहीं है। उसने निश्चय किया कि अब वह कुछ खाना बाहर से बंधवाकर लाया करेगा और कुछ आकर स्वयं बनाएगा तो शायद मोहिनी भी सीख जाएगी। इस एक हफ्ते में मोहिनी को यह समझ आया कि घर के काम बहुत उबाऊ है और सारे दिन घर में पड़े रहना बहुत मुश्किल। उसे बन-ठन कर दफ्तर जाना और संगी-साथियों से हंसी मज़ाक न करना अब अखरने लगा। उसने मुकेश से कहा वह छुट्टी रद्द करके आफिस जाना चाहती है।
लेकिन मुकेश अब मोहिनी को अपनी सम्पत्ति समझने लगा था। उसे अब यह बिल्कुल भी स्विकारय नहीं था कि कोई और मोहिनी से बात करें या उसके नजदीक आए। उसने मोहिनी से नौकरी छोड़ने की बात कही। मोहिनी ने साफ मना कर दिया तो उसने टालने के उद्देश्य से कहा ," ठीक है एक महीने की छुट्टियां जो ली है वो समाप्त हो जाएंगी तब आगे की सोचेंगे। "
मोहिनी मान गई , वैसे भी वह इस विचार से ही बहुत खुश थी कि उसकी शादी हो गई है ,उसका अपना घर है मुकेश उसका इतना ध्यान रखता है। लेकिन महीने के अंत तक उसकी तबीयत खराब रहने लगी , जब भी खाती ऊबकाई आने लगती। मुकेश डाक्टर के पास ले कर गया तो पता चला मोहिनी गर्भवती हैं। दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब तो मुकेश ने बच्चे की सुरक्षा का हवाला देकर मोहिनी को नौकरी करने से बिल्कुल मना कर दिया।
मोहिनी बच्चा होने के ख्याल से इतनी खुश थी कि उसे लगा मुकेश ठीक कह रहा है , उसे अब घर में रहकर आराम करना चाहिए। बढ़ते वजन के कारण उसे असुविधा होने लगी थी। ऊपर से घर में कुछ काम वह करती नहीं थी तो खालीपन और अकेलापन उसे कचोटने लगा। वह इन आठ नौ महीनों में बहुत चिड़चिड़ी और उदासीन सी हो गई थी। मुकेश को महसूस होने लगा था उसके और मोहिनी के बीच ऐसा कोई विषय नहीं था जिस पर दोनों मिलकर बात कर सकें। वैसे तो मोहिनी के पास कुछ खास बोलने को होता नहीं था लेकिन जब भी बोलती कोई न कोई शिकवा कर रही होती।
अब उसे भी झुंझलाहट होने लगी थी ,घर का कोई काम नहीं हुआ होता था और वह दुखियारी बनी घूमती रहती थी। किसी तरह नौ महीने बीते और उमंग का जन्म हुआ।
नम्रता एक हफ्ते के लिए किसी तरह समय निकाल कर भतीजे को देखने के लिए आईं। घर के हालात और मोहिनी की मानसिक स्थिति देखकर उसे बहुत दुख हुआ। मुकेश से कह सुनकर उसने बर्तन मांजने के लिए और खाना बनाने के लिए आसपास काम करने वाली औरतों से बात कर ली। साफ-सफाई के लिए तो आती ही थी , उसे लगा घर की व्यवस्था ठीक रहेगी ,घर के काम सुचारू रूप से होते रहेंगे तो शायद घर में रहने वालों का मन प्रसन्नचित रहेगा। जाते-जाते उसने मुकेश से वादा लिया कि वह मोहिनी को किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाने ले जाएगा।
अब तीनों की गाड़ी धक्के खा कर आगे तो बढ़ रही थी पर स्थिति में कुछ सुधार नहीं हुआ। मुकेश ने नम्रता से किया वादे पर ध्यान नहीं दिया। रात को जब मुकेश घर आता तो कभी उमंग साफ सुथरा , भरपेट खुश दिखाई देता और कभी रो रोकर हलकान हो रहा होता। मोहिनी चादर तान कर सो रही होती। वह उस पर चिल्लाता तो वह रोने लगती स्वयं एक असहाय बच्चे की तरह। मुकेश को बहुत खीझ आती ,इन सब बातों से तंग आकर उसने शराब पीनी शुरू कर दी। मोहिनी की कोई व्यवस्थित दिनचर्या नहीं थी जब मन आता उठती नहीं तो सारा दिन नाईटी में पड़ी रहती।
उमंग धीरे धीरे बड़ा हो रहा था , मोहिनी मन में आता उसका बहुत ध्यान रखती वरना उसकी जरूरतों को भी नज़र अंदाज़ कर देती।
मुकेश के सामने बस एक ही रट लगाए रहती उसे बाहर जाना है घर में उसका दम घुटने लगता है। मुकेश उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर देता और अक्सर दोनों में लड़ाई हो जाती। उमंग सहम कर किसी कोने में दुबक जाता।
मुकेश ने उमंग का स्कूल में दाखिला करवा दिया। उमंग स्कूल में भी सहमा सहमा सा रहता। घर में जब कभी मोहिनी अच्छे मूड में होती तो उमंग को गोदी में बैठा कर बहुत प्यार करती , मीठी मीठी बातें करती , उमंग को बड़ा अच्छा लगता। उसे लगता मां हमेशा ऐसी ही क्यों नहीं रहती, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता वह उसके खाने पीने का ध्यान रखें या न रखें टिफिन में और बच्चों की तरह टेस्टी नाश्ता न दे। बस चिल्लाना छोड़ दें और उसे गोदी में बैठा कर स्नेह की बरसात करती रहें। मुकेश ने अब मोहिनी के साथ साथ उमंग पर भी ध्यान देना बन्द कर दिया था।
बिचारा बच्चा हर वक़्त एक ख़ोफ में जीता था , उसे लगता मम्मी बस चुप रहे, पापा से कुछ न बोले जिससे उन दोनों के बीच लड़ाई न हो। लेकिन स्थिती बद से बद्तर होती जा रही थी। अब तो मोहिनी भी पी कर मदहोश रहने लगी थी और जब मुकेश नशें में उससे जबरदस्ती करता तो दोनों में हाथापाई की नौबत आ जाती।
अक्सर दूसरे कमरे में डर से कांप रहे उमंग को दोनों के ज़ोर ज़ोर से चीखने का शोर सुनाई देता, फिर तड़ाक से जोरदार तमाचे की आवाज के बाद सन्नाटा छा जाता। दरवाजे को बहुत जोर से पटकने के बाद मोहिनी उमंग के कमरे में आती , उसे बाहों में भर कर देर तक सुबकती रहती फिर सो जाती। ऐसे ही किसी झगड़े के बाद एक दिन मुकेश गुस्से में घर के बाहर जा रहा था, मोहिनी भी नशे में थी उसके पीछे लपकी। घर के बाहर पांच छः सीढ़ियां थी जहां पहुंच कर मोहिनी के हाथ में पीछे से मुकेश की शर्ट पकड़ मे आ गईं। उसने जैसे ही खींचा मुकेश ने जोरदार धक्का दिया मोहिनी को और वह पीछे गिर गई। उसका सिर सीढ़ियों से जा लगा , धक्का इतना जबरदस्त था कि मोहिनी के सिर में ऐसी चोट आई कि वह फिर उठ न सकीं। मुकेश ने पीछे मुड़कर देखा भी नहीं गुस्से में दनदनाता हुआ बाहर चला गया।
उमंग जो यह सब देख रहा था दौड़कर मोहिनी के पास गया , उसे बहुत हिलाया , लेकिन मोहिनी बेसुध पड़ी रही। खून देखकर उमंग को यह तो समझ आ गया था कि मम्मी को चोट लगी है लेकिन यहां सीढ़ी पर क्यों सो गई यह बिल्कुल नहीं समझ पाया। वह बहुत देर तक मोहिनी को हिलाता रहा ,रोता रहा फिर थककर वहीं सो गया।
सुबह जब दूध वाला आया तो वहां का नजारा देखकर उसके होश उड़ गए। पुलिस आई ,जांच पड़ताल हुई , चुंकि मोहिनी के शरीर में शराब की मात्रा बहुत अधिक थी ,यह निष्कर्ष निकला की नशे की हालत में सीढ़ियों पर पैर फिसल गया और मृत्यु हो गई। मुकेश तो दंग ही रह गया उसके जीवन में यह क्या से क्या हो गया। जब नम्रता को पता चला वह तुरंत पति के साथ भाई के पास आ गई। यहां के हालात देखकर उसे बहुत दुख हुआ ,भाई रोए जा रहा था और उसका बेटा गुमसुम सा एक कोने में दुबक कर बैठा था। उसे लगा दोनों को मोहिनी की मौत का बहुत बड़ा सदमा लगा है। उससे उन दोनों की ऐसी स्थिति देखी नहीं जा रही थी, दस पंद्रह दिन वही रहकर उसने निश्चय किया कि ये दोनों इस अवस्था में नहीं है कि इन्हें यहां छोड़ा जाएं। वह दोनों को लेकर अपने घर आ गई।
नई जगह आकर मुकेश को जैसे होश आया, उसे महसूस हुआ कि उसने अपनी जिंदगी का क्या हश्र कर लिया। उसने कोशिश की तो उसे एक नौकरी मिल गई पहले जैसी तो नहीं थी लेकिन काम चलाऊ थी। नम्रता को भाई और भतीजे की चिंता रहती थी उसे लगा भाई को दूसरी शादी कर लेनी चाहिए जिससे दोनों को संभालने वाली कोई घर में आ जाएगी।
नम्रता के बेटे के स्कूल में एक अध्यापिका थी स्नेहा जो उसे बहुत समझदार और ममतामई स्वभाव की लगती थी। नम्रता जब भी स्कूल जाती उससे जरुर मिलती थी भले ही उसका बेटा अब स्नेहा की कक्षा में नहीं पढ़ता था। एक बार नम्रता को जब पता चला स्नेहा बीमार है तो वह स्नेहा से मिलने उसके घर गई। इस तरह स्कूल के बाहर भी यदाकदा मिलने से दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी। नम्रता ने एक बार उससे पूछा था कि शादी क्यों नहीं की तो उसने हंस कर कहा था ," ऐसा कोई मिला नहीं जिससे शादी करने का मन करता और घर में कोई बुजुर्ग नहीं है जो शादी पक्की कर दे और कान पकड़ कर मंडप में बिठा दे। " नम्रता को लगा अगर स्नेहा भाई की जिंदगी में आ जाए तो भाई और भतीजे की जिंदगी बेहतर हो जाएगी।
जब नम्रता ने मुकेश से बात की तो ना-नुकुर करने के बाद बेटे की खातिर तैयार हो गया। जब स्नेहा से बात की तो उसने भी हां कर दी। एक साधारण से समारोह में विवाह संपन्न हो गया।
स्नेहा को मुकेश की पुरानी जिंदगी के बारे में केवल इतना पता चला था कि किसी हादसे में उसकी पत्नी का देहांत हो गया था और पुरानी यादों से बचने के लिए उसने इस शहर में फिर से नई शुरुआत की। लेकिन शादी के बाद स्नेहा को समझ आ गया कि बात इतनी सुलझी हुई नहीं है जितनी लगती है। दिन भर तो मुकेश हंसता बोलता रहता लेकिन सोने के बाद वह बार बार चौंक कर उठता , पसीने पसीने हो जाता बड़बड़ाने लगता और रोते-रोते माफी मांगता। उमंग को देखकर लगता नहीं था वह चार पांच साल का बच्चा है , इतना दुबला जैसे उसको ठीक से खाना नहीं मिला हो।
डरा सहमा एक कोने में दुबक कर बैठा रहता और सबसे बड़ी बात पिता के निकट बिल्कुल नहीं जाता। अगर मुकेश पुचकारते हुए उसे अपने पास बुलाता भी तो और अपने अंदर सिमट जाता। वह समझ गई कि इन दोनों के साथ कुछ ऐसी घटना घटी है जिसके कारण इन दोनों की मनोदशा ठीक नहीं है। उसका मन बहुत दुखी हुआ कहां तो उसने सोचा था शादी के बाद ऐसा साथी मिलेगा जिसके साथ निश्चिंतता की जिंदगी बसर करेंगी। यहां तो स्वयं उसे इन दोनों का सहारा बनना पड़ेगा ,इस विवाह से उसके हिस्से एक बिखरा हुआ इंसान और एक सहमा हुआ बच्चा आया है। वह हार मानने वालों में से नहीं थी परमात्मा ने जो चुनौती उसके सामने रखी थी उसने निर्णय लिया वह यथासंभव उसका सामना करेगी।
उसने उमंग का दाखिला अपने स्कूल में करवा दिया। वह उसका ध्यान रखती , उसके सब काम चुप चाप करतीं रहती। उसको तरह तरह के व्यंजन बना कर खिलाती। उसे शाम को पार्क ले जाती, पहले तो गुमसुम सा उसके बगल में बैठा रहता था लेकिन फिर हमउम्र बच्चों के साथ खेलने लगा। लौटते समय कभी आईसक्रीम तो कभी चाकलेट दिलाती , बच्चे ने जो बचपन खो दिया था वह उसे लौटाना चाहती थी। उसने देखा जब उमंग को दुकान में कुछ चाहिए होता तो पहले वह उस वस्तु को देखता फिर उसकी तरफ मासूम आंखों से देखता,स्नेहा का दिल पिघल जाता। वह हंसते हुए कहती," शायद किसी को यह वाली चाकलेट टेस्ट करनी है , मुझे तो बहुत अच्छी लग रही है। " उमंग का चेहरा प्रफुल्लित हो जाता वो जोर जोर से सिर हिलाता।
स्नेहा का उस समय मन करता उमंग को गोद में उठा कर चूम ले। लेकिन वह अपने जज्बातों पर काबू रख कर उसे उसकी मनचाही वस्तु दिला देती। एक दिन स्नेहा सोफे पर बैठी लेपटॉप पर काम कर रही थी और उमंग वहीं जमीन पर बैठा पज़ल बना रहा था। जब उसका बन गया तो वह खुशी के कारण चीखा ," मम्मी यह देखो बन गया। " स्नेहा को कानों पर विश्वास नहीं हुआ उसे लगा आज उमंग ने उसे स्वीकार कर लिया है मतलब वह अपने भूतकाल से निकल गया है। उसकी आंखों में आंसू आ गए, उससे यह भी नहीं बोला गया ' बहुत अच्छा'। बस बाहें फैला दी, उमंग लपक कर उसकी गोदी में चढ़ गया। स्नेहा ने उमंग की पसन्द की कार्टून फिल्म लेपटॉप पर लगा दी दोनों कुछ देर तक ऐसे ही बैठे देखते रहे।
थोड़ी देर बाद मुकेश आया , दोनों को इस तरह इतने करीब देखकर उसके मन में कसक सी उठी। उमंग को सोने के लिए भेजकर स्नेहा ने मुकेश और अपना खाना लगाया। न जाने क्यों मुकेश बहुत खामोश था , उसने खाना भी ठीक से नहीं खाया। बाद में भी जब वह टीवी न देखकर शुन्य की ओर ताक रहा था ,तब स्नेहा ने उसका हाथ दबाते हुए कहा," क्या बात है मुकेश कोई बात परेशान कर रही है तो शेयर करो ,हर परेशानी का हल होता है। मिल कर सोचेंगे तो समाधान निकल आएगा। " लेकिन मुकेश ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा ," नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। " रात को जब स्नेहा की एक दो बार आंखें खुली तो देखा मुकेश सोया नहीं था बस छत की ओर टकटकी लगाए लेटा था। आंखें भी गीली लगी जैसे रो रहा हो। स्नेहा बहुत घबरा गई , उसने फिर पूछा ," बताओं न मुकेश क्यों इतना परेशान हो। " वह बस इतना बोला ," आज की रात और मुझे थाम लो। " फिर उसके गले लग कर सो गया।
अगले दिन शाम को जब नियमित समय पर मुकेश नहीं आया तो स्नेहा ने उसका फोन मिलाया। फोन बंद आया, उसके किसी सहकर्मी से पूछा तो पता चला वह सुबह आफिस ही नहीं आया। स्नेहा को चिंता हुई उसने नम्रता को फोन किया लेकिन वह वहां भी नहीं गया था। नम्रता ने कहा हो सकता है पुराने घर गया हो उसके बेचने की बात कर रहा था।
अगले दिन भी जब मुकेश का कुछ पता नहीं चला तो स्नेहा को घबराहट होने लगी। पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तीसरे दिन उसको एक चिट्ठी मिली, मुकेश ने लिखी थी। स्नेहा जब तुम्हे यह पत्र मिलेगा मैं इस दुनिया को छोड़ चुका होगां। तुम एक फरीश्ते की तरह मेरी जिन्दगी में आई , तुम से मैंने जाना रिश्तो के पनपने के लिए कितना प्रेम और धैर्य चाहिए। मैं ने शारीरिक आकर्षण को प्रेम समझ लिया था। मेरे हाथ मोहिनी के खून से रंगे है मैं ने न केवल उसकी देह का कत्ल किया बल्कि उसके अरमानों और सपनों का भी कत्ल किया। अपनी आवश्यकताओं को सर्वोपरि माना।
आज मेरे पुत्र की आंखों में डर है जो कल मेरे प्रति नफ़रत और क्रोध में बदल जाएगा। मैं उसके दिल में अपने लिए इज्जत और प्रेम देखना चाहता हूं।
मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं , तुम्हें मझधार में छोड़ कर जा रहा हूं। मैं तुम से माफी मांग रहा हूं और शायद तुम मुझे माफ भी कर दो लेकिन मैं अपने आप को कभी क्षमा नहीं कर सकता। मैं एक अपरिपक्व इंसान हूं जिसमें रिश्तो की समझ नहीं है। अगर उमंग को तुम्हारा संरक्षण मिलेगा तो वह एक समझदार और नेक इंसान बनेगा। लेकिन तुम्हारी अभी सारी जिंदगी पड़ी है ऐसी इच्छा करके मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं करना चाहता। तुम उमंग को नम्रता को सौंप कर अपने ही जैसे नेक इंसान से शादी कर लेना। ... मुकेश।
पत्र पढ़ कर स्नेहा फुटफुट कर रोने लगी , उसे लगा मुकेश ने ऐसा निर्णय लेने में बहुत जल्दबाजी की, पश्चाताप और सुधरने का मौका तो आखिरी सांस तक होता है। उसको इस तरह रोते देखा तो उमंग घबरा गया उसके गले लगकर वह जोर जोर से रोने लगा। स्नेहा ने अपने आप को संभाला और निश्चय किया उमंग को वहीं पालेगी दुबारा उसको असुरक्षित महसूस नहीं होने देगी। मुकेश का सपना पूरा करेगी उमंग को बेहतरीन परवरिश देकर।
लेखक - अज्ञात
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आजकल मुकेश की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। पिछले छः सात सालों से सेल्समैन बनकर दर-दर की ठोकरें खा रहा था, रात दिन मेहनत करता था। उसी के परिणामस्वरूप उसे एक बड़ी कंपनी में मैनेजर के पद पर नई नौकरी मिल गई थी, तनख्वाह भी अच्छी हो गई थी। नई कम्पनी में दोस्ताना माहौल था, सब हंसते बोलते रहते थे पुरानी कम्पनी की तरह खींचातानी नहीं थी। उसने नौकरी लगते ही ,किष्तो में गाड़ी खरीद ली थी, उसका घर दफ्तर से दूर , शहर की सरहद पर था, जहां से सवारी मिलना बहुत मुश्किल हो जाता था।
उसकी खुशी का एक और कारण मोहिनी थी जो उससे पहले से इस कम्पनी में काम करती थी। बला की खूबसूरत, पहनने ओढ़ने की अपनी अलग अदा ,सदा बनी ठनी हंसती खिलखिलाती रहती। कम्पनी के पुरूष कर्मचारियों के आकर्षण का केंद थी और स्त्रियों के ईर्ष्या का स्रोत। मुकेश ने अगर सिनेमा के पर्दे की बात छोड़ दी जाएं तो इतनी सुन्दर स्त्रि अपने जीवन में कभी नहीं देखी थी।
वह किसी न किसी बहाने अपने कैबिन में उसे बुलाता और वह भी मटकती और बलखाती आती हंस कर जो काम बताता वह करती और चली जाती। वह न जाने कौन सा परफ्यूम लगाती थी, उसकी देह से आती ताज़े फूलों की खुशबू मुकेश को मदहोश कर देती थी। उसकी कसी हुई देह पर चढ़ी पोशाकें अगर शालीनता की सीमा लांघने में संकोच करती थी तो कल्पना के लिए भी कुछ खास नहीं छोड़ती थी। बरसों का अकेलापन या जवानी की आग कहलों वह उसके रुप के आकर्षण में दीवाना होता जा रहा था।
परिवार के नाम पर उसकी एक छोटी बहन थी नम्रता, जिसकी चार पांच साल पहले दुसरे शहर में शादी हो गई थी। शादी के एक साल बाद नम्रता की सास को लकवा मार गया और उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। नम्रता का सारा समय अपनी सास की सेवा और तीन साल के पुत्र की देखभाल में ही व्यतीत होता था। मुकेश स्वयं ही साल में दो बार राखी और दिवाली पर जाकर बहन -बहनोई से मिल आता। उसके मां-बाप नम्रता की शादी के एक साल बाद ही कार दुर्घटना में इस संसार से विदा ले चुके थे।
आखिर मुकेश से जब अपने दिल पर और काबू रखना मुश्किल हो गया तो उसने एक शनिवार मोहिनी को रात कहीं बाहर खाने का निमंत्रण दे दिया। उसे लगा था वह मना कर देगी लेकिन वह आराम से मान गई।
मोहिनी को प्रभावित करने के लिए वह एक महंगे रेस्टोरेंट में खाना खाने ले गया। रेस्टोरेंट इतना आलीशान था कि वहां की चकाचौंध देखकर मोहिनी की आंखें चौड़ी हो गई। वह स्वयं एसी जगह पहली बार आया था लेकिन उसका ध्यान मोहिनी के चेहरे और उठते गिरते वक्षस्थल पर था। मोहिनी उसके इतने करीब पहली बार बैठी थी ,वह अपनी नजरें हटा नहीं पा रहा था।
खाना खाकर जब बाहर निकलें तो मुकेश ने स्वयं मोहिनी को गाड़ी में बैठाने के लिए दरवाजा खोला। गाड़ी में बैठते हुए मोहिनी की स्कर्ट थोड़ी ऊपर उठ गई। मुकेश का दिल इतने जोर से धड़का कि उसको लगा उसका दिल सीने से बाहर आ जाएगा। रास्ता काटना मुश्किल हो रहा था, आखिर रहा नहीं गया तो उसने मोहिनी का हाथ अपने हाथ से धीरे से दबा दिया। मोहिनी ने अपनी नजरें मुस्कुराते हुए झुका ली। जब मोहिनी की ओर से कोई विरोध नहीं हुआ तो मुकेश की हिम्मत बढ़ गई।
एक सुनसान स्थान देखकर उसने गाड़ी रोक दी और मोहिनी के गले में बाहें डाल कर उसे अपनी तरफ खींचा। गुलाबी होंठों पर जब उसने अपने होंठ रखे तो उसको लगा उसकी सम्पूर्ण देह में एक लहर सी दौड़ गई। मोहिनी ने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल कर अपना मुंह थोड़ा सा खोल दिया। मुकेश के लिए इतना निमंत्रण ही काफी था, उसे समय का होश भी नहीं रहता अगर दूसरी दिशा से आती गाड़ी की रोशनी उन पर नहीं पड़ती। हड़बड़ा कर दोनों अलग हो गए। मोहिनी को उसके घर उतारते हुए उसका मन बोझिल हो रहा था लेकिन क्या करता। रात भर मुकेश सो नहीं पाया, करवटें बदलता रहा, मोहिनी का खयाल उसे बैचेन करता रहा।
अगले दिन रविवार था उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। अंदर ऐसी आग महसूस हो रही थी कई बार ठंडा पानी अपने ऊपर डालना पड़ा। जब घर में बैठा ही नहीं गया तो बाजार चला गया, वहां भी मोहिनी की शक्ल पीछा करती रही तो उसने मोहिनी के लिए सुन्दर सी घड़ी खरीद ली।
अगले दिन दफ्तर पहुंचा तो सबसे पहले मोहिनी को अपने केबिन में बुलाया। जैसे ही उसने घड़ी दी वह उछल कर उसके गले से लग गई। मुकेश ने भी उसे बाहों में लेकर उसके गालों आंखों और होंठों को चूमना शुरू कर दिया। हफ्ते भर यही क्रम चलता रहा, वह कोई मौका नहीं छोड़ता था उसे बाहों में लेने का और वह भी बराबर टाईट स्कर्ट में नागिन की तरह लहराती हुई उसके आगे पीछे घूमती रहती। अब मुकेश के धैर्य का बांध टूटता जा रहा था उससे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा था। वह मोहिनी को पूर्णतः अपनी बनाने के लिए बैचेन हो रहा था, इस बार शनिवार को उसने पुख्ता इंतजाम किए।
शहर से दूर एक होटल में खाना खिलाने ले गया मोहिनी को। एक कमरा पहले से ही अपने नाम बुक करा लिया था। उस दिन दफ्तर में काम अधिक था इसलिए देर से निकल सकें और खाना खाकर जब होटल से बाहर निकले तो देर सी हो गई थी। तेज़ हवा चल रही थी , मुकेश ने सलाह दी इतनी रात को इस मौसम में गाड़ी चला कर जाना खतरे से ख़ाली नहीं ,रात यहीं रुकते हैं। मोहिनी को भी बात ठीक लगी। कमरे में पहुंच कर पहले तो मुकेश को घबराहट हुई, वह जल्दबाजी तो नहीं कर रहा लेकिन मोहिनी को खिड़की के पास आराम से खड़ा देखा तो वह भी उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। मोहिनी कुछ नहीं बोली बस थोड़ा पीछे को झुक गई , उसकी पीठ मुकेश के सीने पर टिक गई।
अब मुकेश को किसी और संकेत की आवश्यकता नहीं थी उसने मोहिनी को अपनी बाहों के घेरे में ले लिया। रात भर वह उसकी आगोश में समाया रहा,सुबह आंख खुली तो दस बजे थे उसका मन घर जाने को नहीं हुआ। उसने नाश्ते का आदेश दिया और मोहिनी की तरफ देखा। वह बेसुध सो रही थी और सोते हुए परी सी लग रही थी। मुकेश को लगा प्रतिदिन सुबह उठते ही यह खुबसूरत चेहरा अगर उसे नज़र आएगा तो उसे जीवन में कोई ग़म नहीं रहेगा। नाश्ता करते हुए मुकेश ने मोहिनी से पूछा घर जाने की जल्दी न हो तो रविवार का दिन भी होटल में ही बिता सकते हैं सोमवार की सुबह वापस लौट जाएंगे। मोहिनी ने जब खुश होते हुए हां कर दी तो मुकेश को यकीन हो गया मोहिनी को उससे प्रेम हो गया है।
दिनभर दोनों एक-दूसरे में खोए रहे और दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। अगले दिन मुकेश दफ्तर थोड़ा देर से पहुंचा लेकिन बहुत प्रसन्नचित और तरोताजा महसूस कर रहा था।
केबिन में दाखिल हुआ ही था कि सोहन ने उसे घेर लिया। दोनों एक दूसरे को बहुत पहले से जानते थे इसलिए दोस्तों वाला व्यवहार था। वैसे तो सोहन स्वयं ही आया था बात करने लेकिन अब कुछ संकुचित सा महसूस कर रहा था। आखिर मुकेश ने झल्लाकर कहा :" बोलता क्यों नहीं बे जो कहने आया है , लड़कियों की तरह शरमा क्यों रहा है। "
सोहन : " देख तू मुझे गलत मत समझना ,तू जो मोहिनी में इतनी दिलचस्पी ले रहा है वह सही नहीं है। मोहिनी जहां पहले काम करती थी वहां मैं एक दो लोग को जानता हूं, इसके वहां भी कुछ लोगों से सम्बंध थे। "
सुनते ही मुकेश को गुस्सा आ गया, उसकी आंखें लाल हो गई। उसने सोहन का कोलर पकड़ लिया और लगभग चीखते हुए कहा :" खबरदार साले उसके बारे में कुछ भी उल्टी सीधी बात की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा उसके भूत से मुझे कोई वास्ता नहीं है। अब वह मेरी और सिर्फ मेरी हैं , किसी को उसके आसपास फटकने भी नहीं दूंगा। साले यह क्यो नही कहता तुम सब को मिर्ची लग रही है ,वह अब तुम्हारी तरफ देखती भी नहीं है। "
मुकेश का मूड़ खराब हो गया था,उसका अब काम में मन नहीं लग रहा था। मोहिनी ने कहा था वह लंच के बाद आफिस आएगी। उसके दिमाग में उथल-पुथल चल रही थी कि जैसे उसे मोहिनी के खिलाफ भड़का रहे हैं वैसे ही अगर ये लोग मोहिनी को उसके बारे में कुछ उल्टा सीधा बता सकते है। उसे यह यकीन हो गया था मोहिनी उसे चाहने लगीं है लेकिन कितना यह कहना अभी मुश्किल है। वह स्वयं उसके बिना नहीं रह सकता था , अपने तन और मन को तृप्त करने के लिए उसे मोहिनी की अपने जीवन में बहुत आवश्यकता थी। उसे विश्वास था कि उसका स्वयं का मोहिनी के प्रति इतना अधिक प्रेम है कि उससे ही उन दोनों का जीवन प्रेममय हो जाएगा। मुकेश ने निश्चय कर लिया कि वह तुरंत मोहिनी से अपने दिल की बात बताकर उसे शादी के लिए मना लेगा।
मुकेश को अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी मोहिनी को शादी के लिए मनाने में वह एकदम राज़ी हो गई।
मोहिनी को आशा नहीं थी कि मुकेश उससे शादी की बात करेगा। उसने बचपन से ही पुरुष का स्वार्थी रुप ही देखा था। पिता की अच्छी खासी सरकारी नौकरी थी लेकिन आधे से अधिक पीने और अय्याशी में उड़ा देता था। घर में ग़रीबी का यह आलम था कि कईं बार भूखे पेट ही सोना पड़ता था। शराब के नशे में वह इतना वहशी हो जाता था कि पत्नी को तो मारता ही था जब मोहिनी और उसका भाई बीच बचाव करते तो वे भी बुरी तरह पिट जाते।
घर के हालात से दुखी होकर भाई जब पन्द्रह सोलह साल का था घर छोड़कर ऐसा भागा कि फिर कभी वापस नहीं आया। मां भी पति के जुल्मों से तंग आकर किसी और के साथ जाकर रहने लगी। बीच-बीच में जब पति घर में नहीं होता तो मोहिनी से मिलने आती और कुछ रुपए उसको दे जाती। अपने साथ रख नहीं सकती थी क्योंकि जिसके साथ रहती थी उसकी नियत पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। मां की बेवफाई का गुस्सा भी पिता मोहिनी पर उतारता था , उसके साथ गाली-गलौच और मार पिटाई करता। ऐसी विषम परिस्थिति से निपटने के लिए मोहिनी ने अपनी चेतना को सुन्न सा कर लिया था, सोचने समझने की क्षमता सुप्त सी हो गई थी। किसी तरह सरकारी स्कूल से उसने बारहवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी की।
मां ने बड़ी मुश्किल से कुछ पैसे जमा किए थे , उसने मोहिनी का दाखिला एक वर्षीय कम्पूयटर कोर्स में करवा दिया। कम्पूयटर के अलावा मोहिनी ने वहां और भी बहुत कुछ सीखा। वहां कालेज में पढ़ने वाले अमीर घरों के लड़के लड़कियां आते थे कुछ कम्पूयटर सीखने तो कुछ अपना काम करने करवाने। लड़कियों को देख देखकर वह युवाओं में प्रचलित कपड़ों और हाव-भाव सीखने लगी। एक लड़के से उसकी दोस्ती हो गई जिसके साथ वह शामें बिताने लगी।
वह लड़का अंग्रेजी अच्छी बोलता था तो धीरे धीरे मोहिनी की भी इस भाषा पर पकड़ अच्छी हो गई। उसके साथ घूमने का एक फायदा और होता था कि अक्सर उसके रात के खाने की व्यवस्था हो जाती थी। उस लड़के ने शुरू से ही अपनी मंशा बता दी थी कि वह नौ दस महीने के लिए ही भारत में है फिर आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला जाएगा। इसलिए वह केवल समय बिताने के लिए दोस्ती कर रहा था। उसके पास पैसे की कमी नहीं थी रात को कभी कभी होटल में कमरा बुक करा लेता था। अपने स्टेटस की किसी लड़की के चक्कर में पड़ना नहीं चाहता था कहीं बाद में गले की हड्डी न बन जाए। गुमसुम रहता था बहुत कम बोलता था, लेकिन जब अधिक पीलेता था तब फुटफुट कर रोता था और बहुत देर तक बड़बड़ाता रहता था।
मोहिनी को बस इतना समझ आया था कि उसके घर में परिवारिक कलह इतनी थी कि उसका अपने घर में मन नहीं लगता था। विदेश जाने से पहले उसने अपनी पहचान वालों की एक कंपनी में मोहिनी की नौकरी लगवा दी। नौकरी लगते ही मोहिनी ने पिता का घर छोड़ दिया और वुमन वर्किंग होस्टल में रहने चली गई। वह अपनी तनख्वाह अच्छा खानें और पहनने में खर्च करती , बचपन की दबी इच्छाओं को पूरा करने में लग गईं। उसे लोगों के बीच रहना , हंसना बोलना बहुत अच्छा लगता।
पुरुष सहकर्मी उसके आगे पीछे घूमते, उसके एक इशारे पर उसका कोई भी काम तत्परता से करते। आगे बढ़ने के लिए उसे देह का इस्तेमाल करने से कोई परहेज नहीं होता था उसे लगता था यही दुनिया का दस्तूर है। पिछली नौकरी में बोस जब भी बाहर जाता उसे भी साथ ले जाता, धीरे धीरे उसने मोहिनी की तनख्वाह काफी बढ़ा दी। एक दिन उसकी बीवी को पता चल गया फिर जो बवाल मचा बॉस को लगा उसके बचें खुचे बाल भी उड़ जाएंगे। बीवी को खुश करने के लिए उसने मोहिनी को नौकरी से निकाल दिया और मोहिनी का मुंह बंद रखने के लिए उसे अपने दोस्त की कंपनी में लगवा दिया। इस तरह मोहिनी इस नई कंपनी में काम करने लगीं थीं।
जब मुकेश ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो निसंदेह उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सोचा था मुकेश भी औरों की तरह उसका इस्तेमाल करके छोड़ देगा। वह खुश थी और उसने तुरंत शादी के लिए हां कर दी। दोनों ने मिलकर एक सुंदर सी अंगुठी खरीदी और आर्य समाज मंदिर में जाकर शादी कर ली। नम्रता की सास की तबीयत अधिक खराब होने के कारण वह उन्हें छोड़ कर आ नहीं सकती थी। दो चार दोस्त जो शादी के समय उपस्थित थे , उन्हीं के साथ होटल में खाना खाया और हनीमून पर निकल गए। लौटते समय मुकेश अपनी बहन नम्रता के घर भी उससे मिलने गया। नम्रता को हमेशा अपने भाई की चिंता रहती थी ,कि बेचारा बिल्कुल अकेले रहता है और इतनी मेहनत करता है। जब मोहिनी को देखा तो उसे बड़ी खुशी हुई की भाई का ध्यान रखने वाली उसका अकेलापन दूर करने वाली कोई आ गई है। भाई को इतना प्रसन्न देखकर नम्रता के दिल को बड़ी तसल्ली हुई।
घर पहुंचकर मुकेश ने स्वयं ही आगे बढ़ कर मोहिनी का स्वागत किया और उसका गृह प्रवेश किया। चार-पांच दिन से घर बंद पड़ा था ,धूल ही धूल नज़र आ रही थी सब जगह। घर बहुत पुराना था जगह जगह से मरम्मत की मांग कर रहा था। मुकेश के पास न कभी इतना समय रहा न कभी इतना पैसा की वह घर की तरफ ध्यान देंता।
घर के चारों तरफ इतना खुला स्थान था कि उसकी मां वहां बागबानी करती थी और मौसमी सब्जियां घर में ही उगा लिया करतीं थीं। मां के जाने के बाद अब वहां कंटीली झाड़ियां उग आई थी जिसके कारण घर वीरान और उजड़ा हुआ सा प्रतित होता था। शहर से बाहर की तरफ था , कोई कोलाहल नहीं , आसपास कोई रहता भी हो तो दिखता नहीं था। पास-पड़ोस के नाम पर इसी तरह के कुछ मकान थोड़ी थोड़ी दूर पर बने थे। मोहिनी को घर देखकर बहुत निराशा हुई , मुकेश जितना स्मार्ट दिखता था इतने अच्छे पद पर कार्यरत था उसने सोचा था उसका किसी अच्छी सोसायटी में सुन्दर सा फ्लैट होगा। लेकिन यहां तो वीरान सा टूटा फूटा सा मकान था।
घर को थोड़ा साफ किया फिर मुकेश मोहिनी के साथ बाजार गया , कुछ खाना बनाने की सामग्री और कुछ खाने का सामान लेकर आया। इस तरह उनकी गृहस्थी का शुभारंभ हुआ। अगले दिन मुकेश को दफ्तर जाना था , मोहिनी ने शादी के नाम पर एक महिने की छुट्टी ले रखी थी।
वह घर में घूम घूमकर देख रही थी कहां क्या रखा है ,घर ज्यादा बड़ा नहीं था दो शयनकक्ष का था। उसे घर के रखरखाव का और खाना बनाने का कोई अंदाजा नहीं था। उसके घर में कुछ होता ही नहीं था जो उसे इन सब बातों की जानकारी या समझ होती। फिर भी सफाई वाली के साथ मिलकर वह घर को साफ और ठीक करने की कोशिश में लग गईं। उसे विश्वास नहीं हुआ यह सब इतना इतना थका देने वाला काम होता है।
मुकेश ने माता पिता के देहांत के बाद घर को कभी संवारा भी नहीं था इस कारण बेतरतीब से सामान भरा पड़ा था। रात को मोहिनी ने जो थोड़ा बहुत पकाना आता उस हिसाब से एक सब्ज़ी और रोटियां सेंक कर रख दी। मुकेश आया तो उसे तो बस मोहिनी के करीब आने की बेताबी थी , मोहिनी ने घर में क्या किया और कैसा खाना बनाया उससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
लेकिन एक हफ्ते बाद जब उसका उन्माद कुछ कम हुआ तो उसे समझ आया मोहिनी के हाथ में स्वाद नहीं है। उसने निश्चय किया कि अब वह कुछ खाना बाहर से बंधवाकर लाया करेगा और कुछ आकर स्वयं बनाएगा तो शायद मोहिनी भी सीख जाएगी। इस एक हफ्ते में मोहिनी को यह समझ आया कि घर के काम बहुत उबाऊ है और सारे दिन घर में पड़े रहना बहुत मुश्किल। उसे बन-ठन कर दफ्तर जाना और संगी-साथियों से हंसी मज़ाक न करना अब अखरने लगा। उसने मुकेश से कहा वह छुट्टी रद्द करके आफिस जाना चाहती है।
लेकिन मुकेश अब मोहिनी को अपनी सम्पत्ति समझने लगा था। उसे अब यह बिल्कुल भी स्विकारय नहीं था कि कोई और मोहिनी से बात करें या उसके नजदीक आए। उसने मोहिनी से नौकरी छोड़ने की बात कही। मोहिनी ने साफ मना कर दिया तो उसने टालने के उद्देश्य से कहा ," ठीक है एक महीने की छुट्टियां जो ली है वो समाप्त हो जाएंगी तब आगे की सोचेंगे। "
मोहिनी मान गई , वैसे भी वह इस विचार से ही बहुत खुश थी कि उसकी शादी हो गई है ,उसका अपना घर है मुकेश उसका इतना ध्यान रखता है। लेकिन महीने के अंत तक उसकी तबीयत खराब रहने लगी , जब भी खाती ऊबकाई आने लगती। मुकेश डाक्टर के पास ले कर गया तो पता चला मोहिनी गर्भवती हैं। दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब तो मुकेश ने बच्चे की सुरक्षा का हवाला देकर मोहिनी को नौकरी करने से बिल्कुल मना कर दिया।
मोहिनी बच्चा होने के ख्याल से इतनी खुश थी कि उसे लगा मुकेश ठीक कह रहा है , उसे अब घर में रहकर आराम करना चाहिए। बढ़ते वजन के कारण उसे असुविधा होने लगी थी। ऊपर से घर में कुछ काम वह करती नहीं थी तो खालीपन और अकेलापन उसे कचोटने लगा। वह इन आठ नौ महीनों में बहुत चिड़चिड़ी और उदासीन सी हो गई थी। मुकेश को महसूस होने लगा था उसके और मोहिनी के बीच ऐसा कोई विषय नहीं था जिस पर दोनों मिलकर बात कर सकें। वैसे तो मोहिनी के पास कुछ खास बोलने को होता नहीं था लेकिन जब भी बोलती कोई न कोई शिकवा कर रही होती।
अब उसे भी झुंझलाहट होने लगी थी ,घर का कोई काम नहीं हुआ होता था और वह दुखियारी बनी घूमती रहती थी। किसी तरह नौ महीने बीते और उमंग का जन्म हुआ।
नम्रता एक हफ्ते के लिए किसी तरह समय निकाल कर भतीजे को देखने के लिए आईं। घर के हालात और मोहिनी की मानसिक स्थिति देखकर उसे बहुत दुख हुआ। मुकेश से कह सुनकर उसने बर्तन मांजने के लिए और खाना बनाने के लिए आसपास काम करने वाली औरतों से बात कर ली। साफ-सफाई के लिए तो आती ही थी , उसे लगा घर की व्यवस्था ठीक रहेगी ,घर के काम सुचारू रूप से होते रहेंगे तो शायद घर में रहने वालों का मन प्रसन्नचित रहेगा। जाते-जाते उसने मुकेश से वादा लिया कि वह मोहिनी को किसी अच्छे मनोचिकित्सक को दिखाने ले जाएगा।
अब तीनों की गाड़ी धक्के खा कर आगे तो बढ़ रही थी पर स्थिति में कुछ सुधार नहीं हुआ। मुकेश ने नम्रता से किया वादे पर ध्यान नहीं दिया। रात को जब मुकेश घर आता तो कभी उमंग साफ सुथरा , भरपेट खुश दिखाई देता और कभी रो रोकर हलकान हो रहा होता। मोहिनी चादर तान कर सो रही होती। वह उस पर चिल्लाता तो वह रोने लगती स्वयं एक असहाय बच्चे की तरह। मुकेश को बहुत खीझ आती ,इन सब बातों से तंग आकर उसने शराब पीनी शुरू कर दी। मोहिनी की कोई व्यवस्थित दिनचर्या नहीं थी जब मन आता उठती नहीं तो सारा दिन नाईटी में पड़ी रहती।
उमंग धीरे धीरे बड़ा हो रहा था , मोहिनी मन में आता उसका बहुत ध्यान रखती वरना उसकी जरूरतों को भी नज़र अंदाज़ कर देती।
मुकेश के सामने बस एक ही रट लगाए रहती उसे बाहर जाना है घर में उसका दम घुटने लगता है। मुकेश उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर देता और अक्सर दोनों में लड़ाई हो जाती। उमंग सहम कर किसी कोने में दुबक जाता।
मुकेश ने उमंग का स्कूल में दाखिला करवा दिया। उमंग स्कूल में भी सहमा सहमा सा रहता। घर में जब कभी मोहिनी अच्छे मूड में होती तो उमंग को गोदी में बैठा कर बहुत प्यार करती , मीठी मीठी बातें करती , उमंग को बड़ा अच्छा लगता। उसे लगता मां हमेशा ऐसी ही क्यों नहीं रहती, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता वह उसके खाने पीने का ध्यान रखें या न रखें टिफिन में और बच्चों की तरह टेस्टी नाश्ता न दे। बस चिल्लाना छोड़ दें और उसे गोदी में बैठा कर स्नेह की बरसात करती रहें। मुकेश ने अब मोहिनी के साथ साथ उमंग पर भी ध्यान देना बन्द कर दिया था।
बिचारा बच्चा हर वक़्त एक ख़ोफ में जीता था , उसे लगता मम्मी बस चुप रहे, पापा से कुछ न बोले जिससे उन दोनों के बीच लड़ाई न हो। लेकिन स्थिती बद से बद्तर होती जा रही थी। अब तो मोहिनी भी पी कर मदहोश रहने लगी थी और जब मुकेश नशें में उससे जबरदस्ती करता तो दोनों में हाथापाई की नौबत आ जाती।
अक्सर दूसरे कमरे में डर से कांप रहे उमंग को दोनों के ज़ोर ज़ोर से चीखने का शोर सुनाई देता, फिर तड़ाक से जोरदार तमाचे की आवाज के बाद सन्नाटा छा जाता। दरवाजे को बहुत जोर से पटकने के बाद मोहिनी उमंग के कमरे में आती , उसे बाहों में भर कर देर तक सुबकती रहती फिर सो जाती। ऐसे ही किसी झगड़े के बाद एक दिन मुकेश गुस्से में घर के बाहर जा रहा था, मोहिनी भी नशे में थी उसके पीछे लपकी। घर के बाहर पांच छः सीढ़ियां थी जहां पहुंच कर मोहिनी के हाथ में पीछे से मुकेश की शर्ट पकड़ मे आ गईं। उसने जैसे ही खींचा मुकेश ने जोरदार धक्का दिया मोहिनी को और वह पीछे गिर गई। उसका सिर सीढ़ियों से जा लगा , धक्का इतना जबरदस्त था कि मोहिनी के सिर में ऐसी चोट आई कि वह फिर उठ न सकीं। मुकेश ने पीछे मुड़कर देखा भी नहीं गुस्से में दनदनाता हुआ बाहर चला गया।
उमंग जो यह सब देख रहा था दौड़कर मोहिनी के पास गया , उसे बहुत हिलाया , लेकिन मोहिनी बेसुध पड़ी रही। खून देखकर उमंग को यह तो समझ आ गया था कि मम्मी को चोट लगी है लेकिन यहां सीढ़ी पर क्यों सो गई यह बिल्कुल नहीं समझ पाया। वह बहुत देर तक मोहिनी को हिलाता रहा ,रोता रहा फिर थककर वहीं सो गया।
सुबह जब दूध वाला आया तो वहां का नजारा देखकर उसके होश उड़ गए। पुलिस आई ,जांच पड़ताल हुई , चुंकि मोहिनी के शरीर में शराब की मात्रा बहुत अधिक थी ,यह निष्कर्ष निकला की नशे की हालत में सीढ़ियों पर पैर फिसल गया और मृत्यु हो गई। मुकेश तो दंग ही रह गया उसके जीवन में यह क्या से क्या हो गया। जब नम्रता को पता चला वह तुरंत पति के साथ भाई के पास आ गई। यहां के हालात देखकर उसे बहुत दुख हुआ ,भाई रोए जा रहा था और उसका बेटा गुमसुम सा एक कोने में दुबक कर बैठा था। उसे लगा दोनों को मोहिनी की मौत का बहुत बड़ा सदमा लगा है। उससे उन दोनों की ऐसी स्थिति देखी नहीं जा रही थी, दस पंद्रह दिन वही रहकर उसने निश्चय किया कि ये दोनों इस अवस्था में नहीं है कि इन्हें यहां छोड़ा जाएं। वह दोनों को लेकर अपने घर आ गई।
नई जगह आकर मुकेश को जैसे होश आया, उसे महसूस हुआ कि उसने अपनी जिंदगी का क्या हश्र कर लिया। उसने कोशिश की तो उसे एक नौकरी मिल गई पहले जैसी तो नहीं थी लेकिन काम चलाऊ थी। नम्रता को भाई और भतीजे की चिंता रहती थी उसे लगा भाई को दूसरी शादी कर लेनी चाहिए जिससे दोनों को संभालने वाली कोई घर में आ जाएगी।
नम्रता के बेटे के स्कूल में एक अध्यापिका थी स्नेहा जो उसे बहुत समझदार और ममतामई स्वभाव की लगती थी। नम्रता जब भी स्कूल जाती उससे जरुर मिलती थी भले ही उसका बेटा अब स्नेहा की कक्षा में नहीं पढ़ता था। एक बार नम्रता को जब पता चला स्नेहा बीमार है तो वह स्नेहा से मिलने उसके घर गई। इस तरह स्कूल के बाहर भी यदाकदा मिलने से दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी। नम्रता ने एक बार उससे पूछा था कि शादी क्यों नहीं की तो उसने हंस कर कहा था ," ऐसा कोई मिला नहीं जिससे शादी करने का मन करता और घर में कोई बुजुर्ग नहीं है जो शादी पक्की कर दे और कान पकड़ कर मंडप में बिठा दे। " नम्रता को लगा अगर स्नेहा भाई की जिंदगी में आ जाए तो भाई और भतीजे की जिंदगी बेहतर हो जाएगी।
जब नम्रता ने मुकेश से बात की तो ना-नुकुर करने के बाद बेटे की खातिर तैयार हो गया। जब स्नेहा से बात की तो उसने भी हां कर दी। एक साधारण से समारोह में विवाह संपन्न हो गया।
स्नेहा को मुकेश की पुरानी जिंदगी के बारे में केवल इतना पता चला था कि किसी हादसे में उसकी पत्नी का देहांत हो गया था और पुरानी यादों से बचने के लिए उसने इस शहर में फिर से नई शुरुआत की। लेकिन शादी के बाद स्नेहा को समझ आ गया कि बात इतनी सुलझी हुई नहीं है जितनी लगती है। दिन भर तो मुकेश हंसता बोलता रहता लेकिन सोने के बाद वह बार बार चौंक कर उठता , पसीने पसीने हो जाता बड़बड़ाने लगता और रोते-रोते माफी मांगता। उमंग को देखकर लगता नहीं था वह चार पांच साल का बच्चा है , इतना दुबला जैसे उसको ठीक से खाना नहीं मिला हो।
डरा सहमा एक कोने में दुबक कर बैठा रहता और सबसे बड़ी बात पिता के निकट बिल्कुल नहीं जाता। अगर मुकेश पुचकारते हुए उसे अपने पास बुलाता भी तो और अपने अंदर सिमट जाता। वह समझ गई कि इन दोनों के साथ कुछ ऐसी घटना घटी है जिसके कारण इन दोनों की मनोदशा ठीक नहीं है। उसका मन बहुत दुखी हुआ कहां तो उसने सोचा था शादी के बाद ऐसा साथी मिलेगा जिसके साथ निश्चिंतता की जिंदगी बसर करेंगी। यहां तो स्वयं उसे इन दोनों का सहारा बनना पड़ेगा ,इस विवाह से उसके हिस्से एक बिखरा हुआ इंसान और एक सहमा हुआ बच्चा आया है। वह हार मानने वालों में से नहीं थी परमात्मा ने जो चुनौती उसके सामने रखी थी उसने निर्णय लिया वह यथासंभव उसका सामना करेगी।
उसने उमंग का दाखिला अपने स्कूल में करवा दिया। वह उसका ध्यान रखती , उसके सब काम चुप चाप करतीं रहती। उसको तरह तरह के व्यंजन बना कर खिलाती। उसे शाम को पार्क ले जाती, पहले तो गुमसुम सा उसके बगल में बैठा रहता था लेकिन फिर हमउम्र बच्चों के साथ खेलने लगा। लौटते समय कभी आईसक्रीम तो कभी चाकलेट दिलाती , बच्चे ने जो बचपन खो दिया था वह उसे लौटाना चाहती थी। उसने देखा जब उमंग को दुकान में कुछ चाहिए होता तो पहले वह उस वस्तु को देखता फिर उसकी तरफ मासूम आंखों से देखता,स्नेहा का दिल पिघल जाता। वह हंसते हुए कहती," शायद किसी को यह वाली चाकलेट टेस्ट करनी है , मुझे तो बहुत अच्छी लग रही है। " उमंग का चेहरा प्रफुल्लित हो जाता वो जोर जोर से सिर हिलाता।
स्नेहा का उस समय मन करता उमंग को गोद में उठा कर चूम ले। लेकिन वह अपने जज्बातों पर काबू रख कर उसे उसकी मनचाही वस्तु दिला देती। एक दिन स्नेहा सोफे पर बैठी लेपटॉप पर काम कर रही थी और उमंग वहीं जमीन पर बैठा पज़ल बना रहा था। जब उसका बन गया तो वह खुशी के कारण चीखा ," मम्मी यह देखो बन गया। " स्नेहा को कानों पर विश्वास नहीं हुआ उसे लगा आज उमंग ने उसे स्वीकार कर लिया है मतलब वह अपने भूतकाल से निकल गया है। उसकी आंखों में आंसू आ गए, उससे यह भी नहीं बोला गया ' बहुत अच्छा'। बस बाहें फैला दी, उमंग लपक कर उसकी गोदी में चढ़ गया। स्नेहा ने उमंग की पसन्द की कार्टून फिल्म लेपटॉप पर लगा दी दोनों कुछ देर तक ऐसे ही बैठे देखते रहे।
थोड़ी देर बाद मुकेश आया , दोनों को इस तरह इतने करीब देखकर उसके मन में कसक सी उठी। उमंग को सोने के लिए भेजकर स्नेहा ने मुकेश और अपना खाना लगाया। न जाने क्यों मुकेश बहुत खामोश था , उसने खाना भी ठीक से नहीं खाया। बाद में भी जब वह टीवी न देखकर शुन्य की ओर ताक रहा था ,तब स्नेहा ने उसका हाथ दबाते हुए कहा," क्या बात है मुकेश कोई बात परेशान कर रही है तो शेयर करो ,हर परेशानी का हल होता है। मिल कर सोचेंगे तो समाधान निकल आएगा। " लेकिन मुकेश ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा ," नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। " रात को जब स्नेहा की एक दो बार आंखें खुली तो देखा मुकेश सोया नहीं था बस छत की ओर टकटकी लगाए लेटा था। आंखें भी गीली लगी जैसे रो रहा हो। स्नेहा बहुत घबरा गई , उसने फिर पूछा ," बताओं न मुकेश क्यों इतना परेशान हो। " वह बस इतना बोला ," आज की रात और मुझे थाम लो। " फिर उसके गले लग कर सो गया।
अगले दिन शाम को जब नियमित समय पर मुकेश नहीं आया तो स्नेहा ने उसका फोन मिलाया। फोन बंद आया, उसके किसी सहकर्मी से पूछा तो पता चला वह सुबह आफिस ही नहीं आया। स्नेहा को चिंता हुई उसने नम्रता को फोन किया लेकिन वह वहां भी नहीं गया था। नम्रता ने कहा हो सकता है पुराने घर गया हो उसके बेचने की बात कर रहा था।
अगले दिन भी जब मुकेश का कुछ पता नहीं चला तो स्नेहा को घबराहट होने लगी। पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। तीसरे दिन उसको एक चिट्ठी मिली, मुकेश ने लिखी थी। स्नेहा जब तुम्हे यह पत्र मिलेगा मैं इस दुनिया को छोड़ चुका होगां। तुम एक फरीश्ते की तरह मेरी जिन्दगी में आई , तुम से मैंने जाना रिश्तो के पनपने के लिए कितना प्रेम और धैर्य चाहिए। मैं ने शारीरिक आकर्षण को प्रेम समझ लिया था। मेरे हाथ मोहिनी के खून से रंगे है मैं ने न केवल उसकी देह का कत्ल किया बल्कि उसके अरमानों और सपनों का भी कत्ल किया। अपनी आवश्यकताओं को सर्वोपरि माना।
आज मेरे पुत्र की आंखों में डर है जो कल मेरे प्रति नफ़रत और क्रोध में बदल जाएगा। मैं उसके दिल में अपने लिए इज्जत और प्रेम देखना चाहता हूं।
मैं तुम्हारा भी गुनहगार हूं , तुम्हें मझधार में छोड़ कर जा रहा हूं। मैं तुम से माफी मांग रहा हूं और शायद तुम मुझे माफ भी कर दो लेकिन मैं अपने आप को कभी क्षमा नहीं कर सकता। मैं एक अपरिपक्व इंसान हूं जिसमें रिश्तो की समझ नहीं है। अगर उमंग को तुम्हारा संरक्षण मिलेगा तो वह एक समझदार और नेक इंसान बनेगा। लेकिन तुम्हारी अभी सारी जिंदगी पड़ी है ऐसी इच्छा करके मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं करना चाहता। तुम उमंग को नम्रता को सौंप कर अपने ही जैसे नेक इंसान से शादी कर लेना। ... मुकेश।
पत्र पढ़ कर स्नेहा फुटफुट कर रोने लगी , उसे लगा मुकेश ने ऐसा निर्णय लेने में बहुत जल्दबाजी की, पश्चाताप और सुधरने का मौका तो आखिरी सांस तक होता है। उसको इस तरह रोते देखा तो उमंग घबरा गया उसके गले लगकर वह जोर जोर से रोने लगा। स्नेहा ने अपने आप को संभाला और निश्चय किया उमंग को वहीं पालेगी दुबारा उसको असुरक्षित महसूस नहीं होने देगी। मुकेश का सपना पूरा करेगी उमंग को बेहतरीन परवरिश देकर।
लेखक - अज्ञात
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