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अच्छी अच्छी प्यारी प्यारी कहानी - पिता जी को बोझ लगती हूं और दोनों बहनें मेरी सुन्दरता से जलती है
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कन्या कितनी भी खूबसूरत क्यों न हो, मां बाप के पास पैसे नहीं हो तो कोई रिश्ता नहीं आता। मेरे जीवन का सार भी यही है।
उस दिन घर लौटी तो मां और पिता जी दोनों के दांत मुंह में नहीं समां रहे थे। चिड़िया की तरह चहक रहें थे, क्या कह रहे थे कुछ समझ नहीं आ रहा था। थोड़ी देर बाद जो समझ आया वह यह था कि मेरे लिए एक रिश्ता आया है , लड़का एक सवालाख कमाता है महिने के । अपना मकान गाड़ी सब है और कोई मांग भी नहीं है। आश्चर्य है ऐसे करिश्में भी होते हैं आजकल कुछ तो गडबड होगी । पिता जी का कहना है ऐसी कोई बात नहीं है बुआ उन्हें जानती है।
मां के सपने उड़ान भर रहे थे । "इतना पैसा कमाता है खर्च कैसे करता होगा। आखिर इतने पैसे कोई कहां रखता होगा। शादी होते ही मैं उससे कहुगी कम्पलीट बाड़ी चेक अप करा दे, और किसी अच्छे अस्पताल में इलाज करा दे।"
पिता जी अपने ही कल्पना लोक में भृमण कर रहे थे। दादा जी के बनाएं हमारे घर की हालत खस्ता हो रही थी।" मैं तो कहूंगा उससे हमारा घर फिर से बनवा दे । शादी के बाद इस टूटे फ़ूटे घर में आकर रहेगा तो अच्छा नहीं लगेगा। दूसरा अपने जैसा लड़का तन्वी के लिए भी ढूंढ दे।"
मानसी मेरी बड़ी बहन कहा पीछे रहने वालो में से थी। उसकी शादी एक लोभी और शराबी व्यक्ति से हुई है। जब तब अपने पति से लड़के अपने दोनों बच्चों के साथ मायके चली आती है। "इनकी अपने जैसी बड़ी कंपनी में नौकरी लगवा दे , बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवा दे बस और कुछ नहीं चाहिए।"
तन्वी मेरी छोटी बहन सबकी बातें सुनकर जोर जोर से हंसती हुई बोली - "पागल हो तुम सब सपनों के हवामहल बना रहे हो। तुम्हें लगता है ये रिया की बच्ची एक पैसा भी उसको तुम लोगों पर खर्च करने देगी। मन ही मन लिस्ट बना रही होगी क्या क्या खरीदेगी कहां - कहां जाएगी।"
हां कह तो वह सही रही थी। वह मुझे बहुत अच्छी तरह जानती है। हम दोनों के बीच बचपन से ही प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या छीना झपटी रही है। पैसे की तंगी हमेशा से ही रही है और शोकीन सब इतने की हसरतों का पिटारा सब के सीने में दबा पड़ा है। पढ़ाई करके एक छोटी सी नौकरी कर रहीं हूं जिससे आवश्यकताएं भी पूरी नहीं होती है। मां को मैं फ़ूटी आंख नहीं सुहाती, हर समय मुझे निकम्मी और कामचोर कहती रहती है। पिता जी को बोझ लगती हूं और दोनों बहनें मेरी सुन्दरता से जलती है। इन पर पैसा खर्च करने से अच्छा है पैसे में आग लगा दूं।
प्रसन्नता इतनी थी कि नींद तो आएगी नहीं, लेकिन इन सब की बकवास सुनने से अच्छा है बेडरूम में जाकर सो जाऊं।खाने का भी मन नहीं था वैसे भी किचन में जाती अपने लिए कुछ इतंजाम करती सब के लिए बनाना पड़ता, कौन चक्कर में पड़े। मानसी को अपने बच्चों के लिए खाना पकाना ही पड़ेगा वहीं सब के लिए बना लेंगी।
आधे घंटे बाद मां आलू के परांठे अचार से लेकर आईं। पास बैठते हुए बोली,"लड़का देखने में अच्छा नहीं भी हो तो भी शादी के लिए हां कर देना, पैसा जीवन में बहुत आवश्यक है। "पैसे की अहमियत मैं अच्छी तरह जानती हूं मां की नसीहत की कोई आवश्यकता नहीं थी।
अगले दिन रविवार था, बारिश हो रही थी, सब तरफ कीचड़ ही कीचड़ था। बुआ तैयारी देखने पहले से ही आ गई थी। उनकी बातें सुन कर सभी बहुत उत्साहित हो रहें थे। ग्यारह बजे के करीब ले लोग आए। अंकित वर्मा नाम था उसका और वह अपने माता-पिता जी के साथ आया था।
अंकित की मां मेरे पास आकर बोली,"अंकित ने जैसा बताया था रिया तो उससे भी अधिक सुंदर है। हमारी तरफ से रिश्ता पक्का है। अंकित रिया से अकेले में बात करना चाहता है। दोनों कहीं बाहर घूम आएंगे, उसके बाद दोनों जो निर्णय लेंगे हम वैसा कर लेंगे।
मैंने दिमाग के हर कोने में झांक लिया लेकिन अंकित का चेहरा मुझे कहीं भी नजर नहीं आया। अगर हम पहले नहीं मिले तो यह शादी करने को इतना इच्छुक क्यों है? अंकित के मां पिताजी आटो से घर चलें गये और अंकित अपनी गाड़ी में मुझे लंच के लिए गया।
गाड़ी में बैठ कर मुझे अहसास हुआ कि अपनी गाड़ी में बैठ ने का सुख क्या होता है। रेस्टोरेंट के आगे बहुत भीड़ थी इसलिए अंकित ने गाड़ी सड़क के उस पार खड़ी कर दी।
रेस्टोरेंट में स्वयं उसने मेरे लिए कुर्सी निकली। फिर मेरे पास की दुसरी कुर्सी पर बैठ ते हुए बोला, "पहले कुछ ठन्डा लेना चाहेंगी आप? "मेंने हामी में सिर हिला दिया। अपने कन्ठ पर विश्वास नहीं हो रहा था कि सुर कैसा निकलेगा। अंकित देखने में तो स्मार्ट था ही कितना सलिकेदार भी था।
"लगता है आप को अभी भी याद नहीं आया कि मैं कौन हूं? मैं आपकी सहेली पारुल का बड़ा भाई हूं, आप दसवीं तक अक्सर उसके पास नोट्स लेने आती थी।"
मैं दिमाग के घोड़े दौड़ा रही थी। पारुल कौन पारूल, अच्छा अच्छा याद आया। मैं और निशा अक्सर आखिरी समय पर उससे नोट्स मांगकर किसी तरह पास हो जाते थे। दोनों का ही पढ़ने में मन कम था। ग्यारहवीं में पारूल ने साइंस ले ली थी, फिर मैंने उससे कभी बात नहीं की। लेकिन उसका भाई, याद आया, एक लम्बा सा दुबला पतला लड़का जब हम वहां जाते थे तो आगे पीछे मन्डराता रहता था। मैं और निशा घर आकर उसकी बहुत हंसी उड़ाते थे।
कुछ क्षण रुक कर वो आगे बोला,"मुझे आप इतनी अच्छी लगती थी कि मैंने निश्चय किया कि मैं बहुत मेहनत करुंगा, अपने आप को आप के लायक बनाऊंगा। मैंने अपनी पर्सनैलिटी पर भी खूब मेहनत की है।"
मुझे अपने भविष्य को लेकर बहुत आशाएं होने लगी थी। अंकित को उंगलियों पर नचाना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। मैंने दो तीन अमीर लड़कों से दोस्ती की थी लेकिन बड़े चालाक निकले,अपना उल्लू सीधा कर के निकल लिए।
खाना टेस्टी था और अंकित से बाते करने भी मजा आ रहा था। जब हम बाहर आएं तो बारिश हो रही थी। घने बादलों के कारण अन्धेरा सा हो गया था, सड़क पर जाम जैसा लगा था। अंकित बोला,"तुम यहीं रूको मैं गाड़ी लेकर यहीं आता हूं। "वह आप से तुम पर आ गया था। इससे पहले कि मैं कुछ बोलती वह भागा। सामने से सड़क पार करते हुए एक साठ पैंसठ साल की औरत गाड़ियों के शोरगुल से घबराकर या कीचड़ के कारण सड़क पर फिसल गई थी।
मैं सोच रही थी, पागल हो गया है इतनी फिसलन है समाज सेवा का शौक लगा है। कपड़े गन्दे कर लेगा फिर गाड़ी भी गन्दी हो जाएगी।
हाथ के इशारे से उसने गाड़ीयों को रोका और किचड़ से लथपथ उस औरत को सहारा देकर खड़ा कर दिया। गाड़ियां रुकीं हुईं थीं और उनकी रोशनी में वह देवदूत की तरह लग रहा था। वह धीरे-धीरे उस औरत को सहारा देकर मेरी तरफ ले आया । उसके कपड़ों पर किचड़ लग गया था।
वह मुस्करा रहा था लेकिन मेरी हंसी गायब हो गई थी। उससे नजरें मिलाएं बिना मैं बोली,"मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती।"
उसका चेहरा मुरझा गया, वह धीरे से बुदबुदाया,"मैं जानता था कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं।"
मैं आटो पकड़ने के लिए तेज़ क़दमों से भागी। उसको कैसे बताती, "मेरे साथ वह लोभ और स्वार्थ की ऐसी दुनिया में फस जाएगा कि कभी निकल नहीं पाएगा।"
बारिश में उसके कपड़ों पर लगा किचड़ और मेरे आंसू बह रहे थे।
लेखक - अज्ञात
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उस दिन घर लौटी तो मां और पिता जी दोनों के दांत मुंह में नहीं समां रहे थे। चिड़िया की तरह चहक रहें थे, क्या कह रहे थे कुछ समझ नहीं आ रहा था। थोड़ी देर बाद जो समझ आया वह यह था कि मेरे लिए एक रिश्ता आया है , लड़का एक सवालाख कमाता है महिने के । अपना मकान गाड़ी सब है और कोई मांग भी नहीं है। आश्चर्य है ऐसे करिश्में भी होते हैं आजकल कुछ तो गडबड होगी । पिता जी का कहना है ऐसी कोई बात नहीं है बुआ उन्हें जानती है।
मां के सपने उड़ान भर रहे थे । "इतना पैसा कमाता है खर्च कैसे करता होगा। आखिर इतने पैसे कोई कहां रखता होगा। शादी होते ही मैं उससे कहुगी कम्पलीट बाड़ी चेक अप करा दे, और किसी अच्छे अस्पताल में इलाज करा दे।"
पिता जी अपने ही कल्पना लोक में भृमण कर रहे थे। दादा जी के बनाएं हमारे घर की हालत खस्ता हो रही थी।" मैं तो कहूंगा उससे हमारा घर फिर से बनवा दे । शादी के बाद इस टूटे फ़ूटे घर में आकर रहेगा तो अच्छा नहीं लगेगा। दूसरा अपने जैसा लड़का तन्वी के लिए भी ढूंढ दे।"
मानसी मेरी बड़ी बहन कहा पीछे रहने वालो में से थी। उसकी शादी एक लोभी और शराबी व्यक्ति से हुई है। जब तब अपने पति से लड़के अपने दोनों बच्चों के साथ मायके चली आती है। "इनकी अपने जैसी बड़ी कंपनी में नौकरी लगवा दे , बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवा दे बस और कुछ नहीं चाहिए।"
तन्वी मेरी छोटी बहन सबकी बातें सुनकर जोर जोर से हंसती हुई बोली - "पागल हो तुम सब सपनों के हवामहल बना रहे हो। तुम्हें लगता है ये रिया की बच्ची एक पैसा भी उसको तुम लोगों पर खर्च करने देगी। मन ही मन लिस्ट बना रही होगी क्या क्या खरीदेगी कहां - कहां जाएगी।"
हां कह तो वह सही रही थी। वह मुझे बहुत अच्छी तरह जानती है। हम दोनों के बीच बचपन से ही प्रतिस्पर्धा ईर्ष्या छीना झपटी रही है। पैसे की तंगी हमेशा से ही रही है और शोकीन सब इतने की हसरतों का पिटारा सब के सीने में दबा पड़ा है। पढ़ाई करके एक छोटी सी नौकरी कर रहीं हूं जिससे आवश्यकताएं भी पूरी नहीं होती है। मां को मैं फ़ूटी आंख नहीं सुहाती, हर समय मुझे निकम्मी और कामचोर कहती रहती है। पिता जी को बोझ लगती हूं और दोनों बहनें मेरी सुन्दरता से जलती है। इन पर पैसा खर्च करने से अच्छा है पैसे में आग लगा दूं।
प्रसन्नता इतनी थी कि नींद तो आएगी नहीं, लेकिन इन सब की बकवास सुनने से अच्छा है बेडरूम में जाकर सो जाऊं।खाने का भी मन नहीं था वैसे भी किचन में जाती अपने लिए कुछ इतंजाम करती सब के लिए बनाना पड़ता, कौन चक्कर में पड़े। मानसी को अपने बच्चों के लिए खाना पकाना ही पड़ेगा वहीं सब के लिए बना लेंगी।
आधे घंटे बाद मां आलू के परांठे अचार से लेकर आईं। पास बैठते हुए बोली,"लड़का देखने में अच्छा नहीं भी हो तो भी शादी के लिए हां कर देना, पैसा जीवन में बहुत आवश्यक है। "पैसे की अहमियत मैं अच्छी तरह जानती हूं मां की नसीहत की कोई आवश्यकता नहीं थी।
अगले दिन रविवार था, बारिश हो रही थी, सब तरफ कीचड़ ही कीचड़ था। बुआ तैयारी देखने पहले से ही आ गई थी। उनकी बातें सुन कर सभी बहुत उत्साहित हो रहें थे। ग्यारह बजे के करीब ले लोग आए। अंकित वर्मा नाम था उसका और वह अपने माता-पिता जी के साथ आया था।
अंकित की मां मेरे पास आकर बोली,"अंकित ने जैसा बताया था रिया तो उससे भी अधिक सुंदर है। हमारी तरफ से रिश्ता पक्का है। अंकित रिया से अकेले में बात करना चाहता है। दोनों कहीं बाहर घूम आएंगे, उसके बाद दोनों जो निर्णय लेंगे हम वैसा कर लेंगे।
मैंने दिमाग के हर कोने में झांक लिया लेकिन अंकित का चेहरा मुझे कहीं भी नजर नहीं आया। अगर हम पहले नहीं मिले तो यह शादी करने को इतना इच्छुक क्यों है? अंकित के मां पिताजी आटो से घर चलें गये और अंकित अपनी गाड़ी में मुझे लंच के लिए गया।
गाड़ी में बैठ कर मुझे अहसास हुआ कि अपनी गाड़ी में बैठ ने का सुख क्या होता है। रेस्टोरेंट के आगे बहुत भीड़ थी इसलिए अंकित ने गाड़ी सड़क के उस पार खड़ी कर दी।
रेस्टोरेंट में स्वयं उसने मेरे लिए कुर्सी निकली। फिर मेरे पास की दुसरी कुर्सी पर बैठ ते हुए बोला, "पहले कुछ ठन्डा लेना चाहेंगी आप? "मेंने हामी में सिर हिला दिया। अपने कन्ठ पर विश्वास नहीं हो रहा था कि सुर कैसा निकलेगा। अंकित देखने में तो स्मार्ट था ही कितना सलिकेदार भी था।
"लगता है आप को अभी भी याद नहीं आया कि मैं कौन हूं? मैं आपकी सहेली पारुल का बड़ा भाई हूं, आप दसवीं तक अक्सर उसके पास नोट्स लेने आती थी।"
मैं दिमाग के घोड़े दौड़ा रही थी। पारुल कौन पारूल, अच्छा अच्छा याद आया। मैं और निशा अक्सर आखिरी समय पर उससे नोट्स मांगकर किसी तरह पास हो जाते थे। दोनों का ही पढ़ने में मन कम था। ग्यारहवीं में पारूल ने साइंस ले ली थी, फिर मैंने उससे कभी बात नहीं की। लेकिन उसका भाई, याद आया, एक लम्बा सा दुबला पतला लड़का जब हम वहां जाते थे तो आगे पीछे मन्डराता रहता था। मैं और निशा घर आकर उसकी बहुत हंसी उड़ाते थे।
कुछ क्षण रुक कर वो आगे बोला,"मुझे आप इतनी अच्छी लगती थी कि मैंने निश्चय किया कि मैं बहुत मेहनत करुंगा, अपने आप को आप के लायक बनाऊंगा। मैंने अपनी पर्सनैलिटी पर भी खूब मेहनत की है।"
मुझे अपने भविष्य को लेकर बहुत आशाएं होने लगी थी। अंकित को उंगलियों पर नचाना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। मैंने दो तीन अमीर लड़कों से दोस्ती की थी लेकिन बड़े चालाक निकले,अपना उल्लू सीधा कर के निकल लिए।
खाना टेस्टी था और अंकित से बाते करने भी मजा आ रहा था। जब हम बाहर आएं तो बारिश हो रही थी। घने बादलों के कारण अन्धेरा सा हो गया था, सड़क पर जाम जैसा लगा था। अंकित बोला,"तुम यहीं रूको मैं गाड़ी लेकर यहीं आता हूं। "वह आप से तुम पर आ गया था। इससे पहले कि मैं कुछ बोलती वह भागा। सामने से सड़क पार करते हुए एक साठ पैंसठ साल की औरत गाड़ियों के शोरगुल से घबराकर या कीचड़ के कारण सड़क पर फिसल गई थी।
मैं सोच रही थी, पागल हो गया है इतनी फिसलन है समाज सेवा का शौक लगा है। कपड़े गन्दे कर लेगा फिर गाड़ी भी गन्दी हो जाएगी।
हाथ के इशारे से उसने गाड़ीयों को रोका और किचड़ से लथपथ उस औरत को सहारा देकर खड़ा कर दिया। गाड़ियां रुकीं हुईं थीं और उनकी रोशनी में वह देवदूत की तरह लग रहा था। वह धीरे-धीरे उस औरत को सहारा देकर मेरी तरफ ले आया । उसके कपड़ों पर किचड़ लग गया था।
वह मुस्करा रहा था लेकिन मेरी हंसी गायब हो गई थी। उससे नजरें मिलाएं बिना मैं बोली,"मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती।"
उसका चेहरा मुरझा गया, वह धीरे से बुदबुदाया,"मैं जानता था कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं।"
मैं आटो पकड़ने के लिए तेज़ क़दमों से भागी। उसको कैसे बताती, "मेरे साथ वह लोभ और स्वार्थ की ऐसी दुनिया में फस जाएगा कि कभी निकल नहीं पाएगा।"
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लेखक - अज्ञात
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