रंगोली की सबसे सुन्दर डिज़ाइन - The most beautiful design of rangoli

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रंगोली की सबसे सुन्दर डिज़ाइन - The most beautiful design of rangoli, घर पर सुंदर रंगोली कैसे बनाएं? दीपावली पर कौन सी रंगोली बनाई जाती है? रंगोली में कौन कौन से कलर होते हैं? दुनिया की सबसे बड़ी रंगोली कौन सी है?
 
Rangoli rangoli
शुभ दीपावली

दिवाली की सबसे अच्छी रंगोली डिजाइन

दिवाली पर अधिकतर घरों में रंगोली बनाई जाती है. इसे त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव, विवाह जैसे शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है.
 
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Diwali 


रंगोली का महत्व :-
सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। इसमें साधारण ज्यामितिक आकार हो सकते हैं या फिर देवी देवताओं की आकृतियां, लेकिन इन सभी का प्रयोजन सजावट और सुमंगल  है। इन्हें प्रायः घर की महिलाएं बनाती हैं।





सकारात्मक ऊर्जा वाली रंगोली:-

कहा जाता है कि रंगोली घर में सकारात्मक ऊर्जा को लाती है और उसे बाहर नहीं निकलने देती । रंगोली बनाते समय मस्तिष्क के अधिक क्रियाशील होने से तनाव छू-मंतर हो जाता है ।
वास्तु के अनुसार घर में रंगोली बनाने से मां लक्ष्मी बेहद प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है। रंगोली को हटाने के नियम भी होते हैं ।
रंगोली को झाडू या कपड़े से पोछना शुभ नहीं माना जाता है, वास्तु के अनुसार रंगोली को जल की सहायता से हटाया जाना चाहिए, क्योंकि हिंदू धर्म में जल पवित्र कार्यों के लिए प्रयोग में लाया जाता है।





 श्री राम के स्वागत में रंगोली:- 

लोक मान्यता के आधार पर जब रावण का वध करके भगवान श्रीराम माता सीता के साथ 14 वर्षों का वनवास काट अयोध्या वापस आए, तब अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या को दीपक तथा रंगोली से सजाया था। तब से ही प्रत्येक वर्ष दीपावली पर रंगोली बनाने का रिवाज शुरू हुआ । रंगोली के साथ मां लक्ष्मी की मूर्ति और उनके पद चिह्न रखने का रिवाज भी तभी से शुरू हुआ। इसके अलावा एक मान्यता यह भी है कि तमिलनाडु क्षेत्र की पूजनीय देवी मां थिरूमाल का विवाह मर्गाजी से दिवाली के महीने में हुआ था, इसलिए इस पूरे महीने के दौरान प्रत्येक घर में रंगोली बनाने की शुरुआत हुई। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से मां थिरूमाल की कृपा पूरे परिवार को खुश रखेगी। प्राचीनकाल में रंगोली के चित्र धार्मिक,कलात्मक तथा आस्था के प्रतीक थे,जो इस बात को पुख्ता करते थे कि ये कलात्मक चित्र गांव को धन-धान्य से भरे रखेंगे ।





 शुभ कार्यों में रंग भरनें वाली रंगोली 

भारत में आए दिन उत्सवों का मेला लगा रहता है। इन उत्सवों और संस्कारों में रंग भरती है रंगोली। चाहे हवन की वेदी हो, विवाह हो, नामकरण हो या यज्ञोपवीत जैसा शुभ कार्य, इन सभी में रंगोली बनाने की परंपरा मुख्य है । रंगोली में स्वस्तिक, कमल के फूल, लक्ष्मीजी के चरण के अलावा अन्य कलात्मक डिजाइन प्रमुख होते हैं। भारतीय त्योहार रंगों के बगैर अधूरे लगते हैं । कहा भी गया है कि रंग हमें खुशहाली प्रदान करते हैं और त्योहारों में जान डाल देते हैं । रंगोली को अल्पना भी कहा जाता है। अल्पना वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित चौसठ कलाओं में से एक है। संस्कृत के इस शब्द का अर्थ है लीपना अथवा लेपन करना। रंगोली बनाने के पहले आंगन को लीपा जाता है। 




















 दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा में रंग-बिरंगी रोशनी, सजावट और पटाखे जैसी चीजें तो माहौल को खुशनुमा बनाती ही हैं, लेकिन रंगोली भी इस त्योहार को खुशनुमा बनाने में अहम भूमिका अदा करती है।


त्योहारों की कहानियाँ, प्रेम की प्रतीक - Story of festival's

त्योहारों की कहानियाँ, प्रेम की प्रतीक - Story of festival's  (Symbol of love)

दीपावली -


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पूरे मोहल्ले में दीपावली की धूम मची थी। बच्चों ने नए-नए कपड़े पहन रखे थे। उनके गुलगपाड़े और शोर-शराबे से पूरा मोहल्ला गूंज रहा था। हर घर दीपों की रोशनी से झिलमिला रहा था। कहीं-कहीं बिजली के बल्ब भी शान से‍ टिमटिमा रहे थे।


 

लेकिन इन सब रंगीनियों से बहुत दूर कमला काकी का मकान लगभग अंधेरे में डूबा हुआ था। यद्यपि उनके मकान पर भी दो दीपक जल रहे थे, लेकिन इस जगमगाहट में वे निस्तेज से लग रहे थे। दूसरे किसी को इसकी खबर हो या न हो, लेकिन नन्हें आदित्य को यह बहुत अजीब लग रहा था। वह सोच रहा था- आखिर कमला काकी दिवाली क्यों नहीं मनाती हैं? उसे अच्छी तरह से याद था कि कमला काकी ने पिछले साल भी दीये नहीं जलाए थे और शायद उससे पिछले साल भी नहीं।आदित्य को यह अच्छा नहीं लग रहा था कि आज के दिन कोई दुखी और उदास रहे।



वह अच्‍छी तरह समझता था क‍ि जब कोई दुखी व उदास होता है, तभी त्योहार नहीं मनाता है। लेकिन काकी को क्या दुख है, यह बात वह नहीं जानता था।आज मैं काकी का दु:ख जानकर ही रहूंगा। यह निर्णय करके वह जा पहुंचा अपनी मां के पास।मां उस समय रसोईघर में मिठाई तैयार कर रही थीं। आदित्य को कुछ चिंतित देखकर व्यग्रता से पूछा- क्या सोच रहा है बेटा। मां, कमला काकी हमारी तरह बहुत सारे ‍दीपक क्यों नहीं जलाती हैं?


 

आदित्य ने पूछा। वे बहुत दुखी हैं, बेटा। उन्हें दिवाली का त्योहार अच्‍छा नहीं लगता, क्योंकि इस दिन उनका इकलौता बेटा पटाखे चलाते समय दुर्घटनाग्रस्त होकर मर गया था। उनके पति भी नहीं हैं। बेचारी मेहनत-मजदूरी करके गुजारा करती हैं', मां ने समझाया।आप मुझे हमेशा कहती हो कि दीन-दुखी की सेवा करनी चाहिए। तब क्या मैं काकी का बेटा बन जाऊं? आदित्य ने आज्ञा लेने की दृष्टि से पूछा।किसी अच्‍छे काम के लिए मैं भला क्यों मना करूंगी, मां ने मुस्कुराते हुए कहा। मां की स्वीकृति मिलते ही आदित्य का चेहरा खिल उठा। वह सरपट कमला काकी के घर की ओर भागा, लेकिन मां की आवाज सुनकर उसे वापस लौटना पड़ा।


 

यह मिठाई तो लेते जा। कहते हुए जब मां ने मिठाई का डिब्बा आदित्य के हाथों में थमाया तो उसे अपनी मां पर गर्व हुआ।मिठाई का डिब्बा लेकर वह काकी के घर की ओर दौड़ा। प्रसन्नता के मारे उसके कदम धरती पर नहीं पड़ रहे थे। आज वह किसी बेसहारा का सहारा बनने जा रहा था। शीघ्र ही वह कमला काकी के घर पहुंच गया। काकी घर के एक कोने में बैठी रो रही थी। शायद उन्हें अपना बेटा याद आ रहा था।काकी आप रो रही हो?


 

आदित्य ने पूछा
पर काकी चुप बैठी रहीं, जैसे कुछ सुना ही न हो। आदित्य ने काकी को हाथ से झकझोरकर पूछा- बताइए काकी, आपको क्या दुख है?लेकिन काकी ने आदित्य के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया। अपने आंसू पोंछते हुए उन्होंने आदित्य को बैठने के लिए कहा।पर आदित्य तो जैसे घर से दृढ़ निश्चय करके आया था। बोला- मैं जानना चाहता हूं कि आप दीपावली के दिन बहुत सारे दीपक क्यों नहीं जलातीं और आप अभी रो क्यों रही हो?आदित्य की जिद के आगे कमला काकी को झुकना पड़ा। उन्होंने भरे गले से इतना ही कहा- जरा अपने बेटे की याद आ गई थी। आज अगर वह जीवित होता, तो वह भी तुम्हारे जितना ही होता। काकी, अगर बेटा नहीं रहा, तो क्या मैं आपका बेटा नहीं बन सकता? मुझे अपना बेटा बना लो काकी। आज से मैं तुम्हारा बेटा हूं? आदित्य ने भोलेपन के साथ कहा।कमला काकी ने 'बेटा' कहकर आदित्य को गले लगा दिया।
आज वर्षों बाद कमला काकी के घर में दीप झिलमिला उठे थे।

करवाचौथ की प्रसिद्ध कहानी - करवा चौथ की पौराणिक व्रत कथा

बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी!

शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है।

वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।

सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कहकर वह चली जाती है।

सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।

हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।
यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।

व्रत की विधि



उपवास सहित एक समूह में बैठ महिलाएं चौथ पूजा के दौरान, गीत गाते हुए थालियों की फेरी करती हुई



चौथ पूजा के उपरांत महिलाएं समूह मे सूर्य को जल का अर्क देती हुई

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग (पति) की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें। जानिए कैसे हुई इसकी शुरुआत। कैसे करें पूजन और व्रत की पूरी विधि.!
पूजन
उस दिन भगवान शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा का पूजन करें। पूजन करने के लिए बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर उपरोक्त वर्णित सभी देवों को स्थापित करें।
नैवेद्य

शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर मोदक (लड्डू) नैवेद्य हेतु बनाएँ।
करवा

काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे।
संख्‍या
10 अथवा 13 करवे अपनी सामर्थ्य अनुसार रखें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।
पूजन विधि
बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें। पूजन हेतु निम्न मंत्र बोलें -
'ॐ शिवायै नमः' से पार्वती का, 'ॐ नमः शिवाय' से शिव का, 'ॐ षण्मुखाय नमः' से स्वामी कार्तिकेय का, 'ॐ गणेशाय नमः' से गणेश का तथा 'ॐ सोमाय नमः' से चंद्रमा का पूजन करें।
करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर नैवेद्य अर्पित करें। एक लोटा, एक वस्त्र व एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करें। करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ें अथवा सुनें।
सायंकाल चंद्रमा के उदित हो जाने पर चंद्रमा का पूजन कर अर्घ्य प्रदान करें। इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागिन स्त्रियों व पति के माता-पिता को भोजन कराएँ। भोजन के पश्चात ब्राह्मणों को यथाशक्ति दक्षिणा दें।
पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी) को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।

खूबसूरत लव हार्ट मेहंदी डिज़ाइन - Beautiful Love Heart Mehndi Design

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Mehndi of Love "प्रेम की मेहंदी "नई डिज़ाइन....

खूबसूरत लव हार्ट मेहंदी डिज़ाइन - Beautiful Love Heart Mehndi Design
Mehndi

किसी के नाम की मेहंदी लगाने की झलक दिखाई
उन्होंने!
जब इस तरह अपने हांथों मे मेरे नाम की मेहंदी रचाई उन्होंने !!

-:नीचे जाते रहिये और नई डिजाइन देखते रहिये :-

आज के जमाने में तो लड़के के हाथ पर सुंदर मेंहदी डिजाइन के साथ उसके होने वाले पति का नाम लिखने का भी फैशन काफी प्रचलित हो गया है। लोगों का मानना है कि होने वाली दुल्हन के हाथों की मेंहदी का रंग जितना पक्का सजता है, उसका उसके पति से उतना ही गहरा प्यार बनता है।



श्रृंगार मेंहदी
दुल्हन के विभिन्न श्रृंगारों में से एक मेंहदी का भी है। सिंदूर, चूड़ी, बिंदिया, लाली, गहने, आदि श्रृंगार की वस्तुओं के साथ दुल्हन की मेंहदी उसके श्रृंगार को और भी सुंदर बनाती है। मेंहदी की यही खासियत इसे 16 श्रंगारों में सबसे खास बनाती है।



शादी से पहले लड़की द्वारा विभिन्न संस्कार किए जाते हैं। शादी से पूर्व हल्दी लगाने जैसी रस्म के साथ ही मेंहदी की रस्म को भी अत्यंत महत्ता दी जाती है। हल्दी जल्द ही शादीशुदा होने वाली लड़की के लिए शुभचिंतक मानी जाती है। लेकिन हल्दी के साथ ही वर्षों से मेंहदी ने भी अपनी अलग पहचान बनाई है।





माना जाता है कि मेंहदी लगाने से स्त्री की हाथों की रेखाएं भी बदल सकती हैं। जिसके परिणाम स्वरूप जीवन में धन-दौलत एवं सुख-समृद्धि के द्वार खुल सकते हैं। यह इंसान के जीवन को सुखी कर सकती है।





































भारत में प्रत्येक व्यक्ति सभी सांस्कृतिक कार्यों मर्यादानुसार ही करना सही समझता है क्योंकि इन मर्यादाओं के पीछे एक विस्तृत इतिहास एवं मकसद छिपा होता है। शादी-ब्याह में मेंहदी लगाने का महत्व भी कुछ इसी आधार पर विकसित किया गया है।
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